Reverse migration एक चुनौती ! क्या रिवर्स पलायन करा पाएगी उत्तराखण्ड में सरकार ?
सुविधाओं के अभाव में भारतीय नागरिकों की अपने मूल स्थान से सुविधायुक्त स्थानों की तरफ पलायित हो जाने की जब भी चर्चा होती है, सभी पर्वतीय एवं पलायनवादी राज्यों में उत्तराखंड शीर्ष स्थान पर होता है। इसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला, उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में सुख सुविधाओं; अर्थात शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार का अभाव और दूसरा, आपदाओं का यहां के निवासियों पर अत्याधिक बोझ। हर वर्ष उत्तराखंड किसी-न-किसी आपदा को लेकर राष्ट्रीय सुर्खियों में रहता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल उत्तराखण्ड में ही है, लेकिन हाल ही में उत्तराखण्ड के ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की ओर से प्रकाशित हुई पहली ‘अंतरिम पलायन रिपोर्ट’ भयावह तस्वीर को उजागर करने वाली है। इस रिपोर्ट में साफतौर पर कहा गया है कि राज्यनिर्माण के बाद से यहां के अधिकतर निवासियों ने सुख-सुविधाओं के अभाव में अपना घर-बार छोड़ राज्य के बाहर या राज्य के सुविधासम्पन्न शहरों को अपना नया ठिकाना बना दिया है। पलायन के स्वरूप में विस्तार होने से एक नईं समस्या ने भी जन्म ले लिया है। हश्र यह है कि, जिन शहरों में लग्जरी लाइफ का सपना लिए लोग पलायित होकर गए थे, वहां जनसंख्या विस्फोट (1 वर्ग किलोमीटर में क्षमता से अधिक लोगों का होना), अत्यधिक ट्रैफिक और प्रदूषण जैसी समस्याओं ने विस्तारित रूप में अपने पांव पसार लिए हैं।
पलायन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद सरकार रिवर्स पलायन अर्थात जो लोग गाँव छोड़ पलायन कर शहरों में आए हैं, उन्हें आवश्यक सुविधायें मुहैया कराकर वापस अपने मूल स्थान भेजने को लेकर चिंतन करती दिखाई दे रही है। अब सवाल यह है कि क्या वास्तव में रिवर्स पलायन सम्भव है ? इसका जवाब हां में दिया जाय तो गलत नहीं होगा लेकिन कुछ शर्तों को पूरा करने के साथ ही यह जवाब देना तर्कसंगत प्रतीत होता दिखाई देगा। रिवर्स पलायन की पहली और मूल शर्त यही होगी कि पहाड़ में मूलभूत सुविधाओं का युद्धस्तर पर विकास किया जाय, जिससे लोगों को अपनी समस्याओं को निचले स्तर पर ही सुलझाने का अवसर प्राप्त हो सके। दूसरी मौलिक शर्त की बात करें तो राज्य के निवासियों को ग्रामस्तर पर ही ऐसा प्रशिक्षण दिया जाय कि वह राज्य की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक (कृषि) व द्वितीयक (निर्माण एवं विनिर्माण) क्षेत्रकों में काम कर लाभ कमाने के काबिल बन सकें । राज्य के लिए तीसरी चुनौती आदमखोर वन्यजीवों जैसे: बंदर, सुअर, नरभक्षी बाघ आदि पर नियंत्रण लगाने की होगी। क्योंकि वीरान पड़ते गांवों में अब आदमखोर वन्यजीव अपना बसेरा बनाने लगे हैं। चौथी प्रमुख शर्त आपदा प्रबंधन करने और इससे निपटने की होनी चाहिए, जिसके लिए मुस्तैद सुरक्षा दल और तकनीक का सामंजस्य बेहद जरूरी होना चाहिए।
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार पहाड़ के लोगों को रोजगार एवं मूलभूत आवश्यकताओं के विकास हेतु संसाधन उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है जैसे कि, राज्य की महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रसाद योजना, गामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होम स्टे योजना, ग्रोथ सेंटरों का निर्माण, पिरूल नीति आदि-आदि। लेकिन यह प्रयास कछुआ गति से और बिना किसी नियोजन के किया जा रहा है, जो कि सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया है। अगर वास्तव में सरकार रिवर्स पलायन की अवधारणा को जमीन पर उतारने के लिए उत्सुक है, तो उसे उपरोक्त उल्लिखित समस्याओं का शीघ्रातिशीघ्र निवारण करना चाहिए और इसके लिए एक विजन बनाना चाहिए, तभी यह कार्यक्रम सफल हो पायेगा। अन्यथा इसे भी पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यक्रमों की ही तरह ‘कोरी घोषणा’ करार देने में लोग कतई परहेज नहीं करेंगे।
अनिरूद्ध पुरोहित
Govt. is unable to maintain current infrastructure, I don’t believe they are capable of opening a clinic every 50 km.
let alone Hospital, Schools & metal roads just to name few.
Can be done over a 10-year project but how interested &Serious are the politicians?
After having got separate hill state, for the last 18 years, no government could understand ground realities,failed in even preparing road map for the development of Uttrakhand still making statement and hope for reverse migration. It is all unthinkable.One should definitely go to the remote villages and see actual condition of those villages, then explore how one can live in these villages, in many cases no water, no electricity no road,no school and no health center etc.
सरकार द्वारा पलायन आयोग का निर्माण कर एक अच्छी सोच का परिचय देकर बहुत आशाजनक कार्य आरम्भ किया गया है।परन्तु पहाड़ों में पहले मूल भूत सुविधाओं को जुटाने की ओर सरकार का ध्यान * अति आवश्यक है। पहाड़ों मे रोजगार का सृजन, कुटीर उद्योग शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, बंजर भूमि को आवाद करने के लिए भूमि सेना का निर्माण, जंगली जानवरों से रक्षा, पहाड़ों
से आने वाली नदियों पर छोटे-छोटे बांध बनाने की भी आवश्यकता है,पलायन आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को गांव में जाकर गांव के लोगों के साथ बैठकर योजना बनाने की कोशिश करनी चाहिए
मनरेगा योजना के अंतर्गत खेती को आवाद करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उद्योग धंन्दो की स्थापना करने के लिए प्रशिक्षण केन्द्रों की व्यवस्था नितान्त जरूरत है। यातायात, पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।कम ब्याज दर पर ऋण देने की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। पहाड़ों के विकास के लिए अधिक वजट की व्यवस्था होनी चाहिए।
जब तक पहाड़ों में मूल भूत सुविधाओं की व्यवस्था नहीं की जाती तब तक पलायनआयोग का गठन मात्र एक दिखावा ही रह जाएगा।