मुठ्ठी भर रेत ! सरकार समग्र विकास की बात तो करती है परन्तु राजनैतिक विजन के अभाव में सिर्फ बातें ही हो सकती है, पर विकास नहीं !
पहाड़ी प्रदेशों के विकास के लिए एक अलग से मंत्रालय बनना चाहिए मेरा प्रदेश जो वन पंचायतों का प्रदेश है, जहां ग्रामीण वनों को अपने बच्चों की तरह पालते हैं , वनों को आग से बचाने में जहाँ प्रतिवर्ष सैकड़ों जन अपनी जान तक गवाँ देते हैं किंतु यही ग्रामीण वनों से अपने मवेशियों के लिए सूखी घास पत्ती एवं इंधन के लिए गिरी पड़ी सूखी लकड़ियाँ तक नहीं बिन सकते हैं
बजट हो अथवा गजट जल जंगल और जमीन पर स्थानीय क्षेत्र वासियों के हक हकूक व सुखाधिकार सुनिश्चित होने चाहिए । यदि वास्तव में सरकार की मंशा आम जन जीवन में आर्थिक सुधार लाने की है तो पहाड़ी प्रदेशों में जहां वन और जन एक दूसरे के पूरक हैं , में आपसी समन्वय स्थापित करते हुए वन नीतियों में बदलाव लाना अति आवश्यक है । आजादी के बाद विगत लंबे समय से देश की अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाए तो हमारी भव्य सरकारों ने विदेशी पूंजी निवेश को बढ़ावा देते हुए इसके प्रति सदैव से उदारवादी रवैया अख्तियार किया , जबकि विकास की मूल भावना को दरकिनार कर दिया । जिसका परिणाम ठीक ऐसा ही रहा जैसे नींव की ईंट को भुलाकर कंगूरे पर लगी ईंट के प्रति आकर्षण , बजट का भी शहरीकरण हो गया । बजट से जल जंगल और जमीन से जुड़ी ग्रामीण परिवेश की अर्थव्यवस्था जो राष्ट्र की नींव हैै, हमेशा से गायब रही है यही कारण है कि आज भी
ग्रामीण परिवेश से शहरों की ओर पलायन जारी है । एक ओर सूने पड़े गांव, खेत-खलिहान दूसरी ओर शहरों में जनसंख्या का विस्फोटक दबाव यह हमारी गलत आर्थिक नीतियों का ही दुष्परिणाम है । मुझे आश्चर्य तब होता है जब ग्रामीण क्षेत्रों से चुने हुए जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्रों के गोचर (चरागाहों) तक को सुरक्षित रखपाने के मुद्दे पर आत्मग्लानि अथवा शर्म महसूस होती है जबकि सत्य यह है कि गोचर भूमि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है । मै उत्तराखंड जैसे प्रदेश से हूँ जिसका लगभग 65% भूभाग वन प्रदेश है ,यदि आंखों देखा हाल बयां करूं तो यहां
प्रतिवर्ष गंगा करोड़ों की इमारती वन संपदा अपने साथ बहा ले जाती है जो अधिकांशत: सालों साल यूं ही सड़ गल कर नष्ट हो जाती है किंतु स्थानीय क्षेत्र वासियों को इनकी सूखी टहनियों को भी ईंधन के लिए उपयोग में लाने का अधिकार नहीं है , नदियों के तट से रोड़ी पत्थर तो दूर एक मुट्ठी रेत पर भी स्थानीय क्षेत्र वासियों का हक नहीं है । हम समग्र विकास की बात तो करते हैं किंतु सर्वथा राजनैतिक विजन का अभाव दिखाई देता है ,मेरा मानना है पहाड़ी प्रदेशों के विकास के लिए एक अलग से मंत्रालय बनना चाहिए मेरा प्रदेश जो वन पंचायतों का प्रदेश है, जहां ग्रामीण वनों को अपने बच्चों की तरह पालते हैं , वनों को आग से बचाने में जहाँ प्रतिवर्ष सैकड़ों जन अपनी जान तक गवाँ देते हैं किंतु यही ग्रामीण वनों से अपने मवेशियों के लिए सूखी घास पत्ती एवं इंधन के लिए गिरी पड़ी सूखी लकड़ियाँ तक नहीं बिन सकते हैं , मैं हमेशा से स्थानीय क्षेत्र वासियों के जल जंगल और जमीन के हक हकूकों व उससे प्राप्त होने वाले सुखाधिकारों का पक्षधर रहा हूँ । सरकारों को यदि पहाड़ी प्रदेशों की चिंता है ,सरकार चाहती है कि हमारे पहाड़ी प्रदेश संपन्न व मजबूत बनें वहां के दुष्कर जनजीवन में कुछ सुधार लाया जा सके तो इसके लिए वहां के अनुरूप ही नीतियों का निर्माण कर अनुकूल बजट लाना होगा , अन्यथा अपाहिज जनता के बीच अपाहिज सरकारें यूं ही आती जाती रहेंगी।
– सच्चिदानंद शर्मा “शून्य”
शर्मा जी द्वारा लिखित तथ्य 100%सत्य है इंन बातोँ का पता सिर्फ वही व्यक्ति जान सकता है जिसका जीवन इन पर्वतीय क्षेत्रों मे गुजरा हो जो पहाड़ी की हर प्रस्थिति से जानकार हो , पहाड़ की जवानी व पहाड़ के पानी के साथ साथ पहाड़ की बन सम्पदा का उपयोग भी पहाड़ मे रहने वाले जन मानस उपयोग नही कर सकते इसके लिये शर्मा जी द्वारा दिये गये विचार पर अगर सरकार कोई कदम उठाती है तो वह दिन दूर नही जब लोग न्यूजीलैंड की बजाय उत्तराखंड घूमने आये
बहुत खूब शर्मा जी ,उत्तम विचार,अपनी सहमति दर्ज करता हूँ।
Bahut hi sarahniya soch hai, poori duniya me mashoor hua chipko andolan, sabhi ne saraha per pahadon kijanta ko is andolan ka bhi koi laabh na mil saka.. Jabki paryawaran ka mudda bharat hi nahi balki UN me bhi gunja , bharat agwayi kar raha per afsos ki khud apne desh me ek mantralaya na bana saka.. NGT to saharon ke pardoosan me hi kahi gum ho gai..sabko ganga ka paani saaf suthra chahiye per jin paristhitiyon me pahaad ka parkriti premi jal,jameen aur jungle ki rakhsha karta hai us ki taraf dekhne ko koi raaji nahi.. Mantralaya(choro ka ghar) na bane ek swatantra sanstha ho jo humalayan region ke antergat ane wale jeew,jantu,wan, jal ko ek dharohar ki tarah sambhale rakhe aur iske wikas ke liye karya karta rahe.. Worldbank ko bhi isme bhagidaar banaya jaye…