Rumor : उत्तराखंड में फिर आई भारी तबाही…! हिमालय में आई बादल फाड़ तबाही…!
उत्तराखंड में फिर आई भारी तबाही…! हिमालय में आई बादल फाड़ तबाही…! खिसक रहे हैं पहाड़, सिसक रहे हैं लोग…! दरक रहा है पहाड़, और डूब रहा है मैदान…! जगह-जगह से छलनी हो रहा है हिमालय…! गंगा की उफनती लहरों के बीच अपनों को तलाशती ये आंखे…! टूट गया ग्लेशियर, दरक गया हीमालय ………
आजकल कुछ इसी तरह के बेहद ही डरावने शब्दों का चयन कर नाटकीय अंदाज में टीवी न्यूज चैनल सैकड़ों, हजारों किलोमीटर दूर बैठे लोगों को डराने का काम बखूबी कर रहे हैं । और यह सब हो रहा है TRP हड़पने के लिए व एक दूसरे को पछाड़ने के लिए । मजेदार बात तो यह भी है कि आजकल अधिकांश चैनलों के पास अपने विजुअल (वीडियो) ही नहीं हैं । आम लोगों द्वारा व्हाट्स्प या फेसबुक पर शेयर किए गए विजुअल को अपना बताकर चलाया जा रहा है ।
और अब न्यूज चैनलों के अलावा न्यूज वेब पोर्टल्स की भी बाढ़ सी आ गई है चैनलों से दो कदम आगे बढ्ने को आतुर हैं न्यूज पोर्टल । ताजा वाकिया कल का है किसी उतावले इंसान ने उत्तराखंड के एक हिस्से में 3 साल पहले बारिश से हुए नुकसान के पुराने फोटोग्राफ़्स के साथ खबर बनाकर व्हाट्स्प पर डाल दी थी उसने इस तबाही को कल उत्तरकाशी के चटकाली का बता दिया और देखते ही देखते पल भर में यह खबर सोशल मीडिया के मार्फत कई हाथों तक पहुँच गई । शासन-प्रशासन भी हरकत में आ गया था सोशल मीडिया में फोटो के साथ झूठा मेसेज सेंड करने वाले की तलाश होने लगी थी लेकिन व्हाट्स्प के महाजाल में पुलिस किसे पकड़ती यह भी बहुत आसान नहीं था ।
तभी उतावलेपन का एक और नमूना सामने आया और इस बार यह हरकत उन लोगों के द्वारा की गई जो स्वयं को समाज का सबसे बड़ा पैरोकार मानकर चल रहा है । जिम्मेदारी का दम्भ भरने वाले मीडिया बहादुरों ने भी आव देखा न ताव सीधे खबर अपनी वेबसाईट न्यूज पोर्टल पर पोत डाली । अब प्रशासन की पेशानी पर और बल बढ़ गया देशभर के मीडिया संस्थानो से आपदा प्रबंधन का फोन बजने लगा, सबका यही सवाल कि उत्तरकाशी में मरने वालों कि संख्या कहाँ तक पहुंची ? क्या मुख्यमंत्री भी घटनास्थल तक पहुँच रहे हैं ? और यह जगह देहरादून से कितनी दूर है ?
यह खबर मेरे मोबाइल के माध्यम से मेरे हाथ में भी थी तो मैंने भी खबर की पुष्टि के लिए पहले देहरादून फिर उत्तरकाशी आपदा कंट्रोल रूम में फोन कर इसी तरह की जानकारी मांगी । लेकिन उधर से पहले एक महिला ने फोन उठाया उसकी जुबान से निकला यही पहला शब्द कि हे भगवान कहाँ आई है वो आपदा ? अरे सर आपको किसने बताया ? यह खबर झूठी है ! प्लीज रुकवाओ इसे ! तभी उनके हाथ से कोई सुरेश जी ने फोन लिया और अब वह मुझसे बात करने लगे… बताएं आपको यह खबर किसने बताई ? मैंने कहा सोशल मीडिया ने । आप उस व्यक्ति का नाम बताइएगा जिसने यह खबर दी ? मैंने कहा आप सोशल मीडिया पर देखिए एक नहीं कई नाम पा लेंगे, मान्यवर मैंने आपको खबर की पुष्टी के लिए फोन किया है, नकि सवाल जवाब के लिए लेकिन आप यह तो बताओ आखिर यह पूछताछ क्यों हो रही है ? तो उधर से फोन करने वाले शख्स ने बताया कि किसी ने यह झूठी खबर फैलाई हुई है जिसकी तलाश जारी है और जल्दी उसे दबोच लिया जाएगा ।
दरअसल आजकल खबरों के लिए नौसिखिए खबरचियों में अजीब सी होड सी मच गई है । कई न्यूज पोर्टल को आप एक शीरे से देखना शुरू करें तो सबमें एक ही स्क्रिप्ट मिलेगी साफ है कि अधिकांश लोग खबरों की तह में पहुँचकर सच्चाई जाने बगैर ही फेसबुक , व्हाट्स्प पर लिखी मनगढ़ंत सूचनाओं को कॉपी कर पेस्ट कर ले रहे हैं । लेकिन न्यूज पोर्टल संचालकों में यह होड़ किस बात के लिए यह भी समझ से परे है । अच्छा होता कि खबरों को अच्छी तरह से जांच परख कर लिखा जाता लेकिन अफशोस कि कुछ लोगों ने सारी हदें पार कर दी है । नतीजतन प्रशासन को भी ऐसे मीडिया संचालकों के खिलाफ अब कानूनी कार्यवाही करनी पड़ी है ।
