Legislative Assembly election, Uttarakhand 2017. Ganga ki satta : जिस दल ने जीता गंगा का मायका, उसे ही मिला सत्ता का जायका...!
Legislative Assembly election, Uttarakhand 2017. Ganga ki satta : जिस दल ने जीता गंगा का मायका, उसे ही मिला सत्ता का जायका…!
उत्तराखड में सत्ता का द्वार खुलता है गंगा के मायके से, और यह बात अभिभाजित उत्तर प्रदेश से लेकर पृथक हुए उत्तराखण्ड में राजनेताओं के लिए एक ऐसा रहस्य है जो हर 5 वर्षो में चुनावी राजनीति के बड़े-बड़े सुरमाओं के सारे के सारे समीकरण या कयासबाजी को दरकिनार कर देता है । कहते हैं यहां चुनाव से पहले राज्य में चाहे कितने भी सर्वे करा लें लेकिन यहां सत्ता का नया पत्ता गंगा के द्वार से ही खुलेगा । और यह संयोग उत्तराखण्ड गठन से ही नहीं बल्कि अभिभाजित उत्तर प्रदेश के वक़्त से ही यानी सन् 1958 से चला आ रहा है । इसलिए गंगोत्री की सीट को जीतने के लिए कांग्रेस हो या भाजपा सब एड़ी चोटी का ज़ोर लगा लेते हैं, परंतु लाख कोशिसों के बाद भी इस सीट पर जीत उसी दल को मिलती है जिसके नशीब में सत्ता लिखी होती है, ऐसा अब आम लोग ही नहीं बल्कि राजनीति के जानकार भी मानने लगे हैं ।
अब एक बार फिर से सूबे में चंद दिनों के बाद नई सत्ता के लिए वोट डाले जाने हैं और ऐसे वक़्त में माँ गंगा के मायके यानी गंगोत्री विधानसभा सीट का जिक्र न आये ऐसा अब हो नहीं सकता है । गंगोत्री, यमुनोत्री और पुरोला तीन विधानसभाओं वाले सीमांत जनपद उत्तरकाशी से जुड़ा है एक ऐसा मिथक, जिसे आज तक कोई नहीं बदल पाया ।
जीं हां ….. आजतक के इतिहास पर गौर करें तो जिस भी दल ने उत्तरकाशी की गंगोत्री सीट पर फतह हासिल की राज्य में सरकार उसी दल की बनी है । अब आप इसको संयोग, चमत्कार या फिर कुछ और भी समझ सकते हैं । परंतु बीते 6 दशकों के इतिहास को जरा उलटेंगे तो आप भी इसे पूरी तरह से सच मानने को मजबूर हो जाएंगे । 1958 से अब तक के चुनाव बताते हैं कि जिस भी दल का प्रत्याशी उत्तरकाशी गंगोत्री से जीता है, प्रदेश में उसकी ही सरकार बनती आई है। नेताओं के लिए सत्ता पाने का यह मिथक या टोटका उत्तरप्रदेश के वक़्त से ही बना हुआ है ।
जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहने के समय से ही उत्तराखंड की उत्तरकाशी विधानसभा सीट प्रदेश की सरकार का भाग्य तय करती आई है, और यह सिलसिला उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद भी बरकरार है। यह संयोग राज्य गठन के बाद गंगोत्री विधानसभा सीट से जुड़ गया है, क्योंकि पहले उत्तरकाशी नाम से प्रचलित सीट वर्तमान में गंगोत्री नाम से जानी जाती है । उत्तरकाशी जिले में ही गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री है। गंगोत्री सीट में शामिल उत्तरकाशी को लेकर यह मिथक अब तक चला आ रहा है। देखना यह है कि के इस बार भी वही होता है, जो इतने सालों से होता आया है ?
