शालिनी कुड़ियाल ने कबाड़ के जुगाड़ से तैयार कर डाली घर के छत पर सुंदर बगिया ।
◆जाने माने न्यूरोसर्जन Neurosurgeon महेश कुड़ियाल की पत्नी हैं शालिनी ।
हम बात अगर पहाड़ी राज्य उत्तराखंड ( Uttarakhand ) की करें तो यहां पर बड़ी तादात में लोग तेजी से पलायन कर मैदानी हिस्सों में चले गए हैं । गांवों की उपजाऊ जमीनें बंजर हो चुकी हैं । या कई ईलाकों में लोग जमीनों में खेती करने के बजाय उन पर मकान बना रहे हैं या स्वरोजगार के लिए अन्य साधन अपना रहे हैं । कमोवेश ऐसा ही शहरों में भी हो रहा है, जमीनें सिमट रही हैं, किसानी हासिए जा रही है, हरियाली गायब हो गई है । ऐसे में अब किसानी ने भी नया अवतार ले लिया है । जमीनों पर मकान हैं तो मकान की छत पर किसानी । जो कि किसी विरोधाभास से कम नहीं है । आए दिन अब देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी खबरें पढ़ने व देखने को मिलती है ।
ऐसी ही एक खबर आज मैं दे रहा हूँ आपको देहरादून Dehradun में शालिनी कुड़ियाल Shalini Kuriyal की, पौष्टिक रसोई की । शालिनी की रसोई पौष्टिकता से भरपूर है । क्योंकि इनके मकान की छत में साग सब्जियां फल फूल रही हैं ।
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शालिनी की मेहनत से उनके परिवार को रासायनिक खाद युक्त सब्जियों के बजाय हर रोज घर की छत पर उगाई जा रही जैविक खाद युक्त सब्जियों का पोषण मिल रहा है । शालिनी कुड़ियाल Shalini Kuriyal का यह आईडिया Idea बढ़ती महंगाई में सुकून देने वाला है । साथ ही साथ बेरोजगारी के इस कठिन दौर में युवाओं को भी प्रेरित करने वाला काम है । घर की छतों का इसी प्रकार से इस्तेमाल अच्छीखासी कमाई का जरिया भी बन सकता है । जैसा कि कई क्षेत्रों में लोग कर भी रहे हैं ।
हाल ही मैं एक वेबसाइट पर पढ़ पढ़ रहा था कि IIT के कौस्तुभ खरे Kaustubh Khare और साहिल पारिख Sahil Parikh खेतीफाई नाम से अपनी एक बिजनेस कंपनी चला रहे हैं । जो कि महज 200 वर्ग मीटर की छत पर 7 से 8 क्विंटल सब्जियां उगा रहे हैं जिसकी कुल लागत महज 19 हजार रुपया है । और अब यह दोनों देशभर में अपनी कम्पनी के मार्फ़त लोगों को अपनी छतों को कमाई का जरिया बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं ।
उसी में मैंने आगे पढ़ा था कि अब यह छत पर सुखद किसानी की दास्तान अब एक नहीं अनेक शहरों में है जिनमें हिसार ( Hisar ) हरबंश सिंह ( Harbansh Singh ) हरियाणा ( Panipat Hariyana ) के कृष्ण कुमार (Krishna Kumar), दिल्ली ( Delhi ) संतोष , छत्तीसगढ़ ( Chhattishgarh ) की पुष्पा देवी ( Pushpa Devi ) आदि अपने छत पर किसानी करके सालाना 7 से 9 लाख तक कमा रहे हैं । इन लोगों का मानना है कि जमीन के बजाय छत पर की जाने वाली खेती ज्यादा लाभ देने वाली है ।
देहरादून में शालिनी की किसानी Kitchen gardening है सबसे जुदा :
शालिनी कुड़ियाल जाने माने न्यूरोसर्जन Neurosurgeon डॉ. महेश कुरियाल Dr. Mahesh Kuriyal की पत्नी हैं । शालिनी को घर की सजा सज्जा व किचन गार्डनिंग Kitchen gardening का उम्दा शौक है । और उसी का नतीजा है उनकी यह हरी-भरी सब्जियों से लदकद बनी छत । इस छत में आलू प्याज को छोड़ सब कुछ है वो भी पर्याप्त मात्रा में । बदलते सीजन के साथ – साथ सब्जियों के प्रकार भी बदल जाते हैं । बात करूं वर्तमान की तो आज शालिनी की छत पहाड़ी पालक, देशी पालक, ब्रोकली, गोभी, धनियां, टमाटर, बींस, शिमला मिर्च व नींबू से सजी है ।
