Manmeet Rawat : खट्टी-मीठी जन्नत, करगिल से गुजरते वक्त…!
भाग -तीन
सोनमर्ग में तेज बारिश ने हमारा स्वागत किया। आर्मी ने भी सोनमर्ग से कुछ आगे बैरियर लगाकर एनएच-वन को ब्लॉक कर दिया। ताकि रात को श्रीनगर की ओर कोई वाहन न जा सके। मैने भी यहीं रुकने का फैसला कर लिया। बहरहाल, हमने होटल तलाशने शुरू किया। सोनमर्ग कस्बा अमरनाथ यात्रा का बेसकैंप है। यहां से, उसी तरह से हैलीकप्टर अमरनाथ के लिए संचालित होते हैं, जैसे उत्तराखंड में फाटा से केदारनाथ के लिए। सोनमर्ग आकर एक ज्ञान ये भी मिला
कि उत्तराखंड के चारधामों में ही लूट नहीं होती। सोनमर्ग में भी ऐसी प्रजाति पाई जाती है। जिस पहले होटल में रूम देखने गया, उसने उसका एक रात का किराया 11 हजार रुपये बताया। दूसरे होटल में 13 हजार और दिखने में सबसे बेकार होटल के मैनेजर ने अंतिम सात हजार रुपये। खाना खाते हुए एक अन्य टूरिस्ट से इस महंगाई का दर्द साझा किया तो उसने बताया, सोनमर्ग में ज्यादातर वो श्रद्धालु रुकते हैं जो, हैलीकाप्टर से अमरनाथ की यात्रा करते हैं। पैकेज के तहत होटल के कमरे ठीक रेट में पढ़ जाते हैं। लेकिन बिना चॉपर के पैकेज के काफी महंगे। अलबत्ता, एक महंगा कमरा मेने भी ले ही लिया और कब गहरी नींद आई पता नहीं चला। सोने से पहलीे एक बात बता दूं कि सोनमर्ग के हर होटल में कश्मीरी युवा कोट-पेंट सूट और टाई में इस कदर स्मार्ट लगते हैं कि उनके सामने अच्छा खासा बोलीवुडिया मॉडल झक मारे।
सुबह सात बजे मेरी नींद खुली। बारिश भी शायद कुछ देर पहले ही रुकी थी और कोहरा भी छंट गया था। बड़ी बड़ी खिड़कियों के पर्दे मेने एक तरफ किए तो दिल खुश हो गया। सामने सुंदर चीनार के पेड़ और बुग्याल मानो हमारा इंतजार कर रहे हो। मैं कूद कर वॉशरूम में घुसा और तुरंत तैयार होकर सामने के बुग्याल में पहुंच गया। वहां पर अच्छी नस्ल के घोड़े भी थे। उनके साथ सेल्फी लेने के बाद मैं बाजार की तरफ चल पड़ा। बाजार कुछ खास नहीं था, लेकिन वहां मुझे पता चला कि मैं जहां रात को रुका था वो नया सोनमर्ग है। ये भी पता चला कि वहां हर होटल बहुत महंगे हैं। बाजार की तरफ होटल काफी सस्ते थे। मसलन, हजार रुपये से दो हजार तक। लेकिन पुराने स्टाइल और थोड़ी गंदगी भी। वैसे मुझे अपने रात के निर्णय पर अफसोस नहीं था।
सोनमर्ग से नौ किलोमीटर के ट्रेक कर थाजिवास ग्लेशियर पहुंचा जा सकता है। ग्लेशियर तक पहुंचने से पहले कई जमे हुए छोटी छोटी झीलें भी मन को सुकून देती है। इसी ग्लेशियर से सिंध नदी का उद्गम होता है। एक दिन सोनमर्ग गुजारने के बाद अगला पड़ाव श्रीनगर था। श्रीनगर में शाम को सही समय पर पहुंच गया। यहां एक हाउस बोट को बुक कराने के बाद मैं बाजार पैदल ही टहलने चला गया और कुछ देर घुमने के बाद एक स्कॉच की बोतल बोट पर ही ले आया। एक बात बता दूं, पुरे जम्मू को छोड़कर कश्मीर के ऊपरी बेल्ट में शराब में पाबंदी है। श्रीनगर के सेंट्रल प्वाइंट पर भी केवल टूरिस्टों के लिए वाइन शॉप है। केवल टूरिस्ट ही यहां से खरीद सकते हैं। बोट का मालिक 65 साल का दिलफेंक युवा था और उसका तीस साल का बेटा उतना ही बुजुर्ग। मेने बुजुर्ग को स्कॉच आफर की तो उसने इंकार कर दिया। फिर भी वो मेरे साथ बैठ गया। बातचीत शुरू हुई। मेने उसे बताया कि मैं शोध छात्र हूं और