Sushama Asur : सुषमा असुर की कलम से अब तो हम असुरों को जीने दो!
मेरा नाम सुषमा असुर है। मैं नेतरहाट (झारखंड) के
पहाड़ों पर रहती हूं। मैं जब स्कूल गयी, तो वहां एक
ऐसी भाषा मुझे पढ़ायी गयी, जो मेरे लिए बहुत
मुश्किल थी। खैर, अब मैं इंटर कर चुकी हूं। मैंने आपकी
किताबों में पढ़ा है कि हमलोग राक्षस होते हैं।
जबकि हमने आज तक किसी से कुछ नहीं छीना। उलटे
लोगों ने हमारा सब कुछ छीन लिया। आपके देवताओं
ने हमारा राज, इतिहास सब छीना। टाटा ने हमारा
विज्ञान चुरा लिया। बिड़ला हमारी जमीन
हथियाये हुए है, क्योंकि उसके नीचे बहुत बॉक्साइट
है। वंदना दीदी बोलती है यूनेस्को नाम की कोई
संस्था है, जिसे दुनिया की सभी सरकारों ने मिलकर
बनाया है, उसके अनुसार हमारी भाषा तुरंत मरने
वाली है।
आप सब अंडमान के आदिवासियों पर दुखी होते हो।
आप सब विदेशों में मरने वाले भारतीयों के बारे में
चिंतित होते हो। कहते हो रंगभेद हो रहा है। हम असुर
आपके इतने करीब हैं, बिल्कुल पटना, रांची, रायपुर,
राउरकेला, बांसवाड़ा, इंदौर के बगल में। पर हमारा
मरना नहीं दिखाई देता।
मैं एक असुर बेटी जो आपके मिथकों, पुराण कथाओं
और धर्मग्रंथों में हजारों बार मारी गयी हूं,
अपमानित हुई हूं। आप सबसे पूछना चाहती हूं क्या हमें
मारकर ही आप सबका विकास होगा? हजारों
साल तक मारने के बाद भी आप सबकी हिंसा की
भूख नहीं मिटी।
अब तो हमें अपनी भाषा, संस्कृति और जमीन व जल-
जंगल के साथ जीने दो।
– सुषमा असुर
साभार :-
https://m.facebook.com/photo.php?fbid=1559877847598251&id=100007281525615&set=a.1489257907993579.1073741827.100007281525615
अच्छा लगा।