एक मरीज की बेटी से हर मरीज की बेटी तक का सफर और फिर हालात को हथियार बना बनी कैंसर विशेषज्ञ डॉ0 मंजरी , होंगी Youth icon Yi National Award 2018 से सम्मानित .
उधर से उस डॉक्टर को फोन आया …… ‘पापा की मौत हो गई है’। एक अंतहीन बैचेनी से जूझते हुये वह आईसीयू में लौटी और उस कैंसर के मरीज को बचाने में फिर से जुट गई। जिसको रेडिएशन रूम में ले जाने से पहले वो फोन सुनने बाहर आई थी। वो मरीज अब पापा की तरह ही दिखने लगा था। एक दो बार आंसू की कुछ बंूदों ने जिद पकड़ ली, लेकिन उस डाक्टर ने बेरहमी से उन्हें पोंछ दिया। मंजरी की जीवटता , जिजीविषा और कर्तव्यनिष्ठता को यूथ आइकॉन परिवार ने सलाम करते हुए, आगामी 11 नम्बर 2018 को उन्हें YOUTH icon Yi National Award 2018 प्रदत्त करने का निर्णय लिया है . उक्त दिवस पर श्रीमती बेबीरानी मौर्य जी महामहीम राज्यपाल उत्तराखंड , डॉ० मंजरी को यूथ आइकॉन अवार्ड प्रदत्त करेंगी .
एक तीमारदार भी होता है चलता फिरता मरीज ! कैसे ? यह जानने के लिए पढ़ेें विस्तृत रिपोर्ट
इधर, वो अस्पताल में रात भर कैंसर के मरीज को बचाने के कवायदों में जुटी रही, उधर एक फोन आया, जिसको सुनने के बाद उन्हें अपनी भावनाओं को काबू रखने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। फोन घर से उनके छोटे भाई का आया था, जिसने सुबकते हुये बताया किए ‘पापा की मौत हो गई है’। एक अंतहीन बैचेनी से जूझते हुये वो आईसीयू में लौटी और उस कैंसर के मरीज को बचाने में फिर से जुट गई। जिसको रेडिएशन रूम में ले जाने से पहले वो फोन सुनने बाहर आई थी। वो मरीज अब पापा की तरह ही दिखने लगा था। एक दो बार आंसू की कुछ बंूदों ने जिद पकड़ ली, लेकिन उस डाक्टर ने बेरहमी से उन्हें पोंछ दिया। थोड़ी देर में मरीज में थोड़ा सुधार आया तो उसके परिजनों को एक मजबूत ढांढस बंाधने के बाद वो डाक्टर अपने हॉस्टल पहुंची और बंद कमरे में अपनी भावनाओं को आंशुओं के सहारे बेसहारा छोड़ दिया।
टिहरी गढ़वाल निवासी डा मंजरी शाह, दिल्ली में एक प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में कैंसर विशेषज्ञ है। उनकी कहानी मानो खुद गुरबत से जंग कर एक मुकम्मल जहां पहुंचकर ये बताने के लिये काफी है कि, किसी पेशे की प्रोफेशनल्जिम के मायनों की हद क्या हो सकती है। लेकिन उससे पहले ये कहानी जानना ज्यादा जरूरी है कि डा मंजरी कैंसर विशेषज्ञ कैसे बनी। डा मंजरी बताती हैं कि, हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद उनकी पोस्टिंग टिहरी गढ़वाल से लगभग सौ किलोमीटर दूर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लाटा गांव (पीएचसी) में बतौर प्रभारी हुई। एक दिन ड्यूटी के दौरान उनकी मां का फोन द्वारहाट के उनके घर से आया। घबराई मां ने बताया कि पिता के गले में कई दिनों से संक्रमण है और वो ठीक से खाना भी नहीं खा पा रहे थे। उनका घर अल्मोड़ा से काफी दूर एक गांव में हैं, जहां मेडिकल सुविधा अभी उनकी मजबूत नहीं है। लिहाजा, डा मंजरी ने मां के साथ रह रहे छोटे भाई को पिता को अल्मोड़ा शहर ले जाकर सीटी स्केन कराने के बाद उन्हें स्पीड पोस्ट करने को कहा। कुछ दिन बाद रिपोर्ट जब डा मंजरी के पास पहुंची तो उनका डर सही साबित हुआ। उन्होंने अपने सीनियर डाक्टरों से इस संबंध में परामर्श लिया। लेकिन टिहरी में कोई कैंसर विशेषज्ञ डाक्टर न होने की वजह से उन्हें सटीक परामर्श नहीं मिल पाया।
