Mau Baraha ar : “मौ 12 अर कुकूर 13”.गाँवों की जैसी हालत हो गयी है ….!
सर…! संविदा या उपनल से मुख्यमंत्री नहीं बनाए जा सकते हैं क्या !
कई दिनों तक मुख्यमंत्री पद की रेस के बड़े चर्चे रहे.हफ्ते भर में बीरबल की खिचड़ी की तर्ज पर मुख्यमंत्री रुपी पकवान निकला है. सुनते हैं कि कई-कई लोग थे मुख्यमंत्री बनने की रेस में.क्या जमाना आ गया,मुख्यमंत्री बनने के लिए रेस लगानी पड़ रही है.जितनी तेजी गति से लोगों के मुख्यमंत्री की रेस
में आगे-पीछे होने की खबरें आती-जाती रही,उससे तो लगा कि मुख्यमंत्री पद की होड़ में लगे भाई लोग भी क्या दौड़ाक हैं! अधेड़ अवस्था में ऐसे दौड़ रहे हैं.युवा अवस्था में दौड़ते तो ओलोम्पिक से मैडल मार कर ही लौटते.अलग राज्य बनने के बाद तो हर विधायक मंत्री और मुख्यमंत्री बनना चाह रहा है.सो हर कोई रेस में है.हमारे यहाँ पहाड़ी कहावत है कि ” मौ 12 अर कुकूर 13″.गाँवों की जैसी हालत हो गयी है,उसमे नई कहावत तो यह होने वाली है कि-“कुकुर 12 अर बांदर 13”.बहरहाल मौ 12,कुकुर 13 की कहावत के अनुसार ही मुख्यमंत्री पद है एक,दावेदार हैं कई-कई.मंत्री पद हैं 12 और दावेदार 56.
इतने दौड़ाक यानि रेसरों की तमन्ना कैसे पूरी हो?सरकारी विभागों में नियुक्ति ठेके पर करने का चलन इन्हीं सरकारों ने बनाया है.तो क्यों न मुख्यमंत्री भी ठेके पर नियुक्त हो,उपनल के जरिये नियुक्त हो या कि संविदा पर रखा जाए?भाई अतिथि शिक्षक हो सकता है तो अतिथि मुख्यमंत्री क्यों नहीं? मुख्यमंत्री पद का 6 महीनें का कॉन्ट्रैक्ट बने तो काफी नेता मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठने की हसरत पूरी कर सकेंगे!6-6 महीने में भी तम्मना पूरी न हो तो महीने-महीने का कॉन्ट्रैक्ट बनवा लो.5 साल बीतते न बीतते सारे विधायकों की मुख्यमंत्री बनने की तमन्ना पूरी हो जायेगी.इस गति से तो क्या विपक्षी विधायकों की भी मुख्यमंत्री बनने की हसरत पूरी हो जायेगी.जिस तरह सत्ता-विपक्ष की मित्रता है,सब कुछ सत्ता को समर्पित है तो यही सबसे मुफीद फॉर्मूला है कि सबको कुर्सी सुख हासिल हो सके !जब सारा राज्य ठेके और संविदा पर चलाया जा सकता है तो मंत्री-मुख्यमंत्री ही ठेके-संविदा पर क्यों न रखे जाएँ?शिक्षा बंधू,शिक्षा मित्र की तर्ज पर क्यों न कुर्सी मित्र और कुर्सी बन्धु रखे जाएँ.आखिरकार कुर्सी से इनकी मित्रता और बंधुत्व तो बेमिसाल है ही !
superb article Indresh bhai