ढनौरासेरा , गोलू देवता का मंदिर
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धर्म – संस्कृति …! 

ढनौरासेरा …!  जहाँ चोटी देवता (जिन्न/राक्षस) ने पूरा गॉव ही शमशान बना दिया था ।

लेखक : मनोज इष्टवाल । देहारादून
लेखक : मनोज इष्टवाल ।
देहारादून

 *आखिर क्यों प्रसिद्ध हैं ढ्नौरासेरा का भनारी ग्वल देवता… ? 

 *क्या यहीं के वीरू भनारी (वीर सिंह भंडारी) ने की थी गोलू देवता की ह्त्या … ?

ढनौरासेरा , गोलू देवता का मंदिर
ढनौरासेरा , गोलू देवता का मंदिर

भावना इतनी प्रगाढ़ हुई कि गॉव (ढनौरासेरा) छोडकर भागे भंडारी जाति के लोगों ने कंडारी जाति का चोटी देवता के माध्यम से मटियामेट ही कर दिया. पूरा वासिखेत लगा कूनाखेत कालान्तर में शमशान में तब्दील हो गया.

किंवदन्तियों के आधार पर यदि कहा जाय तो कई कथाकार कहते हैं कि भद्रावती नदी के पास हुए युद्ध में धोखे से वीरू भंडारी ने गोलू देवता को मौत के घाट उतारा जबकि कुमाऊ के प्रसिद्ध खोजी इतिहासकार डॉ. भट्ट का कहना है कि कोट के वीरू भंडारी ने गोलू की ह्त्या कर दी थी.

गोलू देवता की मृत्यु एक रहस्य है कुछ जागारों/ कथाकारोंका कहना है कि गोलू देवता घोडाखाल (नैनीताल) में घोड़े सहित

चोटी जिन्न (देवता स्थान)
चोटी जिन्न (देवता स्थान)

ताल में समाये तो कुछ का कहना है कि डोटी के राजा शाही ने उन्हें छळ पूर्वक मरवा दिया था जबकि बिनता उदयपुर की जागर में यह साफ़ आया है कि डोटी के राजा शाही के सेनापति शोभना डोटी को मौत के घाट उतारकर गोलू ने डोटी राज्य विजयी किया तत्पश्चात ही चम्पावत के राजा शालिवाहन ने उनका चम्पावत की गद्दी पर राजतिलक किया.

धनौरासेरा के गोलू देवता के बारे में मंदिर के पुजारी राजन भंडारी, गोकुल भंडारी व मंतोली ग्राम के प्रधान प्रकाश भट्ट ने लगभग एक सी कहानी बताई है. उनका कहना है कि पहले ढनौरासेरा में भंडारी ही रहते थे लेकिन भद्रावती नदी के आर पार उपजाऊ जमीन होने के कारण वे अपने साथ कंडारी जाति के लोगों को ले आये. धीरे धीरे कंडारी अपना बर्चस्व बढाते गए और भंडारियों को उन्होंने अपने रौब

पूजा अर्चना मंदिर में
पूजा अर्चना मंदिर में

दाब से दबाना शुरू कर दिया. कहते हैं भंडारियों के बुजुर्ग कालू भंडारी से कंडारी लोगों ने पूरा वासिखेत लगा कूनाखेत छीन लिया जिसमें कई खार बासमती धान उत्पन्न होती थी. रोते बिलखते कालू भंडारी चम्पावत मौल (माल/चौड़) आ गए. भूखे पेट रह वे देवीदेवताओं को कोसने लगे. एक दिन मौल की तुमड़ी से आवाज आई कि देख में इस तुमड़ी में बंद हूँ. मुझे इसमें इसलिए बंद रखा है ताकि मैं किसी का खून न पी सकूँ. मुझे इंसानी गर्म खून अच्छा लगता है. तुम लौकी की तुमड़ी के चोटी वाले भाग को उठाओ और उसमें अपनी अंगुली काटकर उसका खून टपका दो.

कालू भंडारी बहुत भयभीत हुए लेकिन उन्होंने साहस करके पूछ ही दिया इससे मेरा क्या भला होगा. तुमड़ी से आवाज आई कि मुझे पता है कि कंडारियों ने तुम्हारे खेत खलिहान सब छीन लिए हैं अब अगर तुम बदला लेना चाहते हो तो जैसा मैं कहू वो करो ! कालू भंडारी बदले की आग में पहले ही जुलस रहा था उसने तुमड़ी का चोटी वाला भाग (उपरी हिस्सा) खोला और उसमें अपने खून की बूंदे टपकाकर कहा अब बताओ कि तुम कौन हो…? तुमड़ी से आवाज आई – मैं चोटी राक्षस हूँ, तुम चाहो तो मुझे देवता स्वरुप मान सकते हो. अब मुझे अपने गॉव ले चलो जहाँ से तुम्हारे गॉव की सरहद शुरू होगी वहां मुझे बता देना और तुमड़ी का चोटी वाला हिस्सा खोल देना.

