Singhawalokan : उत्तराखण्ड में कैसे उन चार किरदारों ने सबको डाला हासिए पर । जिन्होने बदल डाली सूबे की सियासत । shashi bhushan maithani parasSinghawalokan : उत्तराखण्ड में कैसे उन चार किरदारों ने सबको डाला हासिए पर । जिन्होने बदल डाली सूबे की सियासत । shashi bhushan maithani paras

Singhawalokan : उत्तराखण्ड में कैसे उन चार किरदारों ने सबको डाला हाशिए पर । जिन्होने बदल डाली सूबे की सियासत ।

 

 

*कौन थे वो किरदार जिन्होने घुमा दिया सबको अपने चारों ओर !

*उत्तराखण्ड में कौन थे वे सियासी किरदार जिनकी चर्चा रही हर जुबान पर !

*हरदा की शिकस्त, महाराज की मंशा, बलूनी की गूगली और खैरासैण के सूरज के नाम रहा 2017 !

 

डबल इंजन के ताकत से चलने वाली सरकार में अभी भी वे प्रभावी मुख्यमंत्री की भूमिका मे नहीं दिख पाए हैं । सच  ये है कि   खैरासैण के सूरज को प्रभावी भूमिका में दिखना बाकी है ।
2017 मे भले ही सूबे में सरकार बदली हो किन्तु आम जनता के बीच कोई बड़ा बदलाव दिखना अभी बाकी है । बदलाव का भोंपू लेकर कांग्रेस से भाजपा में आए महारथी अब चुपचाप सत्ता की मलाई के आनंद में मसगूल हैं । सत्तावन सदस्यों के भारी जनमत के साथ भाजपा विधायक कैबिनेट विस्तार व दायित्व वितरण की प्रतीक्षा में बने हुए हैं । पुराने कार्यकर्ताओं की नजर भी बोर्ड निगम की चियरमेनी पर टक-टकी लगाए इंतजार में हैं कांग्रेस के ध्रुबों की राजनीति हरीश रावत, प्रीतम सिंह, किशोर उपाध्याय और इंदिरा हृदयेश के आपसी वर्चस्व की जंग में व्यस्त  है । क्षेत्रीय दल लुप्तप्राय:  से अदृश्य की ओर अग्रसर हैं । और साल के अंत तक गैरसैण राजधानी का मुद्दा सूबे में सुलगने लगा । और अब नए वर्ष यानी कि 2018 की सियासत डबल ईंजन से उम्मीद निकाय चुनावों की ओर बढ़ रही है ।

Shashi Bhushan Maithani Paras शशि भूषण मैठाणी पारस एडिटर यूथ आइकॉन निदेशक YOUTH ICON NATIONAL MEDIA AWARD YI DEHARADUN
Shashi Bhushan Maithani Paras

र्ष 2017 उत्तराखंड की सियासत के लिए अनेक उतार चढ़ाव वाला रहा । वर्ष 2017 इस मायने में अलग रहा कि पहली बार उत्तराखंड के राज्य बनने के बाद से अब तक जमे जमाए किरदार चर्चा में नहीं रहे । जिनके इर्द-गिर्द सियासत घूमती रही है वे सब 2017 में हसिए पर थे, और नए चेहरे सूबे की सियासत में चर्चा में रहे । राज्य बनने के बाद जहां भाजपा खंडूरी, निशंक, कोश्यारी में बटी रही वहीं कांग्रेस तिवारी और हरीश रावत में दो फाड़ दिखी, जो की कालांतर में हरीश रावत सतपाल महाराज व इंदिरा हृदयेश में बटी रही । मगर समय के साथ राजनीतिक हिचकोलों में कुछ सियासी हस्तियाँ नेपथ्य में चली गई ।
2017 की शुरुआत में सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत राज्य की राजनीति के केंद्र बिन्दु थे । किन्तु 2017 के विधानसभा चुनाव में हरीद्वार ग्रामीण और किच्छा से एक साथ चुनाव हारने के बाद उनके आभा मण्डल का तिलिस्म टूटा जरूर किन्तु मृत पड़ी कांग्रेस के वे आज भी इकलौते खेवनहार दिखते हैं । वहीं निरंतर हरीश रावत से रजीनीतिक मजबूती से जूझने वाले सतपाल महाराज अपने बड़े कद और प्रभाव के साथ भारतीय जनता पार्टी में आए थे । भले ही वे अपने कद के अनुरूप कांग्रेस से अपने चेलों को कांग्रेस से भाजपा में लाने में असफल रहे, फिर भी महाराज अपनी आध्यात्मिक पहचान और संपर्को के साथ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का नाम घोषित होने तक भाजपा के भीतर सभी बड़े नेताओं के लिए चुनौती बने हुए थे । भले ही समय की मांग को देखते हुए उन्होने अपने से बहुत कनिष्ठ त्रिवेन्द्र रावत की कैबिनेट में मंत्री बनना स्वीकार कर लिया ।
वर्ष 2017 की शुरुआत में जहां भारतीय जाता पार्टी में पार्टी का कमजोर नेतृत्व हरीश रावत को न सदन में घेर पा रहा था और नहीं सड़क पर, यहाँ तक की अनेक राजनीतिक पंडित हरीश रावत के सूबे में दुबारा सरकार बनाने के समीकरण देख रहे थे, कि

