पहाड़ के भविष्य पर मंडराता खतरा ! देवभूमि पर अब कौन सा खतरा ?
* क्या बड़ी मुसीबत की ओर बढ़ चुकी है देवभिमी उत्तराखंड !
* बज चुकी है खतरे की घंटी, वैज्ञानिक जता रहे हैं चिंता .
दुनिया मे पीने की पानी की कमी लगातार हो रही है और इस मामले मे हिमालय मे बसा राज्य उतराखंड भी पीछे नही है, भले ही देश की सबसे बड़ी गंगा नदी से लेकर सैकड़ों छोटी बड़ी नदियंा यही से निकलती है लेकिन यहां भी प्राकृति जलस्त्रोतों की स्थिति अच्छी नही है। जिस पर वैज्ञानिक भी चिन्ता जता रहे हैं। पढ़े ये खास रिर्पोट-
नदियांे ,ग्लेशियरों से भरपूर हिमालयी राज्य उतराखंड, जो प्रकृति की गोद मे बसा होने कारण अपनी एक खास पहचान रखता है लेकिन यहां पिछले कुछ समय से बरसात के समय तेज बारिश, बाढ जैसी प्राकृतिक आपदाऐं खतरे का सकेंत दे रहा है तो गर्मियों मे जंगल की आग भी खतरा उत्पन्न कर रहे हैं, इन स्थितियों मे बारिश कम हो तो गर्मियों में उत्तराखंड में असाधारण जल संकट पैदा हो जाता है।
वैज्ञानिकों की माने तो हिमपात न होने से गर्मियों में नदियों में जल प्रवाह मे लगातार कमी आ रही है। गर्मियों में प्रमुख ग्लेशियरों पर आधारित भागीरथी और अलकनन्दा जैसी नदियों में जल प्रवाह में 50 प्रतिशत की कमी आ गई है। वैज्ञानिक इसे दुर्भाग्य ही मानते हैं कि प्रदेश मे नदियों की कोई कमी नही है लेकिन फिर भी पानी की कमी लगातार बन रही है अब वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि जलस्त्रोतों को पारम्परिक तरीके से बचाना होगा जिससे पानी के संकट से बचा जा सकता है। सरकारी आँकड़ों से पता चलता है कि जल संस्थान व जल निगम जैसी सरकारी जल आपूर्ति एजेंसियाँ राज्य की सभी बस्तियों में पानी के पाइप पहुँचाने में सफल रही हैं। परन्तु बुनियादी सवाल यह है कि क्या वे हर नागरिक को 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मानक के अनुरूप साफ और सुरक्षित पानी देने में असफल रही हैं।
जल स्रोत से प्रवाह की वार्षिक समीक्षा रिपोर्ट में उत्तराखंड जल संस्थान ने 2005-06 में स्वीकार किया कि जिन 5257 जल स्रोतों का अध्ययन किया गया उनमें से लगभग 40 प्रतिशत में जल प्रवाह में पहले की अपेक्षा 50 प्रतिशत की कमी आ गई। यह संख्या 2003 की 17 प्रतिशत से अधिक है। पौड़ी जिले में 75 प्रतिशत से अधिक जल स्रोतों में प्रवाह में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। ये आकड़े 10 साल पुराने है लिहाजा अब हालत और बुरी हो चुकी है। बुरी तरह से प्रभावित अन्य जिले पर नजर डाले तो चम्पावत (55 प्रतिशत), अल्मोड़ा (49 प्रतिशत) और टिहरी (41 प्रतिशत )। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के गाँवों में ग्रामीण इलाकों की जलापूर्ति योजनायें हमेशा ही सवालों के घेरे में रही हैं। उनमें कई पेयजल योजनाये किसी सीजन में खास तौर पर गर्मियों में जबकि पानी की बहुत जरूरत होती है, ऐसे मे वैज्ञानिक अब वर्षा जल को पीने व सिचाई के लायक बनाने की बात कर रहे हैं। वैज्ञानिक भविष्य के लिए इसे ही जल की पूर्ति का माध्यम बता रहे है। जानकार मानते हैं कि पानी की पूर्ति लिए जनता का सहयोग व हर स्तर पर पानी के महत्व को समझने की जरूरत है, हालांकि सरकार इसके लिए प्रयास करती है लेकिन तमाम योजनाऐं लोगों तक नही पहुंच पाती है। वैज्ञानिक मानते हैं कि उतराख्ंाड में नदियों के किनारे ही लोगों को पीने का पानी नही मिल पा रहा है सुप्रीम कोर्ट के मुताबित पानी समुदाय का है लेकिन इसका लगातार दोहन हो रहा है। कहीं जल विद्युत