डॉक्टर महेश कुड़ियाल बताते हैं कि उनकी रसोई का स्वाद इसी छत से बढ़ता है । जो शालिनी की मेहनत व सोच का नतीजा है । डॉ. कुड़ियाल कहते हैं कि उनकी पत्नी को किचन गार्डनिंग और साफ सफाई का बहुत शौक है , हमें हर रोज अपने घर के खाने के साथ स्वादिष्ट पौष्टिक सब्जियां मिल जाती हैं । आगे बताते हैं कि हर दिन इस छत से हमारी थाली में कुछ न कुछ परोसा जाता है, जिसका स्वाद भी सबसे हटकर होता है ।
कबाड़ से किया है जुगाड़ ! यही है रचनात्मक सोच :
हो सकता है कि आपमें से अधिकांश लोगों ने अभी तक पढ़ते-पढ़ते यह सोचा होगा कि शालिनी ने पूरी छत पर मिट्टी बिछाकर तरह-तरह की सब्जियां उगाई होंगी ।
जी नहीं…. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है । यहां सिर्फ और सिर्फ कबाड़ को इकट्ठा करके जुगाड़ किया गया है । वह भी ज्यादातर कबाड़ी बाजार से जुटाए गए कबाड़ से । शालिनी बातचीत में बताती हैं कि, वह कोई भी निष्प्रयोज्य वस्तुओं को फेंकने से पहले उनके दुबारा उपयोग के बारे में जरूर सोचती हैं । उन्होंने दिखाया कि कैसे जब उनकी हजार लीटर पानी की क्षमता वाली टंकी खराब हो गई थी तो उन्होंने उसे कबाड़ में फेंकने के बजाय उसे दो बराबर हिस्सों में काटकर सब्जियां उगाने के लिए तैयार किया । आज उसी टंकी के एक हिस्से में पहाड़ी पालक तो दूसरे हिस्से में गोभी उग रही हैं ।
बड़े-बड़े ड्रमों को बीचों बीच लम्बाई में अलग-अलग करके लोहे के अलग अलग फ्रेम में रखकर उनमें भी मिट्टी भरकर तरह-तरह की सब्जियां उगाई जा रही हैं । इतना ही नहीं पुराने हो चुके टॉयलेट सीट, सिंक , वाशबेसिन आदि को भी वह गमलों की तरह उपयोग में ले आती हैं ।
शहरों में रहने वाले लोगों को मिलेगी सीख :
अब शहरों में रहने वाले लोगों को यह सोच-सोचकर अपने दिमाग पर ज्यादा जोर डालने की जरूरत नहीं है कि वह कैसे और कहाँ सब्जियां उगाएं । जो लोग वाकही अभी तक केवल यही सोचकर परेशान थे तो वो देहरादून की शालिनी कुड़ियाल की इस कहानी
को जरूर पढ़ लें और उनकी रचनात्मक सोच, लगन मेहनत को भी जान लें । बिना सोच, बिना समर्पण कुछ भी पाना असंभव है । इसलिए अब आप भी शालिनी की तरकीब को आजमाइए और खूब सब्जियाँ उगाईए । शालिनी बताती हैं कि अगर किसी के पास 100 गज की छत भी हो तो वह हर दिन अपने घर की ताजी पौष्टिक सब्जी खा सकते हैं । बताती हैं कि सालभर में 20 से ज्यादा सब्जियां अलग-अलग सीजन में होती हैं जिन्हें आसानी से बारी-बारी छत पर उगाया जा सकता है । यहां तक कि नींबू भी छत पर उगाया गया है ।
कुलमिलाकर सौ बात की एक बात कुछ भी पाने के लिए सोच का होना भी आवश्यक वरना सब मुंगेरी लाल के सपने जैसा है । शालिनी कुड़ियाल जैसी सोच और मेहनत हो तो सफलता आपसे दूर नहीं भाग सकती है । उदाहरण सचित्र आपके सामने प्रस्तुत हैं ।
कैसे लगी आपको शालिनी की हरी-भरी छत ? क्या आपके पास भी हैं कोई टिप्स ? या है आपके आसपास भी कोई रचनात्मक कहानी का किरदार तो अवश्य लिख भेजें मुझे ।
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शशि भूषण मैठाणी पारस
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सराहनीय,,,छत पर फल बृक्ष भी लगाये जा सकते हैं,, कुछ ऐसी किस्में हैं जिन्हें आसानी से उगाया जा सकता है,,
v.v.nice
Bahut accha kukki.
Tera bageecha dekh kar hame bhi prerna mili