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद गंगोत्री सीट पर एक नजर :
2002 के पहले विधानसभा चुनाव में पुरोला से भाजपा प्रत्यासी मालचंद विजयी रहे । तब उन्होने राजेश जुवांठा की मॉं शांति जुवांठा को हराया था ।
2007 के विधानसभा चुनाव मे इस सीट पर कांग्रेस के राजेश जुवांठा जीतने मे कामयाब रहे, तब उन्होने भाजपा के बागी मालचंद को 525 मतों से हराया था। भाजपा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर अमत सिंह को टिकट दिया था किंतु वो मुकाबला करने में नाकामयाब रहे। उन्हें मात्र 7027 मत ही सके।
2012 के विधानसभा चुनावों में इस सीट से के मालचंद ने भाजपा के ही बागी सहसपुर के पूर्व विधायक राजकुमार को 4000 मतों के अंतर से हराया। 2012 के विधानसभा चुनाव में पुरोला विधानसभा सीट पर कुल 45533 वोट पडे, भाजपा के मालचंद को कुल 18098 वोट, भाजपा के बागी राजकुमार को 14266 वोट, कांग्रेस के राजेश जुवाठंा को 10804 वोट, बसपा के किशन लाल को 1659 वोट पड़े। जिनमें से भाजपा के मालचंद को 39.75 ,निर्दलीय राजकुमार को 31.33 और कंग्रेस के राजेश जुवांठा को 23.73 प्र्रतिशत मत मिले ।
वहीं पुरोला विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मोरी विकासखंड के 68 गांव के लोगों ने महापंचायत के माध्यम से अपना प्रत्याशी चुन लिया है। कई चरणों की माथा पच्ची के बाद 25 दिसम्बर को आयोजित महापंचायत में क्षेत्र के शिक्षित व दिल्ली की एक निजी कंपनी में कार्यरत युवा दुर्गेश लाल के नाम पर महांपचायत की मुहर लगी।
गंगोत्री में आसान नहीं भाजपा-कांग्रेस की राह
गंग्रोत्री विधानसभा के गठन के बाद आजतक हुए विधानसभा चुनावों में इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला है। वो बात अलग है कि जीत भाजपा या फिर कांग्रेस के प्रत्यासी के हाथ ही लगी है। उत्तराखण्ड में साल 2002 में हुए पहले आम चुनाव में गंग्रोत्री विधानसभा के विधानसभा चुनाव में कंाग्रेस के विजयपाल सजवाण ने कामरेड कमलाराम नौटियाल को बहुत कम अंतर से हराया और राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई। विजयपाल सजवाण को 7878 मत मिले जबकि कामारेड कमलाराम नौटियाल को 7268 मत ही मिल सके। 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने गंगोत्री से बुद्धि सिंह पंवार को मैदान में उतारा था किंतु भाजपा प्रत्यासी पंवार 6822 मतों के साथ तब तीसरे नंबर पर रहे। साल 2007 में हुए दूसरे चुनाव में कांग्रेस प्रत्यासी विजयपाल सजवाण और भाजपा प्रत्यासी गोपाल रावत के बीच कांटे का मुकाबला हुआ। जिसमें भाजपा के गोपाल रावत ने कांग्रेस के विजयपाल को हराया था और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने भाजपा के गोपाल रावत को हराकर जीत हासिल की और प्रदेश में भाजपा से मात्र एक सीट आगे रही,कांग्रेस की सरकार बनी। 2012 के विधानसभा चुनाव में गंगोत्री विधानसभा में कुल 49476 वोट पडे तथा 970 वोट पोस्टल वैलेट से आए। कुल 50446 मतों में से कंाग्रेस के विजयपाल सजवाण को 20246 वोट यानि 40.13 प्रतिशत, भाजपा के गोपाल रावत को 13223 वोट यानि 26.21, निर्दलीय सुरेश चौहान को 6436 वोट यानि 12.76, निर्दलीय किशन सिंह को 5595 वोट यानि 11.09, निर्दलीय प्रत्याशी हरिशंकर को 1417 वोट यानि 2.14 प्रतिशत, सीपीआई के दिनेश नौटियाल को 1356 वोट यानि 2.69 प्रतिशत, बसपा के हुकूम सिंह को 1080 वोट यानि 2.14 प्रतिशत, और यूकेडीपी के भगवती प्रसाद बहुगुणा को 584 वोट यानि 1.16 प्रतिशत मत मिले । गंगोत्री सीट पर कांग्रेस के वर्तमान विधायक विजयपाल सजवाण एकमात्र दावेदार हैं। उनके टिकट कटने की दूर दूर तक कोइ्र्र सभंावना नहीं है। भाजपा की और से इस बात की पूरी संभावना है कि गोपाल रावत ही विजयपाल सजवाण मुकाबला करने के लिए मैदान मे उतरेगें। पूर्व दायित्वधारी सूरत राम नौटियाल भी भाजपा की ओर से टिकट के दावेदार हैं किंन्तु पूर्व मे विजयपाल सजवाण को हराने के कारण गोपाल रावत का दावा ज्यादा मजबूत है और माना जाता है कि विजयपाल को हराने में गोपाल ही सक्षम हैं। विधानसभा सीट में 2017 के चुनाव में मुख्य मुददा आपदा और भ्रष्टाचार रहने की संभावना है।
श्री शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ भाई साहब जी इस बार देखते हैं कि आपका कहाँ तक सार्थक होता है।