Teen Talak : जायज कामों में सबसे नापसन्दीदा काम है तालाक – बेगम नैय्यर हसीन
पन्तनगर, तालाक जायज कामों में सबसे नापसन्दीदा काम है। तालाक का प्रावधान उस समय के लिये है जब दंपन्ति में निभाव की कोई गुंजाईश बाकि न रहे। ऐसे समय में इससे बेहतर है कि वे एक खूंटे से रहकर मौत का इंतजार करें या असमय मौत को गले लगाएं या फिर जालिम जमाने के हाथों मार दिये जाएं।
तालाक दोनों पक्षों को अपने तरीके से जीने की आजादी देने का नाम है। इस्लाम में शादी एक समझौता है जिन धर्मों में विवाह जन्म जन्मांतर का बंधन है उन्हे भी महिलाओं का सामाजिक शोषण से बचाने के लिए तलाक का कानून बनाना पड़ा। आज मुसलमानों से अधिक तलाकें गैर मुस्लिमों में हो रही हैं। दो अलग परिवेश से आए लोंगों में शत् प्रतिशत सामंजस्य स्थापित होने की गारन्टी कोई नहीं ले सकता है। आपसी विवाद होना बहुत ही स्वभाविक है, यह रिश्ता सहनशीलता व सूझ बूझ से ही निभाया जाता है। सबका स्वभाव परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पाता नतीजतन टकराव की नौबत आ जाती है। जिससे जीवन नरक बन जाता हैं। ऐसी स्थिति में दोनों का अलग हो जाना ही बेहतर है। अब मसला तीन तलाक या एक तलाक का हैं तीन तलाक या एक तालाक का है तो तीन तालाक का रिवाज जहालत के कारण प्रचलित है। लोंगों को शरीयत की जानकारी नहीं है। एक ही समय में तलाक एक बार कहा जाए या तीन बार इसके बाद यदि तीन महीने के अंदर दोनों के बीच स्वतः सुलह हो जाए या परिजनों एवं रिश्तेदारों द्वारा मेल मिलाप करवा दिया जाए तो तालाक स्वतः ही खत्म हो जाएगी। यदि तीन महीने का समय व्यतीत हो जाए और दोनों मे किसी तरह का कोई सम्बन्ध न रहे तो तालाक हो जाएगी क्योंकि तीन महीने का समय काफी है गल्ती सुधारने के लिए कानून बनाकर इस मसले को हल करना संभव नहीं है। यहाँ तो कानून बनते ही तोड़ने के लिए है। जरूरत है समाज को जागरूक करने कर तथा अधिकार और कर्तव्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की तभी सामाजिक बुराईयों को दूर किया जा सकता है।