किसी व्यक्ति विशेष की प्राकृतिक मौत पर सियासी बवाल, अपने सियासी फायदों के लिए, क्या यह सर्वोत्तम न्यायपालिक की छवि खराब करने की कोशिश हैं….?

 

हिमांशु पुरोहित । Himanshu Purohit । youth icon media । news । report । Yi award । shashi bhushan maithani paras । यूथ आइकॉन । शशि भूषण मैठाणी पारस । Avikasit Bhroon Gairsain : शहीदों के रक्त से संचित और आज की सियासत का एक अविकसित भ्रूण "गैरसैंण" 
हिमांशु पुरोहित ।

तारिख अप्रैल,19 2018 … सीबीआई के विशेष जज बृजमोहन हरकिशन लोया की मौत के मामले में एसआईटी जांच वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि ‘ जज लोया की ‘संदिग्ध मौत’ प्राकृतिक है, इसकी स्वतंत्र जांच कराने की कोई आवश्यक्ता नहीं है। ’ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि, जो जज लोया के साथ यात्रा कर रहे थे उन पर संदेह नही किया जा सकता । बॉम्बे हाईकोर्ट के सभी जजों पर गलत आरोप लगाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, यह न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश है। कोर्ट भी यह मानता है कि राजनीतिक हित साधने के लिए इस तरह की याचिकाएं दाखिल की गयी है ।

क्या  थी इस प्रकरण की कहानी…

जज लोया की मौत एक दिसंबर 2014 को नागपुर में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, वह अपनी एक सहकर्मी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए जा रहे थे । यह मामला तब सामने आया जब उनकी बहन ने उनकी की मौत पर सवाल उठाए दिए थे । उनकी बहन के सवाल उठाने के बाद मीडिया ने भी जज लोया की मौत और सोहराबुद्दीन शेख़ फर्जी अकाउंटर केस को आपस में जोड़ दिया क्योंकि जज लोया, सोहराबुद्दीन शेख़ फर्जी अकाउंटर केस की सुनवाई करने वाली सीबीआई की विशेष अदालत के जज बी एच लोया ही थे | उनकी बहन के बयान के बाद विपक्ष और सत्ता विरोधी गुट एक जुट हो गया, और सरकार के कुछ नामी नेताओं के नामों को न्यायपालिका के समक्ष रख दिया | इसके बाद न्यायपालिका से यह अपील की गयी कि जज लोया की मौत स्वतंत्र जांच होनी चाहिए |
हालांकि, इस मामले का राजनीतिकरण न होने देने से बचने के लिए उनके पुत्र अनुज ने प्रेस-कांफ्रेंस में यह बयान दिया था कि उनके पिता की प्राकृतिक मृत्यु थी और हार्ट टैक से हुई है | उनकी मौत पर उनके या उनके परिवार को किसी भी प्रकार का शक नहीं है और उन सब लोगों से हिदायत भी दी थी कि किसी की मौत और बेवजह राजनीति नहीं करनी चाहिए | अनुज ने प्रेस-कांफ्रेंस ने यह भी कहा था कि उनके परिवार को पिछले कुछ साल से परेशान किया जा रहा है । लेकिन तुच्छ राजनीति करने वाले किसी की भावनाओं को क्या समझेंगे |

क्या सियासी फायदे की एवज में केस किया…?

जज लोया के परिवारजन इस केस के पक्ष में नहीं थे, यहां तक कि उनकी बहन का मात्र सवाल था कि ऐसा हो सकता है लेकिन सियासी फायदों की एवज में याचिकाकर्ताओं के वकील दुष्यंत दवे, इंदिरा जयसिंह और प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में इस केस की स्वतंत्र जांच के लिए अपील की लेकिन अब फैसले के बाद लोया के साथ नागपुर में मौजूद जजों की बात पर भरोसा न करने की बात कहकर सीधे न्यायपालिका पर सवाल उठा दिए हैं । लेकिन न्याय पालिका पर सवाल उठाने पर ऐसे हालात में आदर्श स्थिति तो यही होती है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया शुरू की जाए, क्योंकि राजनीतिक लड़ाई की वजह से न्यायपालिका के निर्णय पर ही नहीं बल्कि जजों पर भी सवाल उठाये गये हैं ।
पुरे घटना क्रम और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर विपक्ष और सत्ता विरोधी अपवाद इतना उतावलापन न्यायपालिका की मर्यादा को अनदेखा करना, और उसके अपमान सरीखा है | यहां तक कि कुछ सत्ता विरोधी अपवादों ने इस निर्णय दिन को सुप्रीम कोर्ट के लिए “काला दिवस” तक घोषित कर दिया | सत्य ही, देश में सियासी समीकरण से जन्मे अपवाद इतने हानिकारक हो चुके देश कि न्यायपालिका पर उंगली उठाने से बाज नहीं आरहे हैं | देश में पक्ष और विपक्ष की समझ राजनीतिक शुन्यता को दर्शाती है | देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाने वालों की क्षीण मानसिकता इस कदर हावी हो चुकी है जिस पर यह कहना गवारा नहीं होगा कि –

आसमानों से फ़रिश्ते भी उतारे जाएँ, तो वो भी इस दौर में सच बोलें तो बदनाम हो जाएँ….
हिमांशु पुुुरोहित

Himanshu Purohit

By Editor