केदार घाटी की बेटी रंजना रावत राष्ट्रपति सम्मान “नारी शक्ति पुरुस्कार” के लिए नामांकित ।
सन 2013 में मोदी के मन की बात से प्रेरणा लेकर शहर से नौकरी छोड़ गांव में स्वरोजगार की दिखाई थी नई राह।
वर्ष 2016 में रंजना यूथ आइकॉन नेशनल अवार्ड से हो चुकी हैं सम्मानित ।
तब से अब तक प्रयासरत है पहाड़ के खाली होते हुए गांवों की दशा बदलने में। सूबे के मुख्यमंत्री जी के हाथों भी हो चुकी हैं सम्मानित।
आइए आज आपको रूबरू करवाते हैं फार्मासिस्ट से फार्मर बन चुकी किसाण बिटिया से।
जी हाँ जिन हाथों ने बीमार ब्यक्तियों के लिए गोली, इंजेक्सन, आँखों की दवाई, ट्यूब से लेकर जीवन रक्षक दवाई बनानी थी वही हाथ अपनी पुरखों की माटी की मिटटी में सोना उगा रही है, २४ सालों तक जिन हाथों ने केवल पेन, पेन्सिल, रबर और मोबाइल को ही चलाया हो और उसके बाद पहली बार दारंती, कुदाल, बेलचा, गैंती, गोबर, से लेकर मिटटी से साक्षत्कार हुआ हो तो जरुर उसमे कोई न कोई ख़ास बात जरुर होगी, नहीं तो यों ही कोई पढाई लिखाई शहरों में करने के बाद रोजगार के लिए अपने गांव का रुख नहीं करते —
– हिमवंत कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की कर्मस्थली और महात्म्य अगस्त ऋषि की तपोभूमि में मन्दाकिनी नदी के बांयी और बसा है भीरी चंद्रापुरी का सुंदर क्षेत्र, इस पूरे इलाके में दर्जनों ग्रामसभाएं है जिनका केंद्र बिंदु भीरी है और गांव में एक बेटी है “रंजना रावत”। हेमवंती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय से फार्मेसी में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद कुछ साल बहुरास्ट्रीय कम्पनी में क्वालिटी ऑफिसर के रूप में नौकरी में कार्यरत थी। इस दौरान रंजना को कई रास्ट्रीय स्तर के सेमिनारों में प्रतिभाग करने का मौका मिला जिसमे उन्हें ग्रामीण इलाको की समस्याओं को जाना, मन ही मन रंजना लोगो के लिए कुछ करना चाहती थी, लेकिन वो अंतर्द्वंद में कैद हो कर रह गई थी, मन करता की लोगों के लिए कुछ करूँ और घर वाले और दोस्त नौकरी से खुश थे, इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम “मन की बात’’ में एक महिला द्वारा पूछे गए प्रश्न – की –क्या आपको पता था की आप एक दिन देश के प्रधानमन्त्री बनोगे? तो मोदी जी का जबाब था की नहीं “मैं कभी कुछ बनने का सपना नहीं देखता बल्कि कुछ करने के सपने देखता हूं और जब आप कुछ करते हो तो आपकी मेहनत बेकार नहीं जाती ।
आपको आपकी मेहनत के फलस्वरूप फल जरूर मिलता है।”– इस एक बात ने रंजना के मन की बात सुन ली और रंजना ने अपनी अच्छी खासी नौकरी को अलविदा कह कुछ अलग करने की ठानी और शहर से नौकरी छोड़ अपने गांव आ गई।
रंजना ने ग्रामीणों को प्रशिक्षत करके उन्हें स्वरोजगार का मंत्र दिया है। उनके कार्यों को कई मंचो पर सम्मान भी मिला है, स्वयं यूथ आइकन क्रियेटिव मीडिया भी उन्हें अक्टूबर 2016 में यूथ आइकन “नव ज्योति सम्मान” से सम्मानित कर चुका है। इसके अलावा उत्तराखंड सरकार द्वारा भी रंजना के प्रयासों को देखते हुए उन्हें वानिकी विश्वविद्यालय भरसार, पौड़ी गढ़वाल की प्रबंध कार्यकारिणी का सदस्य घोषित किया गया।
