Satish’s letter to Ravish : एक चिट्ठी भाई रवीश कुमार के नाम !
सतीश लखेड़ा, स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं वे भारतीय जनता पार्टी, उत्तराखण्ड के मीडिया प्रभारी, प्रदेश प्रवक्ता व मुख्यमंत्री के निजी मीडिया सलाहकार चुके हैं। देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व पोर्टल में भी बराबर सक्रिय रहते हैं।
रवीश जी,अपनी बात शुरू करने से पहले बता दूं कि सीपीएम, सीपीआई और माले के अनेक नेता और कार्यकर्ता मेरे अच्छे मित्र हैं । अनेक विश्वविद्यालय के सहपाठी हैं, कुछ पत्रिकारिता के समय बने, कुछ सामाजिक अभियानों में मिले अनेकों से अब राजनैतिक कार्यकर्ता होने के नाते परिचय हुआ। मैं वामपंथ को विचारधारा के रूप में लेता हूं। कमियों और खामियों पर कभी और चर्चा करूंगा जितनी मेरी समझ है। हत्या किसी की भी हो वह मानवीय मूल्यों के खिलाफ है और इन सबकी एक स्वर में निंदा बराबर होनी चाहिए। विचारधारा का विरोध हत्या तक पहुँचना किसी को स्वीकार नहीं।
रवीश जी, आपका चश्मा भी लाजवाब है जो मौत, हत्या, हमले और निंदा को अपनी सुविधा से देखता है । गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में कल मैंने आपको प्रेस क्लब ऑफ इण्डिया में बोलते सुना और देखा । मैं एक महिला पत्रकार की हत्या के विरोध में एकत्र हो रहे पत्रकारों में सम्मिलित होने आया था। कमाल है, आपने गौरी लंकेश के कातिल, उसकी सोच और उसकी विचारधारा की तुरंत पहचान भी कर ली। पुलिस, कोर्ट- कचहरी, जांच एजेंसियां और अन्वेषी पत्रकारों को कुछ भी करने का मौका नहीं दिया। हो सकता है कि आपने इस शोक सभा को किसी पर हमला करने के अवसर के रूप में देखा हो।
आप भी जानते हैं कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। बेंगलुरु, जहां हत्या हुई वहां कांग्रेस की सरकार फिर भी कोई राज्य सरकार पर सवाल नहीं उठा रहा है।आपका कांग्रेस के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर भी समझ से परे है। कर्नाटक में ही पत्रकारों के साथ ऐसी घटनाएं क्यों घट रही हैं, हो सकता है आप इस विषय की गहराई में नहीं जाना चाहते।
एक रिपोर्ट के अनुसार 1992 से 2015 तक 65 पत्रकारों को पत्रकारिता धर्म निभाते हुये अपनी जान गवानी पड़ी है।
कर्नाटक में पिछले 4 सालों में बीजेपी और संघ विचारधारा के 20 से अधिक लोगों की हत्या हो चुकी है, सभी हत्याएं निर्मम और वीभत्स तरीके से हुई। खैर…
एक रिपोर्ट के अनुसार 1992 से 2015 तक 65 पत्रकारों को पत्रकारिता धर्म निभाते हुये अपनी जान गवानी पड़ी है। आपको उन मौतों से कुछ नहीं लेना-देना। मगर यह जरूर कहना चाहूंगा कि केवल अपनी विचारधारा के मृतक पर आंसू बहाना समाज और परिवेश के लिये ठीक नहीं। हर मौत निंदनीय है, सभ्य समाज मे हिंसा का … कत्तई समर्थन नहीं हो सकता है। मरने वाला पत्रकार किस विचारधारा का है, उस तरह की विचारधारा के लोग ही उसका शोक मनाएंगे और विरोध करेंगे यह खतरनाक सोच है।
आज सोशल मीडिया पर गौरी लंकेश, कलबुर्गी, पानसरे और दाभोलकर के नामों की खूब चर्चा है । हमारे प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने सैकड़ों ऐसी हत्याओं के ढेर से चार नाम ही पसन्द किये हैं। गौरी लंकेश की हत्या के कुछ ही घंटों में विचारधारा विशेष के साथियों ने सोशल मीडिया पर मोर्चा सम्हाल लिया है । खासकर मोदी विरोधियों का सामान्य ज्ञान उफान पर है ।