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उत्तराखण्ड में  सूबे की सियासत वर्ष 2017  ।

अचानक भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बालूनी ने सूबे की सियासत को गरमा दिया । बलूनी ने राज्य के लचर नेतृत्व खंडूरी, निशंक, कोश्यारी के लोक सभा जाने से उत्पन्न खालीपन को अपने सियासी कौशल से हरीश रावत के सामने मजबूत चुनौती पेश कर दी । हरीश रावत पर सियासी हमलों से सूबे की सियासत तब हरदा बनाम बलूनी में सिमट गई । भारतीय जनता पार्टी के हताश कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का नया संचार इसलिए होने लगा कि राज्य भाजपा के नेतृत्व को हरीश रावत के प्रभाव में रहने का आरोप लग रहा था । फिर चुनाव में जहां भाजपा खुदको हारा मानकर चल रही थी, तभी एन चुनाव के वक़्त मोदी की दो जनसभाओं ने जनमानस के मन को बदल डाला ।
मुख्यमंत्री के पद पर त्रिवेन्द्र रावत का नाम चयनित होना प्रथम दृष्ट्या सभी के लिए आश्चर्य चकित करने वाला था । किन्तु तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के अतरिक्त कोई बड़ा चेहरा सूबे की सियासत में दिखाई नहीं दे रहा था । ऐसे में त्रिवेन्द्र रावत के नाम के चयन के पीछे उनका झारखंड प्रदेश भाजपा का प्रभारी होना और उत्तर प्रदेश चुनाव में अमित शाह के साथ काम करना लाभ दे गया इसके अलावा अनिल बलूनी के साथ त्रिवेन्द्र के पुराने सम्बन्धों और बलूनी के मोदी शाह से सम्बन्धों का सीधा लाभ भी त्रिवेन्द्र को मिल गया था ।
वर्ष 2017 में चर्चित इन चेहरों में अपने वजूद के साथ अपनी प्रासंगिकताएं बानाई हुई हैं । अपने अनेक साथियों का साथ छूटने के बाद भी हरीश रावत पुन: अपनी छवि के प्रति जन-विश्वास को लौटाने में लगे हुए है सतपाल महाराज मुख्यमंत्री न बनने की कसक के साथ अपनी सियासी गोटियां बैठाने में मसगूल हैं । राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी की बड़ी ज़िम्मेदारी मिलने के साथ अनिल बलूनी, अमित शाह और नरेंद्र मोदी की अंदरूनी टीम में और मजबूत हुए हैं ।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत 2017 की अंतिम तिथि तक अपनी छवि और जीरो टोलरेंश नीति के साथ सभी ध्रुवों को साधने की जुगत में लगे हो, लेकिन डबल इंजन के ताकत से चलने वाली सरकार में अभी भी वे प्रभावी मुख्यमंत्री की भूमिका मे नहीं दिख पाए हैं । सच  ये है कि  खैरासैण के सूरज को प्रभावी भूमिका में दिखना बाकी है ।

2017 मे भले ही सूबे में सरकार बदली हो किन्तु आम जनता के बीच कोई बड़ा बदलाव दिखना अभी बाकी है । बदलाव का भोंपू लेकर कांग्रेस से भाजपा में आए महारथी अब चुपचाप सत्ता की मलाई के आनंद में मसगूल हैं । सत्तावन सदस्यों के भारी जनमत के साथ भाजपा विधायक कैबिनेट विस्तार व दायित्व वितरण की प्रतीक्षा में बने हुए हैं । पुराने कार्यकर्ताओं की नजर भी बोर्ड निगम की चियरमेनी पर टक-टकी लगाए इंतजार में हैं कांग्रेस के ध्रुबों की राजनीति हरीश रावत, प्रीतम सिंह, किशोर उपाध्याय और इंदिरा हृदयेश के आपसी वर्चस्व की जंग में व्यस्त  है । क्षेत्रीय दल लुप्तप्राय:  से अदृश्य की ओर अग्रसर हैं । और साल के अंत तक गैरसैण राजधानी का मुद्दा सूबे में सुलगने लगा । और अब नए वर्ष यानी कि 2018 की सियासत डबल ईंजन से उम्मीद निकाय चुनावों की ओर बढ़ रही है ।

By Editor