moonlight passes through the ice crystals, it is bent in a way similar to light passing through a lens. The shape of the ice crystals causes the moonlight to be focused into a ring. और दादी पास हो गई ! वैज्ञानिकों पर भारी पड़ी दादी !
और दादी पास हो गई ! वैज्ञानिकों पर भारी पड़ी दादी !
◆ शशि भूषण मैठाणी पारस
दादी या नानी के किस्से तो हम सबने सुने ही हैं । और दादी नानी के किस्से सिर्फ जुबानी खर्च नहीं होते बल्कि 100% सच भी होते हैं यह आज एक बार फिर से साबित हो चुका है ।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि अक्टूबर नवम्बर से शुरू हो चुकी सर्दी का मौसम अब वापस लौटने की तैयारी में आ गया है लेकिन अभी तक लोगों को इस बार सीजन की झमाझम वाली बारिश देखने को नशीब नहीं हुई । हालांकि पूरे सीजनभर मौसम वैज्ञानिक भी जोरदार बारिश और जबरदस्त बर्फवारी की घोषणा करते रहे पर इंद्र देव टस से मस नहीं हुए । बशर्ते कि हिमालय की चोटियों में उन्होंने अपनी उपस्थिति अवश्य दर्ज कर बर्फ की सफेद चादर जरूर बिछाई थी, लेकिन वह भी उम्मीद के मुताबिक नाकाफ़ी ही रहा ।
अब आए दिन आने वाली वैज्ञानिक घोषणाओं को भी लोगों ने एक कान से सुनकर दूसरे से बाहर निकाल दिया था । वैज्ञानिक घोषणा को ठेंगा दिखाते हुए मौसम ने भी अचानक से अपना मिजाज बदल डाला था , आप सभी को ध्यान हो कि बीते चार दिनों में यानी 19 जनवरी की सुबह से सर्द मौसम का मिज़ाज गरमाने लगा था । सब यह कहने लगे बस अब सर्दी लौट रही और गर्मी आ रही है ।
इसीके चलते मौसम की गुनगुनी हवा के बीच 20 जनवरी की शाम को मैं बच्चों सहित माँ के पास सरस्वती बिहार स्थित भाई के घर पहुंच गया । वहां पहुंचते ही माँ ने तपाक से टोक दिया कि बच्चों को टोपी और मौजे क्यों नहीं पहनाए हैं ? बच्चे बोले दादी अब गर्मी स्टार्ट होने वाली है । तो दादी ने फिर बच्चों को और हमें अपने अनुभव के आधार पर ज्ञान बांटा उन्होंने कहा बेटा बेशक मौसम दो दिन से गर्म हो रहा है पर इस गर्मी का मतलब है कि बारिश होने वाली है । माँ मौसम के इस अचानक बदले मिजाज को (गढ़वाली के शब्द में वौप जैसा बताया) कहा “जबरी जबरी वौप य कुमपस्यो ह्वण लग,न त मतलब च कि बरखा औण वाळी च एक दुई दिन म ।” साथ ही साथ माँ ने बताया कि आज आसमान में खूब बढ़िया साण्डल भी आया है और यह चांद से बहुत दूर है मतलब आज रात या कल तक बारिश पक्का आएगी । दादी की इन बातों को सुनकर मेरी दोनों बेटियों को आश्चर्य हो रहा था और वह हंस भी रहे थे । उन्होंने मुझसे पूछा कि पापा सच में कल बारिश होगी अपने मोबाइल में वेदर रिपोर्ट देखो तो ….!
