Raibar : ए भाई, पत्रकार ..! कन ह्वे त्येरु यु “रैबार” । क्या केदार के जख्मों को कचोट रही है कलम ?
जिन कलमकारों को हमारे पलायन, बेरोजगारी, और दु:ख-दर्द का तारणहार बनना था वे हमारे ही आंसुओं से अपने लालच की फसल की सींच रहे हैं । वर्ष 2017 के जाते जाते उसके अंतिम पड़ाव में पूरे प्रदेश में जोरदार सुगबुगाहट है कि दिल्ली से संचालित किसी बड़े हिंदी न्यूज चैनल का एक पत्रकार केदारनाथ आपदा के नाम पर डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए बीबी के खाते में वसूल चुका है डेढ़ करोड़ । कौन है ये पहाड़ी मूल का पत्रकार ?
जिस केदारनाथ आपदा से देश और दुनिया सिंहर गई थी ऐसी आपदा के बीच जहां लोग आज भी अपनों को ढूंढ रहे हैं ऐसे में यही आपदा कईयों के लिए तिजोरी भरने के स्वर्णिम अवसर लेकर आई ।
पलायन से उजड़े इस उत्तराखंड के प्रवासी हम आपदा पीड़ितों को आखिर क्या “रैबार” देना चाहते हैं ?
धीमे-धीमे दिल्ली से चली फुस-फुसाहट अब हिमालय में हर एक के कान पर साई-साई की आवाज में बदल चुकी है । दुर्भाग्य है कि जिस-जिससे हम उम्मीद करते हैं, या सर आंखों पर चढ़ाते हैं, उन्हें या तो नजर लग जाती है या वह खुद ही आत्मघाती कदम उठा लेते हैं । जनता अनेक विभूतियों को आइकन मान लेती है, जबकि वह किन्ही न किन्ही विवादों में रहने के कारण प्रभावित हो जाते हैं ।
उसी तरह जिन कलमकारों को हमारे पलायन, बेरोजगारी, और दु:ख-दर्द का तारणहार बनना था वे हमारे ही आंसुओं से अपने लालच की फसल की सींच रहे हैं ।
वर्ष 2017 के जाते जाते उसके अंतिम पड़ाव में पूरे प्रदेश में जोरदार सुगबुगाहट है कि दिल्ली से संचालित किसी बड़े हिंदी न्यूज चैनल का एक पत्रकार केदारनाथ आपदा के नाम पर डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए बीबी के खाते में वसूल चुका है डेढ़ करोड़ । कौन है ये पहाड़ी मूल का महान पत्रकार ?
अगर वाकही प्रदेशभर में हो रही आमजन के बीच की इस सुगबुगाहट में दम है तो सरकार के लिए यह बड़ा पत्रकार आत्मघाती बम साबित होगा ।
बताया जा रहा है कि कई लोग तो इस पत्रकार के नाम के दम पर चलने वाली चमचमाती पत्रिका के दो तीन अंको को इकट्ठे ही खीसे में लेकर जहां – तहां घूम रहे हैं ।
इस पत्रिका में इस राष्ट्रीय पत्रकार की देश के अति प्रमुख लोगों के साथ घनिष्ठता दर्शाती फोटो भी खूब छपी है बल ।
व्हाट्सप पर भी खूब बड़े स्तर पर वायरल करने की रणनीति तैयार हो रही है बल । बस अब पत्रकार जी को इस बात का डर जरूर सता सकता है कि अगर पहाड़ी छुंयालों ने कखी बड़े चैनल के साबों के सामने स्वांली पकोड़ी रख दी तो पत्रकार जी की साख व नौकरी दोनों खतरे में पड़नी पक्की बात है बल ।
पर होगा कौन ? मैं भी उस रसूखदार पत्रिका को ढूंढ रहा हूँ । अगर किसी को मिले तो कृपया दर्शन करा दें आभारी रहूंगा ।
वाकही एक पत्रकार द्वारा बीबी के खाते में सरकारी खजाने से डेढ़ करोड़ रुपया ठिकाने लगाने वाली यह बात अगर सच है तो यह हमारी पत्रकार बिरादरी के लिए बेहद ही शर्म की बात है । क्योंकि राज्य के पत्रकारों की जनसरोकारों के साथ दोहरी व तिहरी भूमिका रही है । उत्तराखंड राज्य के पत्रकारों ने राज्य आंदोलन की रिपोर्टिंग भी की है और नारे भी लगाए हैं साथी ही जनसमस्याओं के ज्ञापन भी खूब लिखें खबरें भी बनाई । और आज भी बखूबी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं । ऐसे में कोई पहाड़ी मूल का पत्रकार अब अचानक से आपदा पीड़ितों के चंदे की रकम से करोड़ों की फिल्म बनाए तो यह खबर भीतर तक जरूर हिलाने वाली है । बताया यह भी जा रहा है कि जिस फिल्म का करीबन डेढ़ करोड़ का भुगतान हो चुका है, उस फिल्म का अभी तक कोई अता-पता भी नहीं है इसीलिए आज हम यह शीर्षक दे रहे हैं …
अगर दो लोगों के बीच जो बात हो रही है और उस बात को सच मान लेते हैं तो हम यकीनन इतना ही कहेंगे ..
“ए भाई, पत्रकार ..! कन ह्वे त्येरु यु रैबार ।
अभी ज्यादा समय नहीं बीता, जहां कैलाश खेर केदारनाथ यात्रा को सुरक्षित बताने वाली CD चर्चाओं में रही और हर एक संवेदनशील व्यक्ति ने देश दुनिया से आए हुए उस चंदे के पैसे से सीडी बनाने का जबरदस्त विरोध किया था । वहीं अब उसी आपदा के पैसे को बंदर बांट कर जब जिम्मेदार व्यक्ति या जब कोई जिम्मेदार बाड़ ही खेत खाने लगे तो क्या कहेंगे आप ?
हल्का सा खुलासा करते हैं …. चर्चा है कि दिल्ली नोएडा से संचालित एक राष्ट्रीय हिंदी न्यूज चैनल के रिपोर्टर की पारिवारिक पत्रिका रसूखदार लोगों से अटी पड़ी है । जिसके आधार पर प्रभावशाली लोगों से संपर्क कर और उनके नाम का सहारा लेकर देश की नामी कंपनियों का सीएसआर फंड भी ठीक से निपटाया जा रहा है ।
हालांकि अभी यह रिपोर्ट तो कानो सुनी बात पर आधारित है । और उम्मीद है कि शायद अब सबूतों तक पहुंचेगी भी । पर यह भी तय है कि यह बात अब दूर तलक जाएगी जरूर ।
और क्या होगा आगे रैबार , जानने के लिए कर रहे हैं सब बेसब्री से इंतजार ।
मैठानी जी बहुत खूब.यहां के पत्रकारों को तो कुछ पैसों के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं.और बाहर के लोगों को लुटाया जा रहा है.हम राज्य बनाने वाले किनारे पड़े हैं.धन्यवाद.आपके लेख के लिए.