बहरहाल, उन्होंने अवकाश लिया और अपने पिता को लेकर देहरादून से लेकर दिल्ली तक कई बड़े प्रतिष्ठित अस्पतालों में दिखाया। इस दौरान दिल्ली में रहने वाली उनकी दोस्त डा दिशा तिवारी ने बहुत मदद की। डा दिशा भी डा मंजरी के साथ हल्द्वानी से ही एमबीबीएस की पढ़ाई साथ कर चुकी थी। इलाज की प्रक्रिया शुरू हुई। इलाज की इस महंगी प्रक्रिया के लिये परिवार को संपत्ति तक बेचनी पड़ी। फिर भी मुकम्मल उपचार नहीं मिला और मर्ज बढ़ता ही रहा। देहरादून और दिल्ली के विभिन्न कैंसर संस्थानों में चक्कर लगाने के बाद डा मंजरी को कैंसर के मरीजों की दिक्क्तों को पास से देखने का मौका मिला। हर दिन बीमारी से लड़ते मरीज और परिस्थिति से टूटते तिमारदारों को देख डा मंजरी ने तय किया अब उन्हें भी कैंसर विशेषज्ञ बनकर इस जटिल बीमारी से ताउम्र लड़ना है। मेरी ओंकोलॉजी (रेडिएशन कैंसर विशेशज्ञ) की पढ़ाई में पहले मरीज मेरे ही पिता थे।
बहरहाल, उन्होंने दिल्ली में ही अपने पिता को कीमोथैरेपी देने की व्यवस्था एक अस्पताल में की और खुद कैंसर की पढ़ाई में जुट गई। दिन में पढ़ाई और रात को अस्पताल में पिता के साथ रहना, रोज की दिन चार्या बन गई। डा मंजरी बताती है कि मैं दो मोर्चों पर एक साथ लड़ रही थी। एक अपने पिता के साथ कैंसर से और दूसरा आर्थिक मोर्चे पर। हालांकि एक तीसरा मोर्चा भी था, जिसमें मुझे पढ़ाई और पिता के इलाज के बीच व्यवस्था बनाने में संघर्ष करना पड़ रहा था।
पिता की कई कीमोथैरेपी हुई। जिससे उनका शरीर इस कदर दुर्बल हो गया कि डाक्टरों ने कुछ दिन रुकने की सलाह दी। लिहाजा, पिता को मां संग द्वारहाथ छोड़ आई। वापस लौटी तो कैंसर वार्ड में मरीजों की सेवा में जुट जाती। हर मरीज मुझे अपने पापा की तरह लगते। उस रात भी ऐसे ही एक मरीज गंभीर हालत में अस्पताल मंे लाये गये थे। उन्हें आईसीयू में भर्ती कर जरूरी प्रक्रिया शुरू की गई। उधर, घर से मां का फोन आया कि पापा को बहुत उल्टियां हो रही है। मैंने उन्हें कुछ जरूरी सलाह दी। उसके बाद आईसीूय में उस कैंसर मरीज का डायग्नोज बनाने लगी। उधर, मां का फिर फोन आ गया कि उल्टियां नहीं रुक रही है। मैं झल्ला गई, एक तरफ कैंसर से पीड़ित पिता थे तो दूसरी तरह कैंसर से पीड़ित मरीज। मैं हाताश होने लगी। मेरे हाथ पांव ठंडे पड़ने लगे। लेकिन मैं रो नहीं सकती थी। मुझे अभी नहीं रोना था। मैं फिर से आईसीयू में चली गई। बाहर मरीज के परिजन खड़े थे। वो परेशान थे। मैंने उनमें ढांढस बांधा। लेकिन मुझे कौन ढांढस बांधता ?
फिर से फोन बजा। इस बार छोटे भाई की आवाज थी। वो बस इतना ही बोला, ‘पापा नहीं रहे’। मैं दीवार पर सहारा लगाकर नीचे बैठ गई। अंदर से मरीज की करहाने की आवाज आई तो झट से उठी और अंदर उपचार की प्रक्रिया में जुट गई। मैं ही जानती हूं कि उस दिन मुझ पर क्या बीत रही थी। मैं उसी समय एक डाक्टर भी थी, एक बेटी भी और एक असहाय इंसान भी। लेकिन मैं कमजोर नहीं थी। मैं रोना चाहती थी। हास्टल पहुंची और अपने कमरे को बंद कर रोने लगी। रोते रोते सामान पैक किया और पिता की अंत्येष्टी के लिये कई सौ किलोमीटर कार चला कर घर पहुंची।
अब जबकि पिता नहीं हैं, तो हर मरीज मुझे अपना ही लगता है। मैं जानती हूं उस परिवार में क्या बीत रही होगी, जो मरीज के लिये वार्ड के बाहर लाइन में खड़ा है। क्योंकि उस लाइन का हिस्सा कभी मैं भी थी।
Shashi Bhushan Maithani Paras
Founder YOUTH icon Yi National Award ,
Cont. 9756838527 . 7060214681
email : yinationalaward@gmai.com
धन्य है इस बिटिया को ऐसी बिटिया हर घर में जन्म लें इस बिटिया का सरकार द्वारा समान जरुर होना चाहिये
she is an outstanding person .a great salute to her bravery n dedication.
I also salute her. She really deserve for this.
shabash beta
tumhare pryas or soch sabhi puruskaron se bahut oonche han.muje tum per garv tha
ha or hamesha rahega
Jajbe ko Salam…
shabash beta.muje tum per naz ha.
shabash beta .muje tum per naz ha. meri or se bahut sari shubhkamnayen
Sabas bitiya mujhe tum par naj hei,tumhare jajbe ko salam,award hetu subhkamna.