कश्मीर के मन को पढ़ने आया हूं। मेने बुजुर्ग से पूछा कि आप लोग क्यों कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना चाहते हो। बातों को गौर से सुनने के बाद बुजुर्ग मुस्कराया और बोला। कौन गधा का बच्चा पाकिस्तान के साथ मिलना चाहता है। हम तो आजाद होना चाहते है। बुजुर्ग ने ये भी बताया कि हम जैसे पुराने लोग पाकिस्तान का विरोध करते हैं और आजाद कश्मीर का नारा देते हैं। लेकिन आजकल के युवा फेंटेसी में जीने लगे है। वो हथियारों की फेंटेसी करना चाहते हैं। आठ बजे बुजुर्ग चला गया और उसके 15 मिनट बाद उसका बेटा मेरे साथ पेक मार रहा था। स्कॉच से हलक तर करने के बाद मेने उससे भी वो ही सवाल दोहराया। हालांकि सवाल दोहराने से पहले मुझे अमेरिका से लेकर इजरायल तक को गालियां देनी पड़ी। वो ये सब तो नहीं जानता था, लेकिन हां उसे इतना जरूर पता था कि ये देश मुस्लिमों से नफरत फैलाते हैं। तीन पेक मारकर वो बेशर्म हो गया और खुद ही बोतल अपने ग्लास में उड़ेलने लगा। बातों ही बातों मंे उसने इतना ही बताया कि पाकिस्तान को स्पोर्ट करता है। हालांकि खुलकर वो एक बार भी नहीं बोला। पांच पेक मारने के बाद भी नहीं। अब मैं समझ गया कि क्यों उसका बाप चिंता मंे था।
बहरहाल, सुबह नींद काफी देर से खुली। वो इसलिए क्योंकि हाउस बोट में झील के रुके पानी से काई की दुर्गधं बहुत आ रही थी। जैसे तैसे रात को सो सका। हाउस बोट में शाम को कुछ देर गुजार सकते हैं, लेकिन रात को सोने के लिए अच्छा विकल्प नहीं है। अगले दिन में बाजार में घुमने निकल गया। झील के किनारे रिंग रोड पर कश्मीरी शॉल के शोरूम है। एक से बढ़कर एक खूबसूरत शॉल। एक शोरूम में घुसा तो वहां के कश्मीरी सेल्समैन मुझे भी शॉल दिखाने लगे। एक शॉल पसंद आया। कीमत पूछी तो बताया, सर, ये डेढ़ लाख रुपये का है। मेरे ड्राइवर हंसा और मुंह दबाते हुए बाहर निकल गया। बाहर आकर मैं भी बहुत देर हंसा।
कश्मीरी और सेना। दोनों एक ही बाजार में और दोनों में कोई संवाद नहीं। आम कश्मीरियों से मुंह मोड़ते फौजी और उन्हें घूरते कश्मीरी। चप्पे चप्पे पर बख्तर बंद वाहन और मुंह चिढ़ाती एलएमजी। सेना के जवानों के मुंह काले कपड़े से यहां भी ढके होते हैं, जिसमें से दो चौकस आंखे सबको संदेह की नजरों से फिल्टर कर रही होती है। एक ऐसा शहर, जिसमें हर तरफ गुस्सा और खामोसी बिखरी पड़ी है। शहर के बीचों बीच लाल बाजार से गुजरते वक्त एक बख्तर बंद वाहन बाजार की मुख्य सड़क में रास्ता रोके खड़ा था। मेने उसे हार्न मारकर हटने को बोला तो कश्मीरी मुझे आश्चर्य से भरी नजरों से देखने लगे। शायद वहां के लोग ऐसा नहीं करते होंगे। बख्तर बंद वाहन के ऊपर दो स्नाइफरों ने मेरी जीप का नंबर देखा और फिर उनमें से एक अंदर कुछ बुदबुदाया। उसके बाद बख्तर बंद वाहन् सड़क से हट गया। लेकिन पूरे बाजार का मुझे घूरना, समझ नहीं आया। वहां के समाजशास्त्र को दो दिन में समझने का दावा करना अपने को ही बेवकूफ बनाना होगा। इसलिए अब आगे बढ़ने की सोची। श्रीनगर से आगे का पड़ाव था पुलवामा , डोडा सेक्टर और अनंतनाग।
*मनमीत रावत
Copyright: Youth icon Yi National Media, 30.07.2016
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मनमीत रावत जी बहुत अच्छा लगा आपके सुहावने सफर के बारे मे पढ़कर।