राज्य के इतिहास में पहली बार हुआ ऐसा कि जब किसी नेता स्वयं ही सुद ली हो उजड़े हुए गांवों की !
सांसद बलूनी ने व्यक्त की पहाड़ की पीड़ा । सांसद खुद की पहल से सजाएंगे बीरान हुए बौर गांव को ।
बौर गांव बनेगा मॉडल गांव , फिर उसी तर्ज पर विकसित किए जाएंगे अन्य गांव ।
देहरादून, यूथ आइकॉन । पहाड़ों से पलायन कोई नई बात नहीं है , पलायन पहाड़ नियति में रहा है । यहां पलायन पच्चास के दशक से जारी है । परंतु तब लोग पलायन करते थे लेकिन कुछ समय बाद लौटकर वापस गांव में आ जाते थे । और यह क्रम नब्बे के दशक तक जारी था । नब्बे के दशक में ही अलग पर्वतीय राज्य की मांग को लेकर आंदोलन भी चरम पर था । प्रवासी उत्तराखंडी भी देश के भिन्न भिन्न शहरों में अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन के भागीदार बन रहे थे क्योंकि हर कोई अपने गांव वापस लौटना चाहता था । सबको विश्वास था कि राज्य की राजधानी पहाड़ के केंद्र बिंदु गैरसैण में ही होगी । लंबे आंदोलन के बाद अलग राज्य तो मिला पर अधूरे सपने के साथ । जो परिकल्पना लोगों की थी बिल्कुल उसके उलट राज्य का निर्माण हुआ जिसके बाद पहाड़ के बजाय मैदान के कुछ हिस्सों में ही राज्य का विकास सिमट कर रह गया ।
राज्य बनने के बाद पहाड़ों की हालत उत्तर प्रदेश के समय से भी बदत्तर होती चली गई । ततपश्चात टूटती हुई उम्मीदों और अधूरे सपनों के बीच पहाड़ का जनमानस अपना सामान समेट कर सुविधायुक्त शहरों की ओर पलायन करने लगा जो कि राज्य बनने के बाद वर्ष 2002 से वर्ष 2010 तक बहुत तीव्र गति से हुआ , और आज भी पहाड़ से पलायन बदस्तूर जारी है । नतीजतन आज लाखों परिवार पहाड़ से पलायन कर गए और गांव के गांव खंडहरों में तब्दील हो गए । इस बीच बहुत से संगठन भी खड़े हुए जिन्होंने पलायन को लेकर चिंता व्यक्त की लेकिन सत्ता के नशे में मस्त नेताओं ने एक न सुनी ।
परन्तु जिस तरह अब उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद व भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल बलूनी ने बीरान पड़े गांवों को संवारने के लिए जो अपनी मंशा व्यक्त की है उससे यह उम्मीद प्रबल हो गई है कि अब पहाड़ो के अच्छे दिन आने वाले हैं । बशर्ते कि यह पहल ईमानदारी के साथ धरातल पर भी साकार होती हुई दिखाई दे ।
बलूनी जी ने पहाड़ की पीड़ा को समझा है और वह इसका निदान करना चाहते हैं तो हम उनकी इस पहल का स्वागत करते हैं, और उन्हें पलायन जैसे मुद्दे पर उनका पूरा सहयोग भी करेंगे । लेकिन डर है कि सिर्फ उनकी घोषणा भी मात्र मीडिया की सुर्खियों में न रह जाय । मेरी सोच है कि गांवों को पुनर्जीवित करने से पहले एक ठोस प्लान तैयार हो । खंडहर बन चुके गांवों को विलेज टूरिज्म के कॉन्सेप्ट पर तैयार किया जाय और पलायन कर चुके परिवारों के सदस्यों की भागीदारी भी उसमें सुनिश्चित हो । साथ ही साथ ग्रामीण पर्यटन को हॉर्टिकल्चर से जोड़ा जाए , नगदी फसलें, कण्डाली और भीमल के टसर पर आधारित ग्रामीण उद्योगों की स्थापना कि जाय तो सांसद अनिल बलूनी की यह शुरुवात पहाड़ के विकास के लिए एक मिशाल बन जाएगी । अगर इसी तर्ज पर बीते 18 वर्षो से हमारे राज्य के 70 विधायक, 8 सांसद, 13 जिला पंचायतों के अध्यक्ष, 95 ब्लॉक प्रमुखों ने अगर एक एक गांव को भी संवारने का बीड़ा उठाया होता तो आज पहाड़ों की यह दुर्दशा न हुई होती । सोचिए जिस पहाड़ से प्रधान से लेकर मुख्यमंत्री तक पलायन कर गए हों तो उस क्षेत्र में कैसा विकास हो रहा होगा इसका आकलन आप स्वंय कर सकते हैं । लेकिन आज सांसद बलूनी जी ने जो मंशा व्यक्त की है मैं उसकी सराहना करता हूँ । – रतन सिंह असवाल
बताते चलें कि सांसद अनिल बलूनी की ओर से एक प्रेसनोट जारी कर मीडिया को जानकारी दी गई है कि वह पलायन से उजड़े गांवों की तस्वीर बदलना चाहते हैं । संभवतः यह पहला मौका होगा राज्य बनने के बाद बीते 18 वर्षों में कि जब किसी भी पार्टी के नेता व जनप्रतिनिधि ने स्वयं से पहाड़ की चिंता व्यक्त कर उसकी पीड़ा में शामिल होकर उसे सुधारने की मंशा व्यक्त की हो ।
