Negligence : जबड़े सिले मोबाइल की लाईट में, तो हड्डियाँ जोड़ी गई कैंडील लाईट में । 6 घंटे तक तड़पती रहीं 21 जिन्दगियां…! वाह री सरकार …!
Sringar, सोमवार को स्थानीय गोला पार्क मे शाम 7 बजे आम आदमी पार्टी की उत्तराखंड बचाओ यात्रा के तहत एक जनसभा चल रहीं थी, तब मै भी वहां पर मौजूद था । कुछ देर बाद मेरे फोन पर एक अनजान फोन कॉल आयी जिसे रिसिव करते ही दूसरी ओर से वह व्यक्ति बेहद घबराया हुआ हड़बड़ाया हुआ था कहने लगा मेरी बच्ची को बचा लो साहब ! कहां हैं आप लोग ? मेरी इकलोती लड़की है, अगर उसे कुछ हो गया तो मै भी जिन्दा नहीं रहूंगा” । फोन मेरे कान में था मेरे कई बार पूछने के बाद कि आप घबराईए मत हम जरूर आपकी मदद करेंगे लेकिन तभी जब आप यह बताएँगे कि आप इस वक़्त कहाँ है और आपकी बेटी के साथ कौन सी घटना घट गई है ?
फिर फोन पर एक लड़की के पिता ने रोते-रोते बताया कि श्रीनगर के अस्पताल में है बस इतना बताते ही उसकी आवाज लड़खड़ाती हुई बंद हो गई । मै भी अपने अन्य पत्रकार साथियों को लेकर अस्पताल की ओर भागा । अस्पताल पहुँचते ही हमने देखा तो पूरा परिसर अंधेरे में डूबा हुआ है और अंदर से ज़ोर-ज़ोर से चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनाई दे रही थी ऐसा लग रहा था कि मानो कोई भूतिया हवेली में हम आ गए हों । मोबाईल लाईट के सहारे हम एक साथ इमरजेंसी वार्ड की ओर बढ़े तो वहां दिल दहला देने वाला दृश्य देख मै स्वयं भी विचलित हो गया, चारों ओर खून से लतपत हुए तड़पते लोग थे वह दर्द के मारे ज़ोर-ज़ोर से चीख रहे थे, कराह रहे थे । वहां जो देखा उससे मै हैरान हो गया था । डॉक्टर बदहवास हुए इधर से उधर कभी अंदर तो कभी बाहर आना-जाना कर रहा था वह भी बेचैन और परेशान था ।
दरअसल सोमवार की दोपहर बदरीनाथ राजमार्ग पर दो बसों की आमने-सामने की टक्कर हो गयी थी जिसमे 30 से अधिक लोग घायल हो गये थे । तब घायलो को स्थानीय लोगों की मदद से बेस अस्पताल श्रीनगर मे तक लाकर भर्ती करवाया गया, घटना मे कोई हताहत नहीं हुआ इसलिए मीडिया ने भी घायल हुए इन लोगो की खबर लेने बेस चिकित्सालय जाना जरूरी नहीं समझा । मै भी उस मीडिया में से एक हूं । मै समझता हूँ कि यह घटना बतौर पत्रकार मेरे लिए भी एक सबक है ।
एक तड़पती बच्ची के पिता के फोन आने पर हम सब तब अस्पताल परिसर मे पहुंचे वहां जो दृश्य सामने थे वह किसी भी इंसान को झकझौर देने के लिए काफी थे इमरजेन्सी मे पूरी तरह से अंधेरा छाया हुआ था । हमने मोबाईल की लाइट जलाकर अंदर जाने के लिए रास्ता खोजना शुरू किया तो इमरजेंसी के मुख्य द्वार पर खून से लतपत एक आदमी उपचार के लिए तडफता दिखा अचानक इमरजेंसी
के अंदर से एक परेशान डॉक्टर झल्लाता हुआ बाहर आया और कहने लगा कि “यह सब कुछ नहीं कर सकते हैं, ये हमे ऐसे ही पब्लिक के हाथों पिटने के लिए छोड देंगे” जाहिर है डॉक्टर की झल्लाहट और खीज सिस्टम से थी, सरकार से थी ।
उसी बीच डॉक्टर अंदर गया हम भी पीछे-पीछे चल दिये इमरजेन्सी वार्ड में तो वहां देखा कि मोबाईल टार्च की लाइट से दुर्घटना मे गंभीर रूप से घायल एक व्यक्ति के जबड़ों को सिला जा रहा था, जिसकी चीख पुकार हास्पिटल की खामोशी को चीर रही थी । इमरजेन्सी वार्डो में चारों ओर नजर दौडायी तो एक जैसा नजारा सब तरफ था । कहीं मोमबंती तो कहीं मोबाईल लाईट के सहारे उन्य घायलों को उपचार दिया जा रहा था ।
इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे की बदरीनाथ केदारनाथ यात्रा मार्ग के इस सबसे बड़े अस्पताल मे लाईट तक की व्यवस्था नहीं थी । इससे बड़ी यह कि, इस मौके पर अस्पताल का कोई जिम्मेदार अधिकारी तक वहां मौजूद नहीं था । अस्पताल की वर्तमान व्यवस्था पौडी DM के हाथों मे है उनके मोबाईल पर कई बार संपर्क करने की कोशिस हुई पर बात नहीं हो पायी ।
रात के अंधेरे में जब मीडिया का जमघट अस्पताल में लगा तो तब जैसे-तैसे अस्पताल प्रशासन ने जनेटर की व्यवस्था की और तब जाकर छह घंटे बाद दुर्घटना मे गंभीर रूप से घायल 21 लोगो को रोशनी में उपचार दिया जाने लगा ।
*पंकज मैंदोली
Copyright: Youth icon Yi National Media, 24.05.2016
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