आखिर कल्ल भंडारी (कालू भंडारी) चम्पावत मौल क्षेत्र जिसे भावर का तराई क्षेत्र माना गया है से अपने गॉव की ओर चल पड़ा मीलों पैदल चलने के बाद कई दिन बाद जब कल्ल भंडारी अपने गॉव की सरहद की चोटी पर पहुंचा तो उसे भद्रावती नदी के आर पार फैले अपने खेत दिखाई देने लगे. यह स्थान वर्तमान में बागेश्वर व पिथौरागढ़ का सीमावर्ती क्षेत्र है. ढनौरासेरा के गोलू देवता को कई लोग कांडा का ग्वल नाम से भी जानते हैं. सीमावर्ती क्षेत्र में पढने के कारण कई इसे बागेश्वर में बताते हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष बागेश्वर हरीश ऐठानी के अनुसार वैसे तो ग्वल देवता के चम्पावत चितई व घोडाखाल मन्दिर प्रसिद्ध रहे हैं लेकिन ढनौरासेरा का ग्वल तत्काल है वह इस क्षेत्र की माँ बहनों की एकदम पुकार सुनता है.

FB_IMG_1461057942207कल्ल भंडारी ने जब देखा कि वासिखेत लगा कूनाखेत में कंडारी जाति के 18 जोड़ी बैल जुते हुए हैं और खूब हास परिहास चल रहा है तो उसके आंसू निकल पड़े वह डरने लगा कि कहीं इन्होने मुझे देख लिया तो मार न डालें. तब तक तुमड़ी से आवाज आई अब मुझे खोल और मेरी कारामात देख! यह सुनकर डर के मारे तुमड़ी कल्ल भंडारी के हाथ से छूट गई और पहाड़ी ढाल पर लुढ़कती हुई उस स्थान पर जा पहुंची जहाँ आज चोटी राक्षस (जिन्न) जिसे ग्रामीण देवता मानते हैं का स्थान व गोलू देवता का मंदिर है. यहाँ से चोटी देवता की जब सामने के खेतों (वासिखेत लगा कूनाखेत) पर नजर पड़ी तो देखते ही देखते 18 जोड़ी बैल वहीँ दम तोड़ गए. हाहाकार मचा तो कल्ल भंडारी डर के मारे भागने लगा चोटी नामक जिन्न ने आवाज दी तू डर मत जिनसे डर कर तू भागा था उनके कुल में जो भी यहाँ रहेगा मारा जाएगा. कंडारी कुछ तो वहां से भाग खड़े हुए जो वहां थे उन्हें चोटी जिन्न ने वहीँ मार डाला उनके घर तबाह कर दिए. आज भी खेतों में उनके खंडहरों के कुछ हिस्से दिखाई देते हैं.FB_IMG_1461057934744

पिथौरागढ़ जिले का बागेश्वर से लगा यह अंतिम सीमावर्ती गॉव है. कल्ल भंडारी अब अपने गॉव लौट चुका था लेकिन चोटी जिन्न ने अब बाहर से किसी का भी उस क्षेत्र में परिवेश निषेध कर दिया जो उस क्षेत्र में आता मारा जाता. कल्ल जिन्न खून का प्यासा था वह भंडारी के वचन में बंधकर वहां आया था इसलिए भंडारी जाति को छोड़कर जो भी उधर आता वह उसके खून का प्यासा हो जाता. थक हारकर भंडारी गोरिलचौड़ (चम्पावत) के गोलू देवता के मंदिर पहुंचा और न्याय की गुहार लगाईं. गोल्जू देवता वहां से कल्ल भंडारी के साथ ढनौरासेरा एक लोडी (पत्थर) के रूप में आये और उन्होंने किसी तरह से चोटी जिन्न को साधकर उसे भी वहीँ स्थान दिया. तब से चोटी जिन्न राक्षस न रहकर इस क्षेत्र के लोगों के लिए देवता स्वरुप हो गया उसके लिए आज भी यहाँ बलि चढ़ती है जो मानव की जगह बकरे की बलि में तब्दील हो गया है. यहाँ आने के बाद गोलू देवता भनारीग्वल कहलाये व ढनौरासेरा के भंडारी उसके पुजारी हुए.

हमारी टीम जिसमें जीवन चन्द्र जोशी, कविता जोशी, हिमांशु जोशी, प्रभा जोशी, गंजन जोशी, पूजा बिष्ट, सुमन डोभाल, हरीश जोशी, भूमेश भारती, प्रकाश भट्ट ग्राम प्रधान मंतोली इत्यादि जब यहाँ पहुंचे तब मंदिर में पूजा चल रही थी. ग्वल देवता ने किसी की मन्नत पूरी की थी !

Youth icon Yi National Creative Media Report . 19.04.2016

By Editor