क्या कसूर था सिम्बा का ! जो बे-मौत मारा गया । इंसान कर रहा है अब नासमझी की हदें भी पार ।
कल तक घर के आंगन में उछलता कूदता हर दिल अजीज सबका प्यारा सिम्बा अचानक से हम सबके बीच से हमेशा-हमेशा के लिए चल दिया । और हम इंसानों की करतूत उसके जाने की वजह बनी ।
दिखावे के दौर से गुजर रहा इंसान अब अपना होश और विवेक खोता जा रहा है । वह अपनी मूल जड़ों से हटकर एक ढकोसले का लबादा ओढ़ चुका है ।
आज अगर बात सिर्फ पहाड़ की करूँ तो यहां भी तीज त्यौहारों को मनाने के परम्परागत तौर तरीके धीरे-धीरे क्षीण होते जा रहे हैं । चंद सालों पहले तक
जहां पहाड़ों में दीपावली का पर्व बेहद ही धार्मिक,पारंपरिक व सांस्कृतिक तरीके से मनाया था, वो भी अब दिखावे की भेंट चढ़ रहा है । दिवाली में अब परम्परा गायब हो रही है और वर्चस्व, दिखावे की प्रतिष्ठा हावी हो रही है । स्वांली, पकोड़ी की जगह हल्दीराम और बीकानेरी जैसी कंपनियों के गिफ्ट पैकेटों ने ले ली है, दीप पर्व के दियों की जगह चीन की लड़ियों ने तो वहीं पारम्परिक भैलु की जगह कानफोड़ू बम पटाखों ने कब्जा ली ।
दीपावली का परम्परागत स्वरूप बिगाड़ने में सबसे बड़ा योगदान कानफोड़ू पटाखों का है । जिसकी वजह से पर्यावण भी असंतुलित हो रहा है । रातभर चलने वाली भयानक आतिशबाजी के बीच सबसे ज्यादा दहशत में बेजुबान जानवर रहते हैं । दिल को थर्रा देने वाली गर्जना से स्वयं पटाखों से खेलने वाला इंसान भी दहशत में आ जाता है । तो सोचिए बे-जुंबानों का क्या हाल होता होगा । कल दिन में है मैं पढ़ रहा था कि मध्यप्रदेश के किसी इलाके में पक्षियों के दर्जनों चूजे आधे अधूरे पंखों के साथ डाल की ऊंची-ऊंची शाखाओं पर बने अपने घौंसलों से निकलकर औंधे मुँह जमीन पर बिखर गए और तड़प रहे हैं जिसका कारण आसमान में छोड़े गए रॉकेट और आतिशबाजी बताई गई । दूसरी सुबह सारा दृश्य देख कुछ पक्षी प्रेमी वहां पहुंचे और उन्हें बचाने की कोशिश में लगे रहे ।
और आज जोशीमठ में आंखों के सामने उछलता कूदता सिम्बा भी इंसानी करतूत की भेंट चढ़ गया । सिम्बा पटाखों की आवाज सुनकर कभी आंगन से छत तो कभी सीढ़ियों के नीचे दुबक जाता वह एक ऐसी जगह की तलाश में था कि जहां उसे पटाखों का शोर न सुनाई दे । वह बेहद डरे हुए धीमे स्वर में भौंकने लगता मानों वह हमसे मदद की दरकार कर रहा हो । इसी बीच सिम्बा दबे पांव धीरे-धीरे आंगन से अब कमरे में अंदर आने को बढ़ ही रहा था, कि तभी आसमान मे एक जोरदार बम पटाखे की आवाज हुई और उस आवाज के साथ ही सिम्बा भी जमीन पर धराशाई हो गया ।
सिम्बा को काफी हिलाने डुलाने की कोशिश की गई जबरदस्ती उसके मुंह में पानी डाला गया, लेकिन अब वह शिथिल पड़ चुका था । उसके आंखों से टपकती आंसुओं की अंतिम धार भी जम गई थी । सिम्बा का यूँ ही हम सबके बीच से अचानक से चले जाने की खबर से मन व्यथित है और इंसान के हैवान होने की पक्की छाप भी वह हम सबके माथे छोड़ गया है ।
सिम्बा मानों जाते-जाते कह गया .. हे इंसान ! तू न बन यूँ हैवान । तेरी ऐसी हल्की व छिछोली हरकतों से जा रही है जान हम बे-जुबानों की । दिखानी है मर्दानगी तो जा सीमा पार के दुश्मनों से कर मुकाबला । पर घर के आंगन में पैसे के बल तू यूँ न उछल ।
प्लीज दीपावली का शब्दार्थ समझें और संकल्प लें कि आने समय में हम सब दीपों का ही उत्सव मनाएंगे । और सबको खुशियां बांटेंगे सबको जीने देंगे ।
नोट : सिम्बा हम सबका प्यारा था जो बेजुबान जानवर (कुत्ता) जरूर था पर कई मामलों में इंसानों से भी ज्यादा समझ रखता था । सिम्बा को बेहद लाड़ प्यार से लक्ष्मी प्रसाद डिमरी पूर्व पुजारी नृसिंह मंदिर व उनके परिवार द्वारा पाला गया था । सिम्बा की याद हमेशा दिल और दिमाग में रहेगी ।
बहुत दुखद इंसान अपने सुख में इतना स्वार्थी हो गया कि उसे बेजुबानों का जरा भी खयाल नहीं आया ईश्वर हम इंसानों को सदबुद्धि दे।
Mama ji ek baar mujhe bata kisne vha crackers usr kiye thai
Mama ji ek baar mujhe bata kisne vha crackers usr kiye thai plz batane ek baat mujhe
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भैलु का मतलब ???
बहुत ही मार्मिक घटना में कभी भी पटाखे नही चलाता ओर नही मेरे बच्चे।