फिर सुर्ख़ियों में उत्तरा बहुगुणा ! बोली धमकी मत दो , पहले मेरी शिकायतों की करो जांच !
वर्ष 2018 में उत्तराखंड की उत्तरा के आंसू प्रदेश ने ही नहीं बल्कि पूरे देश और दुनिया ने देखे . उत्तरा बहुगुणा का भरी सभा में सिस्टम पर वो चीखना, चिल्लाना, खीजना और तरबतर आंसुवों के साथ रोना क्या आम और क्या ख़ास सभी को भावुक कर गया था . और एक सरकारी सेवक की पीड़ा को सार्वजनिक कर गया था . यह गौर करने वाली बात है और सच्चाई भी है कि सिस्टम में अव्यवस्था, असमानता, अव्यवहारिकता और बहरापन है जिसके एवज में हजारों लाखों सरकारी सेवकों को पूरे देश में किसी न किसी विभाग में प्रताड़ित होना पड़ता है . फिर तभी इनमें से कोई उत्तरा भी प्रकट होती है .
बात सिर्फ उत्तराखंड सरकार की नहीं यह हाल कमोवेश पूरे भारत देश के सरकारी सिस्टम का है . लेकिन इस कु-व्यवस्था के खिलाफ एक छोटी सी आवाज निकली थी हिमालय से . यह आवाज भी हिमालय से निकली गंगा और यमुना जैसी ही पवित्र और निर्मल थी भले ही वह परवान नहीं चढ़ पाई, इसका मलाल उत्तरा बहुगुणा को भी होगा . लेकिन गंगा के जल की तरह वह आवाज अब भी जागृत है . मौक़ा था पीड़ित शोषितों को देशभर में एकजुट होकर एक आवाज बनने का परन्तु ऐसा हो न सका और उत्तरा अकेले ही अपने संघर्षों की कहानी बनकर रह गई . कर्मचारी हितों की बात करने वाले संगठन और उसके नेता सब नदारद रहे, क्योंकि उन सबके अपने – अपने एजेण्डे होते हैं और उसी की धुरी में रहकर वह काम भी करते हैं . कर्मचारी हितों की बात करना तो महज एक बहाना है . खैर ……! उत्तरा बहुगुणा फिर गुस्से में है और इस वक्त उन्होंने अपने ही विभाग के खिलाफ फेसबुक पर मोर्चा खोल दिया है जिसकी वजह से वह फिर एक बार सुर्ख़ियों में आ गई हैं . आगे आप स्वयं उत्तरा की लिखी बातों को पढ़ें जिसमें हम कोई काट छांट नहीं कर रहे हैं .
शिक्षा विभाग से फिर खफा हुई शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा पन्त : [ फेसबुक के मार्फत खोला मोर्चा ]
उत्तरा बहुगुणा की चिट्ठी कुछ सवाल विभाग से !
शिक्षा विभाग उत्तरकाशी में दिनांक 17/07/2018 को खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय नौगाँव में मेरी लिखित और मौखिक जाँच होने के बाद, मेरे द्वारा अपना पक्ष रखते हुए पच्चीस छब्बीस पत्र जाँच हेतु दिए गए थे, जो कि नौगाँव कार्यालय द्वारा दो दिन के बाद जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय उत्तरकाशी को भेज दी गई थी। लेकिन छ: माह व्यतीत हो जाने के बाद उस पर कोई कार्रवाई किए बिना ही पहले मुझे डाक द्वारा नोटिस भेजे गए, और अब अखबार के माध्यम से नोटिस दिया जा रहा है, जिसमे अपना पक्ष रखने को कहा गया है, मैं अधिकारियों को अवगत करा दूँ कि मेरे द्वारा अब भी अपना पक्ष उन्ही पत्रों को देकर रखा जाएगा, जो उनके पास माह जुलाई में रखा गया है।
जिनमे मेरे द्वारा निम्न बिन्दुओं पर जाँच करने का आग्रह किया गया है।1- जब मेरे पूर्व रा0 प्रा0 विद्यालय में माह अप्रैल मई में छात्र संख्या शून्य थी, तो माह जून में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान बंद विद्यालय में छात्र संख्या दस से कम कैसे से प्रवेश हो गए। और माह जून में बिना काउंसलिंग के मेरा समायोजन एक ब्लॉक से दूसरे ब्लॉक में कैसे किया गया।
2- जब मुझे विद्यालय की जाँच पड़ताल किए बिना ही दूसरे विद्यालय में भेजा गया, तो उक्त विद्यालय में माह जुलाई में जाने के बाद दूसरी अध्यापिका कैसे नियुक्त की गई।
3- बिना छात्र संख्या विहीन उक्त विद्यालय में जब दो साल तक अध्यापिका और शिक्षामित्र को वेतन दिया जाता रहा, तो मेरी LPC उन्नीस माह तक किस आधार पर रोकी गई।
इनके अतिरिक्त मैं 2015 से विभाग द्वारा मेरे साथ होने वाले अन्याय की जाँच करवाने तथा अपनी LPC दिलवाने के संबंध में शिक्षा सचिव से लेकर शिक्षा निदेशक और शिक्षामंत्री को दिए जाने वाले प्रार्थना पत्रों की स्वीकृत की गई प्रति आपको सौंपी गई है। और पहले भी सौंपी गई थी, उच्च अधिकारियों द्वारा आदेश मिलने के बाद भी मुझे न्याय नहीं मिला।
