तीन दर्जन शहादतों के बाद अलग राज्य भी बन गया और जिस दिन राज्य की पहली अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री की शपथ होनी थी उसी दिन उत्तराखंड की जनता ने नेताओं की जूतमपैजार भी देखी। यह जूतमपैजार राज्य के हितों के लिए नहीं थी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए थी। 2 दर्जन से कम कुल विधायकों की संख्या उत्तर प्रदेश से आई थी, उसमें से डेढ़ दर्जन BJP के थे और उनमें आधा दर्जन लोग मुख्यमंत्री बनना चाहते थे।
तो यह होंगे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ???
जब उत्तराखंड आंदोलन प्रचंड पर था तो लगता था कि यहां का बच्चा बच्चा उत्तर प्रदेश के इस पिछड़े भूभाग को अलग मांगकर संवारना चाहता है और आगे बढ़ाना चाहता है। तब लगता था अगर राज्य मिल गया तो यह देश का नंबर एक राज्य बन जाएगा। तीन दर्जन शहादतों के बाद अलग राज्य भी बन गया और जिस दिन राज्य की पहली अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री की शपथ होनी थी उसी दिन उत्तराखंड की जनता ने नेताओं की जूतमपैजार भी देखी। यह जूतमपैजार राज्य के हितों के लिए नहीं थी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए थी। 2 दर्जन से कम कुल विधायकों की संख्या उत्तर प्रदेश से आई थी, उसमें से डेढ़ दर्जन BJP के थे और उनमें आधा दर्जन लोग मुख्यमंत्री बनना चाहते थे।
पहली निर्वाचित सरकार ने तो राज्य का खजाना इस तरह लुटाया कि नारायण दत्त तिवारी जी ने उत्तराखंड के लोगों को आर्थिक सहायता मांगना सिखा दिया। गांव का पंच बनने की जिसकी हैसियत नहीं थी, योग्यता नहीं थी वह विधायक मंत्री के सपने पालने लग गया। सरकारी कर्मचारी, व्यापारी, अधिकारी, उत्तराखंड से बाहर रहने वाले उत्तराखंडी हर आदमी यहां का मुख्यमंत्री बनना चाहता है। अगर इन इच्छाधारियों की गिनती की जाए हजारों में होगी।
इसी कड़ी में एक नाम इस दौरान चर्चा में आया है रोशन रतूड़ी। उत्तराखंड में टिहरी मूल के निवासी देहरादून के रहने वाले रोशन रतूड़ी पहले मस्कट में और अब दुबई में रहते हैं। वे Facebook पर जनहित में किए जाने वाले अपने अपनी संस्था RR मानवता सेवा के तहत किए जा रहे अपने को पोस्ट करते रहते हैं। उनके अच्छे कामों की जमकर तारीफ की जानी चाहिए। विशेषकर विदेशों में फंसे भारतीयों के अलावा कभी कभी अन्य की भी वे मदद करते हैं, वह उनका बहुत सराहनीय अभियान है । जिस कारण उन्हें सोशल मीडिया पर खूब सराहा जाता है, किंतु इस दौरान उनके मित्रों,सलाहकारों ने उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ा कर हास्य का पात्र बना दिया।
निसंदेह रोशन रतूड़ी जनहित में काम करते हैं , इस दौरान जिस तरह कुछ लोगों द्वारा अचानक से एक ही समय में Facebook पर अलग-अलग ID के माध्यम से उनको उत्तराखंड का भावी मुख्यमंत्री बताया जा रहा है, वह हास्यास्पद है। समुंदर पार रोजी रोटी के लिए गया एक नौजवान कई वर्षों से विदेशों में हैं, और उससे पहले वह बाल्यकाल में ही टिहरी से देहरादून में आकर बस गए थे । साफ है कि इनकी शिक्षा दिक्षा भी पर्वतीय परिवेश में नहीं हुई है । कह सकते हैं कि वह अब बिना उत्तराखंड को जाने समझे, व बिना उत्तराखंड में जनता के बीच काम किए हुए, बिना किसी पार्टी संगठन के, सीधे मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चाओं में हो तो यह लोकतंत्र का मजाक ही होगा और इसे ऊर्जावान रोशन रतूड़ी के साथ अन्याय ही कहा जाएगा।
लेकिन जिस तरह से पोस्ट शेयर हो रही है उससे खुद रतूड़ी का भी उस धारा में बह जाना उन्हें हास्य का पात्र तो बना ही देता है, साथ ही अब उनके द्वारा निस्वार्थ रूप से किए जाने वाले काम भी महज प्रशंसा बटोरने राजनीतिक धरातल तैयार करने के हथियार माने जाने लगे हैं।