सांसद बलूनी की इस घोषणा के बाद पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन सिंह असवाल भी बेहद खुश हैं साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सांसद महोदय ने पहाड़ की पीड़ा को समझा है और वह इसका निदान करना चाहते हैं तो हम उनकी इस पहल का स्वागत करते हैं, और उन्हें पलायन जैसे मुद्दे पर उनका पूरा सहयोग भी करेंगे । लेकिन डर है कि सिर्फ उनकी घोषणा भी मात्र मीडिया की सुर्खियों में न रह जाय । रतन सिंह असवाल ने अपने सुझाव देते हुए कहा कि गांवों को पुनर्जीवित करने से पहले एक ठोस प्लान तैयार हो । खंडहर बन चुके गांवों को विलेज टूरिज्म के कॉन्सेप्ट पर तैयार किया जाय और पलायन कर चुके परिवारों के सदस्यों की भागीदारी भी उसमें सुनिश्चित हो । साथ ही साथ ग्रामीण पर्यटन को हॉर्टिकल्चर से जोड़ा जाए , नगदी फसलें, कण्डाली और भीमल के टसर पर आधारित ग्रामीण उद्योगों की स्थापना कि जाय तो सांसद अनिल बलूनी की यह शुरुवात पहाड़ के विकास के लिए एक मिशाल बन जाएगी ।
पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन सिंह असवाल ने उत्तराखंड के अन्य जनप्रतिनिधियों पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस तरह की सोच आज अनिल बलूनी ने व्यक्त की है अगर उसी तर्ज पर बीते 18 वर्षो से हमारे राज्य के 70 विधायक, 8 सांसद, 13 जिला पंचायतों के अध्यक्ष, 95 ब्लॉक प्रमुखों ने अगर एक एक गांव को भी संवारने का बीड़ा उठाया होता तो आज पहाड़ों की यह दुर्दशा न हुई होती । श्री असवाल ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस पहाड़ से प्रधान से लेकर मुख्यमंत्री तक पलायन कर गए हों तो उस क्षेत्र में कैसा विकास हो रहा होगा इसका आकलन आप स्वंय कर सकते हैं ।
राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी ने आज एक अभूतपूर्व फैसला लेते हुए उत्तराखंड राज्य के एक गैर-आबाद गाँव, निर्जन गाँव, ग्राम – बौर (ब्लॉक दुगड्डा, जनपद पौड़ी) को गोद लेने का फैसला किया है। सांसद अनिल बलूनी ने इस गाँव को एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लिया गया है, और इसे विकसित करना चाहते हैं ।
सांसद बलूनी बताया कि इसके बाद वह इसी तर्ज पर अन्य सुनसान, निर्जन पड़े गांवों को भी इसी मॉडल पर आबाद करने के प्रयास करेंगे ।
बौर गांव को पुनर्जीवित करने के लिए सबसे पहले मूलभूत सुविधाओं में बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और रोजगार से जोड़ा जाएगा ताकि गाँव पुनः पुनर्जीवित होकर अपने पूर्व के स्वरूप में आबाद हो सके। इस संबंध में शीघ्र ही इस गाँव के प्रवासियों के साथ बैठक की जायेगी।
बलूनी ने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड में पलायन की समस्या काफी भयावह बनती जा रही है, तमाम गाँव धीरे-धीरे खाली होते जा रहे हैं और राज्य की महान संस्कृति विलुप्ति के कगार पर है। ऐसे में यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने राज्य की विशिष्ट संस्कृति और परंपरा को पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए कटिबद्ध हों। उन्होंने कहा कि निर्जन गाँवों को आबाद करने का यह प्रयास उत्तराखंड के लिए मील का पत्थर साबित होगा। जो नौजवान रोजगार के लिए गाँव छोड़ने को मजबूर हुए हैं, उन्हें वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराकर ‘रिवर्स माइग्रेशन’ के द्वारा गाँवों को आबाद करने की शुरुआत की जा रही है।
राज्य सभा सांसद ने कहा कि बौर गांव को अंगीकृत करने के साथ-साथ इन गैर-आबाद ग्रामों के पुनर्जीवन की कार्ययोजना भी तैयार कर ली गई है, जिसके तहत वे उत्तराखण्ड के प्रवासी परिवारों/संगठनों के बीच जाकर संवाद करेंगे। उत्तराखंड के लाखों प्रवासी जो कि दिल्ली, लखनऊ, बरेली, मेरठ, गाजियाबाद, चंडीगढ़, भोपाल, इंदौर, जयपुर, मुंबई आदि शहरों में जाकर बस गए हैं, उन सबसे चर्चा कर गांव के पुनर्जीवन हेतु अनुरोध किया जाएगा और उनकी मांगों के निराकरण हेतु प्रयास किया जाएगा। साथ ही प्रवासियों से संवाद अभियान के माध्यम से उत्तराखंड के कौथीग (मेले), ऋतुपर्व और पारंपरिक आयोजनों को पुनः पुनर्जीवित करने के लिए संपर्क किये जायेंगे।
राज्य के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ होगा कि इस तरह से एक निर्जन गाँव को गोद लेने और उसके पुनर्विकास का प्रयास किया गया हो। यह अपने आप में एक अनूठा कदम है।
मेरी समझ में अभी इतना उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं, ये राजनीतिक बयानबाजी है जब तक बलूनी जी अपने गॉव नहीं लौटेगे तब तक लोग उनकी बातों पर विश्वास नहीं करेगें.
It is a nice step taken by MP sh. Baluniji.As per my opinion high level medical facilities should be made available in cities located near clusters of villages.Large numbers retired, sr.citizen are willing to go back to their birth places to live in peace n free polluted climate . we still remember our child hood from where we have achieved success.