गौरी अपने पिता की तरह वाम विचारधारा की प्रचारक थी, सनातनी मूल्यों की घोर विरोधी थी, नक्सल समर्थक थी और उसी धारा का उनका लेखन था उनकी हत्या पर भी हमें उतना ही दुख है जितना आपको । यह कुकृत्य निन्दनीय और अस्वीकार्य है । हत्या क्यो हुई ? अभी स्पष्ट नहीं हुआ है ।
दाभोलकर की हत्या महाराष्ट्र में अगस्त 2013 में हुई तब राज्य में और केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी। दाभोलकर सभी धर्मों में फैले अंधविश्वास के विरोधी थे । कलबुर्गी की हत्या कांग्रेस शासित कर्नाटक में हुई पानसरे लेखक थे, नेता थे और टोल टैक्स के खिलाफ अभियान चला रहे थे फिर भी इन तीनों की हत्याओं पर आपकी धारा के ज्ञान-धारी भाजपा, हिंदू संगठन और RSS को जिम्मेदार ठहरा देते हैं।
रवीश जी, काश ! आपका हृदय केरल के प्रोफेसर टीएस जोसफ के लिए भी द्रवित होता। 2010 में जोसफ की हथेली काट दी गई थी, उन्होंने मोहम्मद साहब पर कथित तौर पर सवाल पूछा था। बाद में उनके कॉलेज ने उन्हें नौकरी से हटा दिया, अवसाद में उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी, इसी तरह केरल में ही प्रशांत पुरोहित की निर्ममता से हत्या कर दी गई वह गौ रक्षक दल के सक्रिय कार्यकर्ता थे और ऐसे ही मूदविदरी के साथ हुआ। तब वाम विद्वानों का ज्ञान, विरोध, तेवर, तर्क और क्रोध व्यक्त नहीं हुए क्योकि ये मृतक उनकी पसन्द के नहीं थे। मृतक के प्रति उसकी विचारधारा के आधार पर संवेदना व्यक्त करना, अपनी सुविधा से कानून की व्याख्या करना, लोकतंत्र के पहाड़े पढ़ना और सरकार को आरोपित करना खतरनाक प्रवृत्ति है।
आप तो अवगत हैं कि उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जागेंद्र सिंह को उनके घर में ही जला दिया गया था । सपा की सरकार थी, जागेंद्र ने मृत्यु पूर्व बयान दिया कि एक मंत्री के गुंडों ने यह सब किया है तब आपको जागेंद्र का पत्रकार होना ज्यादा अपील नहीं किया या उन्होंने शायद अपनी कलम से वाम विचारधारा की ज्यादा सेवा नहीं की थी इस पत्रकार के लिये वाम ब्रिगेड की मोमबत्तियां नहीं जली। राहुल गांधी बेचारे क्या बोलते उन्होंने तो बाद में उसी सरकार से चुनावी गठबंधन कर दिया था ।
आप खुद बिहार से आते हैं सिवान में हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की निर्मम हत्या हुई लालू की पार्टी के नेता बाहुबली शहाबुद्दीन पर आरोप लगे और इन्हीं नेताजी पर जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष सीपीआई (एम एल) के नेता चंद्रशेखर की हत्या का भी आरोप है किन्तु राजदेव रंजन की हत्या भी वाम धारा के बुद्धिजीवियों को विचलित नही कर पायी। रवीश जी इस देश को “ये तेरी वाली लाश और ये मेरी वाली लाश” के श्मशान में मत बदलिये। मौतों को रंगिये मत। हत्या किसी की न हो इसी पर सोचा जाय।
खबरों के लिए संपर्क करें
Shashi Bhushan Maithani Paras
9756838527 , 7060214681
Very well written Satish ji.
Congratulations on opening up the real face of so called unbiased media honchos.