यहां गौर करना होगा कि रोशन रतूड़ी की तरह अनेक प्रवासी उत्तराखंडी समाज के लोग सेवा, व्यापार, विज्ञान से लेकर अनेक क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं जितनी रोशन रतूड़ी की आयु है उससे अधिक उन लोगों की सामाजिक जीवन में सेवाएं हैं । किंतु समाजसेवा के एवज में विदेश से जिला पंचायत विधायक या मंत्री नहीं, सीधे मुख्यमंत्री पद की चर्चाएं रोशन रतूड़ी को हास्य का पात्र बना रही है। इस दिशा में रोशन रतूड़ी को शीघ्र सामने आना चाहिए और अपने सामाजिक कार्यों के प्रति निष्ठा बरकरार रखते हुए लोगों के मनों में अपने लिए स्थान बनाए रखना होगा ।
वैसे रोशन जी! इस सच्चाई को स्वीकार कर लीजिए कि रिमोट से TV चल सकता है लेकिन राजनीति नहीं हो सकती है । आपके लिए राजनीति के दरवाजे बंद नहीं हैं। आप योग्य हैं , काबिल है, व्यवहार कुशल हैं, और अच्छे वक्ता भी हैं । आप उत्तराखंड में आइए जनता के बीच काम कीजिए जनप्रतिनिधि बनिए और आप सिर्फ प्रदेश के ही मुख्यमंत्री क्या देश के प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं मगर सोशल मीडिया के माध्यम से सात समुंदर पार से मुख्यमंत्री बनने का अभियान आपकी सहृदयता और जनता को मदद करने वाली आपकी पहचान को निसंदेह प्रभावित करता है । थोक में फेसबुक लाईक , कमेन्ट और व्यूवर्स कभी वोटर्स नहीं होते हैं दोनों में बड़ा अंतर होता है । यह भी समझना बेहद जरूरी है ।
रिपोर्ट का मकसद समाजसेवी रोशन रतूड़ी से समाजसेवा के क्षेत्र में और अधिक अनुकरणीय कार्यों की अपेक्षा है ।
रोशन रतूड़ी उत्तराखंडी युवक है । रोशन खाड़ी देशों में उत्तराखंडियों के अलावा अन्य क्षेत्रों के लोगों को भी मदद पहुँचाते हैं , जैसा कि रोशन स्वयं ही अपनी फेसबुक वॉल के मार्फत अपने फॉलोवर्स को आए दिन बताते व दिखाते भी हैं । और यह अच्छी बात है । समाजसेवा एक पुण्य का काम है । रोशन को उसी दिशा में अपना ध्यान केंद्रित रखना चाहिए और समाजसेवा के क्षेत्र में देश विदेश में अपना नाम ऊंचा करना चाहिए । रोशन रतूड़ी द्वारा असहाय लोगों को पहुंचाई जा रही मदद उत्कृष्ट है, प्रसंशनीय है । परन्तु विदेश में समाजसेवा के साथ ही उत्तराखंड में बिना किसी अनुभव के मुख्यमंत्री बनने या बनाने की मुहिम बेहद हास्यास्पद हो गई है । हो सकता है कि यह सब समाजसेवी रोशन रतूड़ी को पता न हो और कुछ लोगों ने शरारत करके उनके मुख्यमंत्री बनने की अलग-अलग पोस्ट फेसबुक पर अपलोड की हो । लेकिन इनमें कई पोस्ट को रोशन द्वारा स्वयं शेयर किया गया जिससे संदेह होता है कि यह सब एक प्रायोजित अभियान भी हो । परन्तु ऊर्जावान रोशन वाकही राजनीति में आकर प्रदेश के भले के लिए अपना योगदान देना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले उत्तराखंड में आकर जनता (वोटर) का विश्वास जीतना होगा । फिर किसी तरह राजनीति का ककहरा सीखने के बाद जनप्रतिनिधि बनने के लिए चुनाव लड़कर अपनी राजनीतिक पिपासा को शांत करना होगा । क्योंकि सीधे मुख्यमंत्री बनने की मुहीम सेवा कम और स्वार्थ को ज्यादा बल दे रही है । रोशन जी अन्यथा न लें कृपा सोच विचार करें । हमें तो आप समाजसेवी ही अच्छे लगते हैं । इस दिशा में आप अपनी महत्वकांक्षाओं को विस्तार दे सकते हैं ।
– शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ ।
समाज सेवा करना लोगों की मदद करना और राजनीत करना दोनों।
अलग अलग कार्य है।
राजनीति का मतलब पूर्णतया गवर्नेंस ओर नीतिगत जनहित के कार्यों से सम्बंधित है।
यंहा पर मामूली भेद है।
भाई रोशन रतूड़ी सामाजिक कार्यकर्ता है और उन्हें इसी क्षत्रे में अपने प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए।
सामाजिक कार्यों के लिये एक नेकदिल इसांन की जरूरत होती है। जो वो है।
लेकिन राजनीति के लिए बहुत ही चपल ओर चालाक, च्चालबाज, पैंतरेबाज न जाने कितने प्रकार की योगतएं चाहिए।
रही लोगों के सेवा करने की बात तो राजनीति से ज्यादा वे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में ज्यादा अच्छे से कर सकते है।
अब उन्हें ही ये सुनिश्चित करना है कि वे किस रांह पर अपने आप को ज्यादा मजबूत पाते है।
रही बात मुख्यमंत्री बनने की तो अभी लम्बी दूरी तय करनी है भाई।
30 साल अभी तक के मुख्यमंत्रयों को लग ज्ञे।
बाकी तुमारी मर्जी भुला,