खबरों के फर्जीवाड़े में देश के कई प्रतिष्ठित न्यूज चैनल भी अब्बल दर्जे पर हैं इसी बीते सप्ताह व्हाट्स्प पर हेमकुंड साहिब यात्रा मार्ग का पुल टूटने व यात्रियों के फँसने की झूठी खबर फैली । लेकिन दिल्ली नोयडा से चलने वाले देश के दो जाने माने चैनलों ने बिना खबर की पुष्टी के यह खबर ब्रेक कर दी । जिसके बाद काफी अफरा तफरी मची फिर चैनल ने कुछ ही देर बाद सार्वजनिक रूप से माफी भी मांग ली थी ।
2013 में एक बड़े नेशनल चैनल से महिला पत्रकार को कर्णप्रयाग में खड़े होकर 100 किलोमीटर दूर जोशीमठ की फर्जी रिपोर्ट करते समय स्थानीय लोगों ने जोरदार ढंग से खदेड़ा था ।
इसी तरह से तब कर्णप्रयाग के ही एक गाँव मे दिल्ली से आया प्रतिष्ठित नेशनल न्यूज चैनल का रिपोर्टर लोगों के बीच पहुंचा, तब उस गाँव मे कोई आपदा भी नहीं आई थी लेकिन संवाददाता को कुछ Exclusive अपने चैनल को देना था उसने गाँव के लोगों को इकट्ठा कर उनसे कैमरे के सामने थाली बजाने व प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने को कहा कैमरे मे जानबूझ कर अच्छे खासे घरों मे चूल्हों को सूना दिखाकर फिल्माया जा रहा था । तब आबाद व खुशहाल गाँव के बीच अचानक से जब कुछ पढे लिखे युवाओं को शासन-प्रशासन के खिलाफ बेवजह जोरदार नारेबाजी सुनाई दी तो उन्होने बाहर आकर देखा तो न्यूज चैनल का रेपोर्टर साहब फिल्म डारेक्टर की भूमिका में था जो सीधे-साधे ग्रामीणो को अपने हिसाब से निर्देशित कर झूठी खबर के लिए विजुअल तैयार कर रहा था । तब किसी तरह से उसे बचाया गया और रेपोर्टर को अंधेरे में ट्रक के पीछे डालकर 20 किलोमीटर दूर गौचर छुड़वाया गया था ।
वर्तमान मे ऐसा लग रहा है कि मानो पीत पत्रकार इस रेस में दौड़ते हुए अपने स्वार्थों के लिए पहाड़ की ईमानदार छवि को खूब धूमिल करने के अलावा यहाँ के पर्यटन व्यवसाय को भी पलीता लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोडना चाहते हैं ।
एक जुलाई 2016 को चमोली और पिथौरागढ़ मे कुछ जगहों पर बेशक आपदा आई थी और कुछ की जाने भी गईं थी । लेकिन न्यूज चैनल आज एक सप्ताह बीत जाने के बाबजूद भी उन्ही दृश्यों को बार-बार दिखाकर लोगों को दहशत मे डालने का काम बखूबी कर रहे हैं । चार दिन बाद नेशनल हाइवे खुल गया है यात्री बद्रीनाथ बड़े ही जोश के साथ पहुँच रहे हैं आखिर नेशनल न्यूज चैनल अब क्यों नहीं खबर दिखा रहे हैं इसका साफ मतलब है कि सबका मकसद सिर्फ और सिर्फ सनसनी फैलाना है ।
वर्तमान मीडिया का बर्ताव कटे घाव में नमक मिर्च छिड़कने जैसा है । मीडिया को अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा…!
बौखलाते मीडिया की भ्रामक खबरों के बीच यह संदेश कि देवभूमि उत्तराखंड पूरी तरह से सुरक्षित है । हाँ राज्य के कुछ एक जगहों पर बेशक बदले मौसम के मिजाज से नुकसान हो रहा है , उस बात का सभी को दर्द है । एक जुलाई को हुए नुकसान में खुद मेरा गाँव भी शामिल है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसे हम पूरे राज्य में तबाही मान लें । कुछ लोग बेशक वाहवाही लूटने व अपने नंबरों को बढ़ाने के लिए आए दिन इस तरह की भ्रामक खबरों को बढ़ा चढ़ाकर देश और दुनिया के सामने पेश कर रहे हैं जिनमें से कुछ पर कल उत्तरकाशी प्रशासन द्वारा कार्यवाही शुरू कर दी गई है ।
लेकिन यूथ आइकॉन Yi न्यूज पोर्टल अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझता है और हमेशा सच्ची और तथ्यात्मक बातों को ही आप सबके सामने लाना हमारा मकसद भी होता है । विश्वास दिलाता हूँ कि कम से कम इस न्यूज पोर्टल पर आपको कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा । हमारा मकसद है खबरों को रचनात्मक अंदाज में शासन, प्रशासन व जनता के बीच तक पहुंचाना । और समाज में अच्छे कार्य करने वालों को उचित सम्मान देंना ।
यूथ आइकॉन : हम न किसी से आगे हैं, और न ही किसी से पीछे ।
*शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’
Copyright: Youth icon Yi National Media, 07.07.2016
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मोबाइल रिपोर्टिंग का जमाना तीनों दैनिक को ले लीजिये एक ही खबर भिन्न होगी
अंध दौड़ में आगे निकलने की होड़ का नतीजा
शशि भूषण जी सही कहा आपने कुछ लोगों का काम ही दूसरों को गलत सूचना देकर भ्रमित करना हैं