urmilesh senior Journalist With shashi bhushan maithani Paras at Youth icon Yi national media Dehradun uttrakhand
Urmilesh Journalist Icon Of the week : पत्रकारिता में भी भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद का बोलबाला
उर्मिलेश जी पत्रकारिता जगत का वो सूर्य हैं जिनकी चमक वक्त के साथ और तेज होती गई। उर्मिलेश का जन्म 8 सितम्बर 1957 को हुआ, इलाहबाद विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में एम.ए. और जवाहरलाल विश्वविद्यालय दिल्ली से एम.फि ल. तथा लेखन और
पत्रकारिता के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित, सात महत्वपूर्ण पुस्तकों के लेखक, भारत सरकार के मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश पिछले तीन दशकों से पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान और दैनिक भास्कर जैसे राष्ट्रीय समाचार पत्रों के अलावा उर्मिलेश देश के महत्वपूर्ण चैनल राज्यसभा टेलीविजन के कार्यकारी संपादक भी रहे हैं। और आज भी राज्यसभा चैनल पर वह अपना बहुचर्चित साप्ताहिक कार्यक्रम मीडिया उन्यन पेश करते हैं। सभी महत्वपूर्ण राजनैतिक दलों और प्रदेशों के चुनावों से लेकर कारगिल युद्ध को कवर करने वाले उर्मिलेश दूरदर्शन-आकाशवाणी और देश के सभी महत्वपूर्ण समाचार चैनलों की चर्चाओं में भाग लेते रहते हैं। ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों तथा अमेरिका में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके उर्मिलेश ने साहित्यिक पत्रिका वर्तमान का संपादन भी किया है। इनकी पुस्तक झेलम किनारे दहके चिनार को हिंदी अकादमी का कृति सम्मान भी मिल चुका है। इनकी किताब ‘कश्मीर: विरासत और सियासत’ चर्चाओं में बनी हुई है। कई राष्ट्रीय और अतंराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित उर्मिलेश पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए हमेशा अग्रिम पंक्ति में खड़े नजर आते हैं। वर्तमान में पत्रकारिता की दशा और दिशा के साथ सोशल मीडिया की बढती सक्रियता पर क्या कहना था उनका आप भी पढिय़े।
Yi शशि पारस :आज पत्रकारिता तटस्थता के बजाय पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो गई, कहने का मतलब है कि आज का पत्रकार हो या मीडिया संस्थान अधिकाँश का किसी न किसी राजनीतिक दलों या नेताओं के प्रति झुकाव बना हुआ है। जिसका प्रयोग नेताओं की छवि सुधारने या बिगाडऩे में भी खूब होने लगा है, इस विषय पर आपकी क्या राय है ?
उर्मिलेश : ऐसा भी है, बिल्कुल पत्रकारिता के एक बड़े हिस्से में ऐसा हो रहा है, और इसके लिए जिम्मेदार हैं संपादक व संस्थान, क्षेत्रीय स्तर पर पत्रकार बहुत अच्छे हैं वह काम करना चाहते हैं लेकिन उन्हे अपने-अपने संस्थानो व संपादकीय डेस्क व नेतृत्व से उचित समर्थन व मार्गदर्शन न मिलने के कारण भी ऐसा हो रहा है, फिर भी मै आपकी बात से सहमत हूँ कि ऐसा अभी नहीं बल्कि पहले भी होता चला आ रहा है, और बेशक पत्रकारिता जगत के लिए चिंता की बात है।
Yi शशि पारस : पिछले कुछ समय से देखने में आ रहा है कि कुछ पत्रकार चरम पर पहुँचने के बाद वह सीधे किसी न किसी राजनीतिक पार्टी की शरण में जा रहे हैं । क्या इसका मतलब यह समझा जाय कि अब राजनीति का रास्ता मीडिया से होकर गुजरेगा ?
उर्मिलेश : कितने लोग जा रहे हैं ? मै आपको बताना चाहूँगा कि इस तरह के लोगों की संख्या बहुत कम हैं आज क्रिकेट, फिल्म, व्यवसाय, शिक्षा आदि क्षेत्रों के लोग अगर राजनीति में कदम रखते हैं तो कोई सवाल खड़ा नहीं होता लेकिन जब कोई पत्रकारिता के फील्ड से राजनीति में कदम रखता है तो उस पर सवाल खड़े होने लगते हैं, मेरा मानना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए अगर किसी पत्रकार के अंदर शैक्षिक और बौद्धिक योग्यता है तो उसके राजनीति में आने पर सवाल क्यों? इतिहास गवाह है कि देश ही नहीं दुनिया भर के पत्रकारों ने अपने अपने देशों में अपनी योग्यता का लोहा मनवाया है। मसला यह है कि अगर पत्रकार राजनीति में जाकर सत्ता और कॉरपोरेट कि दलाली करने लगे तो वह बिल्कुल गलत है। पेशेवर पत्रकारों को राजनीति मे कदम नहीं रखना चाहिए और अगर रख रहे हैं तो तभी रखें जब वह वहाँ जाकर कुछ सार्थक या श्रेष्ठ कर सकें ।
Yi शशि पारस : गिरते राजनीतिक मूल्यों के सन्दर्भ में पत्रकारिता की भूमिका के सम्बन्ध में आप क्या कहना चाहेंगे ?