सही तर्क Lakhera जी रविस जी चसमा बदलना चाहिये
इस खुले पत्र रूपीी लेख बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है,
priya lakhera ji aap ki baat par sahmat hona hi hoga kuchh samaya se media ke log bhi tathya se hat kar atankwad, aur hatya ko alag 2 sreni me dal kar dekhte hai
jo aane wale samay ke leye thik nahi hoga.
सतीश जी,सावन के अंधे को हरा ही हरा नज़र आता है,ये पत्रकार महोदय भी उसी श्रेणी के पत्रकार हैं। बाकी आपने इस पत्रकार को वरिष्ठ कहा है;मेरी नज़र में तो इससे अधिक निकृष्ट पत्रकार शायद ही कोई हो???
अगर कोई अवसरवादी पत्रकारिता करताय हैं तो मैं उसकी निंदा करता हूँ।कुछ लोगोने एक विशिष्ठ रंग के चश्में पहन रखे हैं।
विचार धारा अलग अलग हो सकती हैं लेकिन देशप्रेम की व्याख्या एक ही हैं।उसमेंसे एकहि अर्थ निकलता हैं।
जो लोग हत्या को रंग देते हैं, वो देश के गुनाहगार हैं।अगर कोई देश द्रोही का साथ देता हैं तो उसकी हत्या करना कतई समर्थनीय नही हैं। जडसे ज्यादा आप उसपर कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं,उसकी हत्या नही कर सकते।किसी एक पार्टी के कार्यकर्ता मारे जाते तो चुप्पी और दूसरे पार्टी के लिए जमीन आसमान एक करना ये दोगलापन हैं ।दोनों जगह निंदा होनी चाहिए।सबको न्याय मिलना चाहिए
आपका पत्र बहुत ही सटीक व्याख्या करता है पता नही पत्रकार कैसे विचारधारा में खुद को जकड़ लेते है जो सामाजिक और सामयिक विषय है उन पर् चर्चा ना करके रंग दे देना आपकी सोच ही दर्शाता है अभी हत्या करने वाले पकड़े नही गए और आप ने सजा भी सुनादी ये तो वो ही बात हुई ।
खैर चलिए अच्छा लगा कि आप जैसे पत्रकार अभी सोच को मुद्दे वाली ना बना कर समाजिक व सामयिक रखती है
धन्यवाद
निशा गुप्ता
धारदार लेख है पर रवीश जैसे लोगों की आंखों का बाल निकलेगा नहीं
Any killing of non-right winger is a FESTIVAL for these so called reporters, Ravish is not alone, lots of others and political class celebrate these Deaths as life-time opportunity.
सतीश जी , कितने भोले हैं आप ,ये इसी से पता लग जाता है कि आपको रेबीज कुमार के कांग्रेस कनेक्शन का नही पता ! अरे भाई उसे और उसके मालिक को सारा मालमत्ता कांग्रेस जर में मिला और उसका सगा भाई कांग्रेस का बिहार प्रदेश उपाध्यक्ष के अलावा कोठा संचालक भी है ! गौरी के हिन्दू विरोध के पीछे उसकी ईसाई पृष्ठभूमि है
Very Good Satish Ji, you are great,
शानदार लेख के लिए बधाई
आपका पत्र बहुत ही अच्छा है और पत्रकरो को समझ हितों की सोचना चाहिए।
सतीश जी… बहुत ही सटीक लेख… वाक़ई आज बड़ा मुश्किल दौर है…हर कोई अपने चश्मे से खबरों को देख रहा है…और उससे बाहर देखने सुनने को तैयार नहीं है..!!
Staish ji super se bhi upar
आप सभी महानुभाओं का आभार,
Priy Mitra Satish
Mitra isliye ki humara rishta kabhi iske itar nahi raha chahe Kahi bhi rahe hum.
Aaj ye padh ke garv mahsoos ho raha Hai Mitra par. Kya baat likhi, baat ye nahi ki kaun kis vichaar dhara ka Hai baat ye ki YE TERI WALI LAASH YE MERI WALI LAASH.
bahut khoob dost.
Dosti jindabad