PCS अधिकारियों के प्रकरण के चलते प्रचंड बहुमत वाली सरकार और उसके मुखिया त्रिवेन्द्र रावत के प्रशासकीय कौशल की कैसे खुल रही है पोल बात रहे हैं इंद्रेश मैखुरी ।
दो पी.सी.एस. अफसरों के प्रकरण में उत्तराखंड में पिछले कई दिनों से जो नाटक चला,उसने उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से सत्तानशीन हुई सरकार और उसके मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रशासकीय कौशल की पोल खोल दी. दरअसल एक दिन बड़े जोरशोर से ऐलान हुआ कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने दो पी.सी.एस.अफसरों- ललित मोहन रयाल और डा.मेहरबान सिंह बिष्ट को अपना अपर सचिव नियुक्त कर दिया है.कतिपय.भाजपाई,कई दिनों से इस बात से बड़े परेशान थे कि लोग मुख्यमंत्री के एक्शन में न दिखने के ताने, उन्हें रोज-ब-रोज दे रहे थे.जैसे ही उक्त दो अफसरों को मुख्यमंत्री का अपर सचिव नियुक्त किये जाने का आदेश आया,वैसे ही ये भाजपाई तो जैसे बल्लियों उछलने लगे.सोशल मीडिया पर तत्काल उन्होंने ऐलान कर दिया कि देखो,हमारी सरकार ने इमानदार अफसरों को तवज्जो देना शुरू कर दिया है.अब-भय न,भ्रष्टाचार का नारा साकार हो कर रहेगा ।
लेकिन भ्रष्टाचार से निपटने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय में इमानदार अफसर नियुक्त करने का यह दावा एक-आध दिन ही टिक सका.उसके बाद तो ऐसा तमाशा शुरू हुआ,जो अब तक देखा नही गया था.उक्त अफसरों की नियुक्ति के दूसरे दिन से चर्चा शुरू हो गयी कि पी.सी.एस. अफसरों की अपर सचिव पद पर नियुक्ति से आई.ए.एस. खेमा नाराज हो गया है.बताया गया कि यह नाराजगी इसलिए है क्यूंकि उनका मानना है कि अपर सचिव पद पर आई.ए.एस. ही नियुक्त होने चाहिए. फिर खबर आई कि अपर सचिव नियुक्त किये गए दोनों अफसरों को एक रैंक नीचे यानि संयुक्त सचिव पद पर नियुक्त करने का नया आदेश जारी हो गया है.यह प्रशासकीय इतिहास में संभवतः अनूठा उदाहरण होगा जब किसी अफसर को पहले उच्च पद पर नियुक्त किया गया और फिर बिना किसी कारण या गलती के डिमोट करके एक पद नीचे ले आया गया. चलिए एक बार को यह तर्क मान लेते हैं कि उक्त दोनों अफसरों को अपर सचिव नहीं बनाया जा सकता था.परन्तु इस दशा में प्रश्न यह उठता है कि जब उक्त दो पी.सी.एस.अफसरों को नियुक्त करने का निर्णय मुख्यमंत्री द्वारा लिया गया,तब इस बात का परीक्षण क्यूँ नहीं करवाया गया कि उन्हें किस पद पर नियुक्त किया जा सकता है?क्या कार्मिक विभाग से लेकर मुख्य सचिव तक सब नियमों से अनिभिज्ञ थे? यदि कार्मिक विभाग से लेकर मुख्यसचिव तक ने उक्त दोनों अफसरों की नियुक्ति अपर सचिव के रूप में करने पर संस्तुति दी थी तो फिर मुख्यमंत्री को कदम वापस खींचने की जरूरत क्यूँ पड़ी?आखिर वो आई.ए.एस.लॉबी से इतने भयाक्रांत क्यूँ हुए कि उन्होंने अपना निर्णय वापस ले कर उक्त दोनों अफसरों को खामखाँ डिमोट होनी की पीड़ा झेलने के लिए मजबूर किया? यदि मुख्यमंत्री ने बिना नियमों की जानकारी के उक्त अफसरों का प्रमोशन और फिर डिमोशन किया तो वे कैसी सरकार चलाएंगे यह खुद ही समझा जा सकता है.यदि वे नियमतः सही होने के बावजूद आई.ए.एस.लॉबी के समक्ष झुक गए तो उनकी स्थिति बेहद दयनीय है.दोनों ही सूरतों में प्रशासनिक स्तर पर उनके असफल साबित होने के लक्षण साफ़ नजर आ रहे हैं.