नौकरी छोड़ने के बाद जैसे ही इसके बारे में माता- पिता को बताया और अपने भविष्य के कार्यक्रम के बारे में अवगत करवाया तो माता- पिता सकते में आ गए, उन्हें लगा अपनी बेटी पर उन्होंने इतने पैसे खर्च किये अब वो लोगो को क्या कहेंगे, लेकिन रंजना की जिद के आगे आख़िरकार माता- पिता ने अपनी बेटी को हरी झंडी दे दी, नई उम्मीद, नए सपने और होंसलो को लिए रंजना ने जनवरी 2016 में चमकते भविष्य को छोड़कर अपने गांव की माटी की और रुख किया, और अपने गांव भीरी में ग्रामीण स्वरोजगार मिशन की शुरुआत की ।
शुरु शुरू में जरुर परेशानीयों से रूबरू होना पड़ा, लेकिन जिद और धुन की पक्की रंजना ने हार नहीं मानी, इस दौरान रंजना ने गांव गांव का भ्रमण कर लोगो को चंद पैसों के लिए शहर ना जाकर गांव में ही स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने का कार्य किया, जिसकी परणीती यह हुई की महज ३ सालों में ही रंजना ने अपने गांव भीरी को आज एक “स्वरोजगार माॅडल विलेज” के रूप में विकसित किया व हजारों लोगों को मशरूम उत्पादन व उद्यानिकी का प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोड़ा।
रंजना बताती है कि मैं पिछले तीन सालों से अपने गांव भीरी में खेती का काम कर रही हूं। मेरा मकसद है कि लोग थोड़ा बहुत पैसों के लिए अपना गांव न छोड़कर गांव में ही स्वरोजगार को अपनाये। हम चाहे तो अपने पहाड़ में बहुत कुछ कर सकते हैं इसी दिशा में मैंने सबसे पहले अपने गांव भीरी को “स्वरोजगार मोडल विलेज” बनाने की ठानी। पिछले तीन सालों की मेहनत से अब यह संभव हो पाया है। आज मेरे यहां लगभग 10 नाली व दो पाॅलीहाऊस पर सब्जियां उगाई जाती हैं,
। 65 नाली की जमीन में लगभग 1500 फलों के पेड़ लगाए हैं जिनमें से अधिकांश में फल आने लग गए हैं। 1000 sq. Ft. की मशरूम यूनिट बनायी है जिसमें आजकल बटन मशरूम लगा हुआ है। तीन गौशाला हैं। और तीन मछली पालन हैतु टैंक बनाए हैं जिनमें कुछ महीनों में मत्स्य पालन शुरू हो जायेगा। और आगे इसे विलेज टूरिज्म हेतु विकसित करने के लिए भी कार्यरत हूं। इसके साथ ही जखोली ब्लाॅक के कुछ गांवों को गोद लेकर वहां पर भी 1500 किसानों को स्वरोजगार से जोड़ने का लक्ष्य है जिस हेतु वहां पर भी कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। इसके साथ ही रंजना ने गांव में अत्याधुनिक कृषि उपकरणों से एक “फार्म मशीनरी बैंक” भी बनाया है।
रंजना ने ग्रामीणों को प्रशिक्षत करके उन्हें स्वरोजगार का मंत्र दिया है। उनके कार्यों को कई मंचो पर सम्मान भी मिला है, स्वयं यूथ आइकन क्रियेटिव मीडिया भी उन्हें अक्टूबर 2016 में यूथ आइकन “नव ज्योति सम्मान” से सम्मानित कर चुका है। इसके अलावा उत्तराखंड सरकार द्वारा भी रंजना के प्रयासों को देखते हुए उन्हें वानिकी विश्वविद्यालय भरसार, पौड़ी गढ़वाल की प्रबंध कार्यकारिणी का सदस्य घोषित किया गया।
बकौल रंजना कहती है की अब जाकर उन्हें लगता है की वो अपने कार्य में सफल हो पाई है, कहती है की ये तो महज एक शुरुआत भर है अभी तो बहुत ऊँची उड़ान भरनी है!