आप मुझे नौकरी से निकालने की धमकी क्या दे रहे हैं। मैं खुद ही ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के अधीन नौकरी नहीं करना चाहती हूँ , जिनके भ्रष्टाचार की चक्की में पीसने के बाद मुझे ईमानदारी और अनुशासन पूर्वक नौकरी करने के बाद भी मुख्यमंत्री द्वारा सांत्वना देने की बजाय अपमानित किया जाता है। जिस सरकार में मेरे साथ-साथ मेरे बच्चों का भी आर्थिक हानि पहुंचा कर मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है, आगे भी होता ही रहेगा। हमारे माता-पिता ने गाँव-गाँव की खाक छानकर इसीलिए बनाया था हमारा भविष्य की हर कोई भ्रष्टाचारी हमें खिलौने की तरह इस्तेमाल करके रुलाता रहे। तुम्हारा एक्ट तुम्हारी नौकरी तुम्हे मुबारक। क्योंकि आपसे ईमानदारी की उम्मीद मैं कर नहीं सकती, और बेईमानी के आगे मैं झुक नहीं सकती। इसमे परिवार भी दोषी है।
यहाँ जोर देकर समझने वाली बात यह भी है कि उत्तरा बहुगुणा की लड़ाई या गुस्सा वर्तमान सरकार या मुख्यमंत्री से नहीं थी, बल्कि उत्तरा बहुगुणा की पीड़ा को करीब से व ईमानदारी से देखा जाय तो वह वर्ष 2015 अपने पति के मौत के बाद से काफी परेशान थीं . अचानक से जवान बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी अकेले उन पर आ गई थी जिसके एवज में वह विभाग से सहयोग की अपील करती रही . यह सच है कि सबने उनकी बातों को अनसुना किया है और अनसुना करने का भी कारण रहा कि उनकी पैरवी करने वाला कोई “माई बाप” नहीं रहा वह स्वयं ही अपनी पीड़ा, बाबू से लेकर अधिकारी के दर-दर भटकती रही . जिसके बाद थकी हारी मजबूर उत्तरा बहुगुणा का गुस्सा प्रदेश के मुखिया के सामने ही फूट पड़ा . बेशक बीते वर्ष 2018 में 28 जून को उत्तरा बहुगुणा द्वारा देहरादून में मुख्यमंत्री के दरबार में दर्शाए गए उनके व्यवहार को किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता है . क्योंकि सरकारी कर्चारियों के लिए एक सेवा नियमावली है जिसके अधीन ही उन्हें कार्य करना होता है . अनुशासन में रहना आम हो या ख़ास सबके लिए जरूरी है और खासकर तब जब आप किसी नियमावली से बंधे
होते हैं . आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जिस तरह पुलिस का जवान या सीमा पर तैनात सेना का जवान हर वक्त हथियारों से लेस होते है, और वह बेहद विषम परिस्थितियों कार्य करते हैं . कष्ट उन्हें भी होता होगा, वह भी अपनी पसंद की जगहों पर तैनाती चाहते होंगे लेकिन नहीं मिल पाती है, फिर गुस्सा भी आता होगा परन्तु वह फिर भी संयम्मित रहते हैं . इसलिए सरकारी सेवक को भी अपने गुस्से पर काबू रखना या अनुशासन में रहना बेहद जरुरी है . लेकिन अगर उनके साथ भेदभाव हो रहा है उनका शोषण हो रहा है तो कर्मचारियों को भी तुरंत उस अन्याय के खिलाफ मुखर होकर आगे आना चाहिए . अपने हितों की लड़ाई को डटकर लड़ना चाहिए . फिर सरकार में बैठे मंत्री हों या संत्री बाबू हो या अधिकारी इनके खिलाफ मय सबूत न्यायालय में दस्तक देनी चाहिए .
लेकिन उत्तरा बहुगुणा को सालों साल से अनसुना करने वाले बाबू अधिकारी या शिक्षक संगठन से जुड़े नेताओं व अन्य कर्मचारी संघ के नेताओं की भी जांच हो तो बड़े बड़े रहस्योद्घाटन होंगे . उक्त सभी जिम्मेदारों के रिश्ते नातेदारों में इनके जीजा, साले, बहिन , पत्नी, काका, काकी भतीजा भतीजी, यजमान, पुरोहित, लग्गा अड़ोसी पडोसी आदि इत्यादि आरामदायक जगहों पर तैनात मिलेंगे या अटैच मिलेंगे . उत्तरा बहुगुणा तो बहुत दूर उत्तरकाशी से देहरादून आने की मांग कर रही है यहाँ तो ऐसे मामले हैं जो देहरादून के धर्मपुर से महज 25 मिनट की दूरी पर स्थित रानीपोखरी पोखरी में नहीं जाना चाहते हैं और फिर सिस्टम की मिलीभगत ने उन्हें घर के पास में ही अटैच कर तैनात कर दिया है . तो ऐसे में उत्तरा बहुगुणा पन्त हो या अन्य कर्मचारी जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी चमोली, उत्तरकाशी, या पिथौरागढ़ में बिता दी और उन्हें हो रही तकलीफ के बाबजूद लगातार अनसुना किया जाय तो उसे भी कैसे जायज माना जाय . सेना का जवान भी तभी अनुशाषित होता है क्योंकि उसके साथ भेदभाव नहीं होता है . सेना में अधिकारी हो या सेनिक 3 साल से ज्यादा कोई भी एक जगह पर नहीं रह सकता है . इसलिए सरकारी सिस्टम को भेदभाव खुद समाप्त करना होगा वरना आगे भी कई उत्तरा ऐसे ही प्रकट होती रहेंगी .
उतरा जी को न्याय मिलना चाहिए और जाँच भी होनी चाहिए और दोसियो को सजा मिलनी चाहिए
YAH STHITI UK KE HAR VIBHAG MEIN HAI CHAAHE STATE GOVT HO YAA FIR CENTRAL GOVT KA VIBHAG HO. BHAAI BHATEEJA VAAD SABHEE JAGAH HAI AUR CORRUPTION SAB JAGAH HAI.