उर्मिलेश : देश में जिस तरह से सियासत का अवमूल्यन हो रहा है उसी तरह पत्रकारिता के स्तर में भी गिरावट आ रही है । पत्रकारिता में पहले नियुक्ति की एक पॉलिसी होती थी जिसके तहत संस्थान पत्रकार चयन कर उन्हें फील्ड या डेस्क के लिए नियुक्त करते थे। प्रक्रिया आज भी वही है लेकिन इसमें भी राजनेताओं का दखल ज्यादा बढ़ गया है। नियुक्ति में पैरवी होने लगी है पत्रकारिता में भी भाई-भतीजावाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद बहुत ज्यादा बढ़ गया है । इसलिए इसकी भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कभी निस्वार्थ भाव से की जाने वाली पत्रकारिता आज इन्ही कारणों से स्वार्थ सिद्धि का कारण बन गई हैं।
Yi शशि पारस : अब न्यू मीडिया/डिजिटल मीडिया भी बड़ी तेजी से फ़ैल रहा है, मीडिया के इस नए अवतरण को आप कितना भरोशे मंद व टिकाऊ मानते हैं ?
उर्मिलेश : न्यू मीडिया की भूमिका तेजी से बढ़ी है अभी तक मीडिया पर कॉरपोरेट ओनरशिप रही है, साथ ही क्रास मीडिया ओनरशिप रही है। क्रॉस मीडिया ऑनरशिप मतलब अखबार, टीवी, रेडियो से लेकर वेब तक पर एक ही तरह के कॉरपोरेट लोगों का नियंत्रण रहा है। इसे रोकने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं है इसे रोका जाना बेहद जरूरी है। लेकिन वर्तमान में मीडिया के इस बदलते स्वरूप का सुखद पहलू यह दिख रहा है कि न्यू मीडिया लोगों के बीच एकदम नए कॉनसेप्ट में आया है। न्यू मीडिया बहुत अच्छा काम कर रहा है लेकिन यह कहना भी जल्दबाज़ी होगी कि यह विकल्प बन गया है । टीवी एवं रेडियो को देखने व सुनने के अलावा अखबार को पढऩे का लोगों का सलाह हमेशा से रहा है और हमेशा रहेगा, इनकी जगह हमेशा बनी रहेगी ।
Yi शशि पारस :सोशल मीडिया को पत्रकारिता का माध्यम बनाने वालों के लिए आपकी क्या सलाह है ?
उर्मिलेश : पत्रकारिता का दायरा बढ़ा है। सोशल मीडिया के इस युग में हर कोई पत्रकार की भूमिका है। इसके सकारात्मक नकारात्मक पहलू दोनों है। खबरों की समझ रखना ही केवल पत्रकारिता नहीं है। बल्कि समाज पर इसके सकारात्मक प्रभाव के पहलुओं पर भी समाचार के माध्यम से विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। पत्रकारिता का स्वरूप तेजी से बदला है। नए जमाने के साथ कदमताल करने के लिए जरूरी है कि उसके साथ अपडेट रहा जाए। सोशल मीडिया पर भी अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करते समय इसके प्रभाव की जानकारी भी होनी चाहिए।
Yi शशि पारस :नोटबंदी फैसले पर आपकी क्या राय है, इसे आप सही मानते हैं या गलत ?
उर्मिलेश : नोटबंदी के कदम को मैं जनता के लिए मुसीबत बढ़ाने वाला कदम मानता हूँ मुझे नहीं लगता है कि इससे कोई बहुत बड़ा सुधार आने वाला है। कैश में भारत में कालाधन केवल 6 फीसदी है। नेता, बड़े व्यवसायी, व कालेधन को बढ़ावा देने वाले लोगों को केंद्र सरकार के इस कदम कहीं भी प्रभावित नहीं किया, बल्कि मुझे लगता है आने वाले लंबे समय तक इसके दुष्परिणाम आम आदमी को भुगतने होंगे। इससे भविष्य में भारी संख्या में बेरोजगारी बढ़ेगी और राजनीतिक प्रतिद्व्न्ध्ता देखने को मिलेगी। सत्ता पार्टी अपने विरोधियों को हमेशा टैक्स टेरर के खौफ से डराने का प्रयास करती रहेगी ।
Yi शशि पारस : नवोदित पत्रकारों को आपकी सलाह क्या है ?
उर्मिलेश : नवोदित पत्रकारों को मेरी सलाह यह है कि वह खूब पढ़ें ज्ञान अर्जित करें क्योंकि ईमानदारी के साथ समझदारी का होना भी बहुत जरूरी है। वर्तमान पत्रकारिता में ईमानदारी के साथ समझदारी का अभाव जरूर है लेकिन अभी अकाल नहीं पड़ा है। संकट यह है कि इन दोनों से युक्त पत्रकारों को अगर जगह नहीं मिलती तो वह क्या करें। इसको लेकर मेरी खास तौर पर संपादकों और संस्थानो से भी यह गुजारिश है कि वह नियुक्ति प्रक्रिया को सशक्त व पारदर्शी बनाएं। योग्य पत्रकारों का चयन करें पैरवी के जरिए पत्रकारों को न चुने। पत्रकारिता में भाई-भतीजावाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, के आधार पर नियुक्ति न हो, नियुक्ति का पैमाना सिर्फ योग्यता हो। पिछले कुछ समय से मै देख रहा हूँ स्थायी तौर पर पत्रकारों को रखने के बजाय संस्थान सिं्ट्रगरशिप को बढ़ावा दे रहे हैं । जिसमें से कईयों की पत्रकारिता की तो छोडि़ए उनकी शैक्षिक योग्यता का ही अता-पता नहीं होता है। और इस वजह से योग्य पत्रकार धीरे-धीरे हाशिए पर पहुँच गए हैं। साथ ही एक बात और कहना चाहता हूँ भारत के मीडिया में भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गायब है, जिसमें मुख्य रूप से दलित व आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलाएं और पिछड़े वर्ग के लोग शामिल हैं । जिनको आगे लाया जाना बहुत जरूरी है। जिससे भारतीय मीडिया विविधतापूर्ण बन सके।
Copyright: Youth icon Yi National Media, 08.01.2017
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