परियोजना पानी की अपूर्ति को ठप्प कर रहे हैं तो कहीं बड़ी बड़ी परियोजनाओं से पारम्परिक जल स्त्रोतों को खत्म किया जा रहा है इस पर आज सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। सदियों पहले कश्यप ऋषि ने पानी और जंगलों के बीच सहजीवी संबंधों का निरूपण किया था। इन संसाधनों के लिए समन्वित प्रबंधन की जरूरत होती है। ऐसे मे आज जल संसाधनों के प्रबंधन की जिम्मेदारी को समझाना होगा और उदारीकरण की अवधारणा का विस्तार प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में भी किये जाने की आवश्यकता है।
आप भी भेजें रिपोर्ट : संपर्क करें :- शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ – 9756838527, 7060214681
Shashibhushan.paras@gmail.com
Ye hakikat hai, jal sanchay ka wigat 17 warson me ayi gai sarkaron dwara iska ek bhi udharan uk me dharatal per nahi utara gaya… Haan eka duka udharan gaun ke logo dwara hi pesh aye hain,, abhi tak jo to jal nigam aur jalsansthaan wibhagon ko prakartik jal shrot hi chala rahe hain. Ya yun sammajh lijiye ki ye. Sewa ab pahadon mme kuchh hi saalon ki mehmaan hai. Haan bil bara bar pahunch jate hain… Kya hoga jab ye jal shrot sookh jayenge…. Gawon mme bane tank kabhi saaf nahi hote ,,, jab mmendhak nalke ke paas aa jata hai aur pani. Na matr aata hai. Tabhi pipe khole jate hain aur wo bhi gaun walo dwara… Jal sansthano ka koi role nahi rahta,.. Bhudhi jeewi warg media ko is mamle ko bhi ujagar karna chahiye.. Ye haqikat hai.. Jab tak chalraha hai chalne dete hain hum pahadi log aur nahi chalega to dekhenge , palayan karenge aur kya.. Hamaruwe thodi ni liniyu narsing bhairon poojan ku theka… Ye soch hai 90% pahadiyon ki , dikhraha hai sabko ki market me adhe se jyada bijnori aur musalmono ka ho gaya per koi kuchh bolne ko tyaar nahi,, jal shrot sookh raha per awaaj uthane ko unko bachane ko koi tyaar nahi ,,
Mujhe kabhi kabhi badi hairat hoti hai ki devta autarne pe kabhi kisi devta ne bhi ye nahi kaha ki jaago warna pyase mar jawoge,, itni doliyaan ghoomti hain hamare garhwal kumaun me , raj jaat, badri kedar, yamnotri gangotri,sem naagraj, kartikswami,kalimath.. Ye sabhi devta kisi na kisi pe awtarit hote hain per kabhi uttrakhand ke liye koi bhawishyawani nahi hoti ,, kisi ko dukh paresani ho to devta turant samadhan batate hain.. Per mujhe ye majh nahi ata ki pahadon ke pahaad khali ho rahe per devta kuchh bolte nahi.. Shayad humne is kast se dewta ko kabhi awgat hi nahi karaya.. Mai ye sab is liye likh raha hu ki gareeb se gareeb bhi dewta ke kahne pe pooja,paath,bhagwat karne ka sahas rakhta hai, kiyon ki aashtha wishwas.. Kathin se kathin parishram karke bhi devta ne jaisa kaha waisa prabhandh hum pahadi karte hain… To kya ye nahi ho sakta ki dharam aur astha ko auzaar bana kar hi yahaan logo ke jeewan ko sudharne ka pratna kiya zaye… Lo ji baat chal rahi thi jal sanchay ki aur pahunch gaye kahaan.. Maithaani daa.. Mai kahaan eshara kar raha hu , shayad aap samajh gaye honge… Baki baba bholenath hain hi.. Ya to bhala hi karenge ya fir taandav.. Oum..