रंजना से हुई लम्बी गुफ्तगू में रंजना कहती है की आज भी हमारे समाज में लडकियों की जिन्दगी महज पढाई और शादी तक ही सिमित होकर रह गई है, आज भी बेटियों को सपने बुनने की आजादी नहीं है, लेकिन में बहुत खुसनसीब हूँ की मेरे माता- पिताजी ने मेरे सपनो को हकीकत में बदलने के लिए मेरा साथ दिया और मेरा होंसला बढाया शुरू शुरू में उन्हें आशंका थी लेकिन आज वे मेरी सफलता से बेहद खुश हैं, आगे कहती है की हमारे पहाड़ की महिलाओं का जीवन बेहद कठिन है, जितना मेहनत वे करते हैं उसका महज 5 फीसीदी ही उनके हिस्से आता है, यदि हम अपनी परम्परागत तकनीक में बदलाव लाकर नई तकनीक को अपनाए तो जरुर सफलता मिलेगी, जरुरत है तो सिर्फ और सिर्फ अपने हाथों पर विश्वास करने की, कुछ देर रुकने के बाद कहती है की मैंने भी तो अपने जीवन में कभी कुदाल, बेलचा, गैंती, सब्बल, कुल्हाड़ी, बांसुलू नहीं पकड़ा था और न ही इनके बारे में जाना था, लेकिन मन में लोगों के लिए कुछ करने का जूनून था, इसलिए पहले खुद से शुरुआत की और धीरे धीरे ये कारवां आगे बढ़ रहा है, आज मुझे काम करते हुये जो पहली मर्तबा देखेंगे तो उन्हें विश्वास ही नहीं होगा की मैंने 24 साल बाद कुदाल से लेकर कुल्हाड़ी पकड़ी है, लेकिन मेरा ब्यक्तिगत अनुभव कहता है की जीवन का आनंद जो अपने माटी की महक और सौंधी खुशबु में है वो मेट्रो और मॉल और बर्गर-पिज्जा में नहीं, जीवन का उदेश्य पूछने पर कहती हैं की खाली होते गांवो में यदि रौनक आ जाये, बंजर मिट्टी में सोना उगले, हारे हुये लोगों को होंसला दे सकूँ, भटके हुये लोगो को रास्ता मिल सके, पलायन कर चुके लोग वापस अपने गांवो की और लौट आये, और मायुस हो चुके चेहरों पर यदि खुशियों की लकीरों को लौटा सके तो मुझे लगेगा की में अपने मंजिल को पाने में कामयाब हो पाई, में चाहती हूँ की पहाड़ को लेकर जो भ्रांतियां लोगों के मन मस्तिष्क में घिर गई है की पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम नहीं आती है बस उसे बदलने का समय आ चूका है की अब पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ को नए मुकाम पर ले जा सकता है, अभी तो बस कुछ कदमों का सफर ही तय किया है आगे मंजिल साफ़ दिखाई दे रही है, पीएम मोदी को अपना आदर्श मानने वाली रंजना कहती हैं की बदलाव महज सोचने और कहने भर से नहीं आता है इसके लिए चाहिए की असली धरातल पर कार्य हो रहा है की नहीं, मुझे ख़ुशी है की पहाड़ के लोगों ने अपने बेटियों के प्रति परम्परागत सोच को तिलांजली देकर उन्हें आगे बढ़ने का होंसला दे रहें है।
रंजना रावत ने अपने चमकदार कैरियर को छोड़ पुरखों की माटी में पलायन को रोकने और रोजगार सृजन की जो मुहीम चलाई है वो सुखद है और इसी मेहनत के बदौलत आज उनका नामांकन 2019 में राष्ट्रपति द्वारा मिलने वाले सम्मान “नारी शक्ति पुरुस्कार” के लिए हुआ है जिसके लिए उन्हें आप सभी के वोट व सहयोग की आवश्यकता है ।
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https://narishaktiawards.com/users/nominee/387?_method=POST&category_id=3&search=Ranjana+Rawat
PLEASED TO READ & KNOW ABOUT RESPECTED RANJANA RAWAT JI AN ICON FOR YOUTH NOT ONLY OF UK BUT WHOLE COUNTRY TOO.I PAY MY HONOR TO SUCH IRON CHARACTOR.MAY THE DAYS COMING HER LIFE BE MORE HAPPIEST & JOYFULL.