मैंने कहा बेटा नहीं यह दादी के अनुभव हैं और पहले के लोग अपने अनुमान व कुछ प्राकृतिक संकेतों के प्रकट होने पर आने वाली अच्छी या बुरी प्राकृतिक घटनाओं के बारे में भी बता देते हैं । जो सटीक भी होती हैं । तभी तो आपको हमेशा समझाया जाता है कि जो बात बुजुर्ग करते हैं या हमें समझाते हैं तो उन पर अवश्य अमल करना चाहिए । इसलिए आज मौसम का हाल भी हम दादी के अनुमान पर छोड़ते हैं । मोबाईल को नहीं देखेंगे ।
और कल दादी की घोषणा के बाद आज 21 जनवरी को अचानक से पौने चार बजे शाम को जैसे ही बारिश शुरू हुई तो मनस्विनी और यशस्विनी दोनों दौड़े दौड़े आए , पापा … पाप ! दादी पास हो गईं .. दादी पास हो गई …! और मेरा हाथ पकड़ छत पर लाए तो वाकही देखा तो छत गीली हो चुकी थी आसमान से लगातार बूंदों के टपकने का सिलसिला आरम्भ हो चुका था ।
दरअसल यह सब लोक अनुभव आधारित ज्ञान है । आज हम सबके पास सूचना के विभिन्न यंत्र मौजूद हैं हम तुरन्त गूगल बाबा की शरण में जाकर झट से जानकारी प्राप्त कर लेते हैं । परन्तु आज से महज दो दशक पहले तक इस तरह की कोई विज्ञान आधारित ज्ञान यन्त्र की सुविधा आम लोगों के हाथों में थी ही नहीं और तब तक लोग अपने अनुभवों के आधार पर या प्राकृतिक संकेतों को देखकर , पहचान आगे होने वाली गतिविधियों को भांप लेते थे ।
चंद्रमा के चारों ओर के छल्ले तब बनते हैं जब चंद्रमा से निकलने वाली रोशनी पृथ्वी के वायुमंडल के संपर्क में आती है । चन्द्रमा की रोशनी वायुमंडल में मौजूद बर्फ के क्रिस्टल और बादलों से गुजरती है, तो तब सुंदर मून रिंग का निर्माण अल्प समय के लिए होता है । लेकिन बर्फ के क्रिस्टल से बनने वाले इस आकार का बारिश होने या न होने संबंधित कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं । इसलिए इस घटना को विज्ञान फिलहाल मान्यता नहीं देता है । बेशक यह एक लोक मान्यता है हमने भी बचपन में दादी नानी या माँ से अक्सर ऐसा सुना है परन्तु फिलहाल इसे विज्ञान मान्यता नही देता है । डॉ0 दिनेश सती , प्रोफेसर, राजकीय महाविद्यालय गोपेश्वर ।
और खास तौर पर जमीन से लेकर आसमान तक में होने वाली हर एक प्राकृतिक घटना को हमारे पर्वतीय क्षेत्रों में बुजुर्ग पहचान लेते थे । आज भी यदि कोई शोधकर्ता दूरस्थ ग्रामीण अंचलों में पहाड़ों में मनुष्य और प्रकृति के आपसी व्यवहार पर शोध करे तो उसे कई आश्चर्यचकित करने वाले परिणाम दिखाई देंगे जो विज्ञान के समानांतर सटीक मिलेंगे । जैसे आसमान में चाँद के चारों तरफ बनने वाले इस गोल घेरे को साण्डल, सौंदल, या कहीं कहीं संदुल भी कहते हैं । बड़े बुजुर्ग चाँद के इर्द गिर्द बनने वाले इस आकर्षक गोले के छोटे, बड़े व मध्यम आकर के आधार पर ही मौसम का पूर्वानुमान लगा लेते थे । स्थानीय लोक भाषा में इसे लेकर कहावत है कि ‘दूर साण्डल नजीक च बरखा, अर नजीक सौंडल त दूर च बरखा।’ इसका मतलब ये है कि अगर चाँद से दूर गोलाई में छल्ला है तो बारिश आने वाली है , और यदि छल्ला नजदीक में है तो बारिश आने के आसार बहुत जल्दी नहीं है ।