सवाल तो यह कि जितनी तेजी से इन दो अफसरों के मामले में नियुक्ति और नियुक्ति निरस्तीकरण की प्रक्रिया चली वह अन्य नियम विरुद्ध नियुक्तियों में क्यूँ नहीं दिखाई देती है.मृत्युंजय कुमार मिश्रा किस आई.ए.एस.कैडर के हैं कि वे अपर स्थानिक आयुक्त हो सकते हैं? क्या वे रजिस्ट्रार सर्विसेज के व्यक्ति हैं कि वे तकनीकि विश्वविद्यालय और आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार पद पर नियुक्त हो जाते हैं.मिश्रा तो उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता भर हैं.राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता की तकनीक या आयुर्वेद में कितनी विशेषज्ञता हो सकती है,समझा जा सकता है.लेकिन बावजूद इसके, मिश्रा के रास्ते में कोई नियम आड़े नहीं आता.कोई आई.ए.एस.लॉबी नाराज नहीं होती और कोई मुख्यमंत्री उस आई.एस.लॉबी के दबाव में कदम पीछे भी नहीं खींचता.बल्कि हर मुख्यमंत्री तो मिश्रा और मिश्रा जैसों के पीछे मजबूती से ही खड़ा नजर आता है.
पुनः दो पी.सी.एस.अफसरों के मामले पर लौटते हैं.उनका मामला तो पहले अपर सचिव और फिर संयुक्त सचिव बनाने पर ही नहीं रुका.दो दिन पहले की खबर यह है कि ये दोनों अफसरों की मुख्यमंत्री कार्यालय में नियुक्ति निरस्त कर दी गयी है और वापस ये उन्हीं पदों पर भेज दिए गए हैं,जिन पदों पर ये अपर सचिव,संयुक्त सचिव वाले नाटक से पहले तैनात थे.कहावत तो यह है कि लौट के बुद्धू घर को आये.पर उक्त दोनों अफसर तो सरकार द्वारा बुद्धू बना कर अपने पुराने पदों पर भेजे गए.लेकिन इसमें सरकार और मुख्यमंत्री भी कोई बुद्धिमान नहीं साबित हुए.बल्कि उनका लचरपना ही प्रकट हुआ.नौकरशाही के बारे में कहा जाता है कि यह ऐसा घोडा है,जो सवार के कौशल के हिसाब से चलता है.सवार कुशल है तो घोडा सरपट दौड़ेगा.सवार अनाड़ी है तो घोडा सवार को लुढका भी सकता है.पर इस मामले में तो सवार,घोड़े के सामने बेबस सिद्ध हुआ.यहाँ से जो रास्ता आगे को जाता है,उसमें सवार की लगाम घोड़े के हाथ में चली गयी है.ऐसे में सफर का अंजाम स्वतः समझ सकते हैं.
-इन्द्रेश मैखुरी
Nice…
यंह क तै बोल्दा, ये झुँतु तेरी जमीदारी,
तब क्या ब्वन, फंडफुका छी: अपणा छोरा की किस्मतै खराब छ: चूचा, 17 साल कु होगये बल हमरु उत्तराखंड अर अजये 10वां पास नी हो स्की।
कुल ख्ननकलू का राज छः
भैजी प्रणाम
Urttrakhnd prgti ki aur