हालांकि राजकीय महाविद्यालय गोपेश्वर में प्रोफ़ेसर डॉ0 दिनेश सती जानकारी दी कि चंद्रमा के चारों ओर के छल्ले तब बनते हैं जब चंद्रमा से निकलने वाली रोशनी पृथ्वी के वायुमंडल के संपर्क में आती है । चन्द्रमा की रोशनी वायुमंडल में मौजूद बर्फ के क्रिस्टल और बादलों से गुजरती है, तो तब सुंदर मून रिंग का निर्माण अल्प समय के लिए होता है । लेकिन बर्फ के क्रिस्टल से बनने वाले इस आकार का बारिश होने या न होने संबंधित कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं । इसलिए इस घटना को विज्ञान फिलहाल मान्यता नहीं देता है । डॉ0 दिनेश सती से चाँद के इस घेरे को लेकर वैज्ञानिक राय ली गई थी । उनका कहना था कि बेशक यह एक लोक मान्यता है हमने भी बचपन में दादी नानी या माँ से अक्सर ऐसा सुना है परन्तु फिलहाल इसे विज्ञान मान्यता नही देता है ।
और अब पहाड़ से लेकर मैदान तक इंद्रदेव जमकर बरस रहे हैं । चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, पिथौरागढ़, नैनीताल ,अल्मोड़ा और देहरादून जिलों के कई ईलाके बर्फ की मोटी चादर से ढक चुके हैं । पूरे प्रदेश में जबरदस्त ठण्ड लौट आई है । और अब बारिश का यह क्रम रुक रुककर फरवरी तक जारी रहने के संकेत भी हैं ।
विज्ञान मान्यता दे या न दे, फिलहाल बच्चे बेहद खुश हैं इस बात को लेकर कि उनकी दादी अपनी भविष्यवाणी में पास हो गई । और उन्हें अपने जीवनभर के लिए एक अनुभव दादी से प्राप्त हो गया है ।
2 thoughts on “और दादी पास हो गई ! वैज्ञानिकों पर भारी पड़ी दादी ! ”
धन्य हो दादी माँ
नई पीढ़ियों को भी सीखना चाहिए कुछ अपने बुजुर्गों से। मेरे घर पर आजकल कुछ कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। मिस्त्री को में भी बोला कि कल शाम तक बारिश होगी। वे लोग हँसने लगे कि इतनी अच्छी धूप है अब बारिश कहा होगी । मैने कहा देख लेना लेकिन दूसरे दिन भी सुबह धूप खिली रही । जब मिस्त्री लोग सुबह आकर मजाक में बोले सर जी आज तो बारिश होनी थी। मैंने कहा इंतजार करो दोपहर का खाना खाने के बाद जब बादल उमड़ने लगे तो लेबर कहनी लगी सर जी ने सही कहा था और शाम तक बूंदा बंदि सुरु हो गई थी। और दूसरे दिन झमाझम बारिश के कारण कल से काम बंद है। पूर्वानुमान लगाना भी एक अपना पुराना अनुभवों के आधार पर होता है।
बहुत ही सुंदर लेख पढ़ कर मजा आ गया। ज्ञान भी था , कहानी भी थी, परिवार का मिलन भी था , पत्रकारिता भी थी ।
धन्य हो दादी माँ
नई पीढ़ियों को भी सीखना चाहिए कुछ अपने बुजुर्गों से। मेरे घर पर आजकल कुछ कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। मिस्त्री को में भी बोला कि कल शाम तक बारिश होगी। वे लोग हँसने लगे कि इतनी अच्छी धूप है अब बारिश कहा होगी । मैने कहा देख लेना लेकिन दूसरे दिन भी सुबह धूप खिली रही । जब मिस्त्री लोग सुबह आकर मजाक में बोले सर जी आज तो बारिश होनी थी। मैंने कहा इंतजार करो दोपहर का खाना खाने के बाद जब बादल उमड़ने लगे तो लेबर कहनी लगी सर जी ने सही कहा था और शाम तक बूंदा बंदि सुरु हो गई थी। और दूसरे दिन झमाझम बारिश के कारण कल से काम बंद है। पूर्वानुमान लगाना भी एक अपना पुराना अनुभवों के आधार पर होता है।
बहुत ही सुंदर लेख पढ़ कर मजा आ गया। ज्ञान भी था , कहानी भी थी, परिवार का मिलन भी था , पत्रकारिता भी थी ।