- Brajesh Rajput MP
ग्राउंड रिपोर्ट : जाते थे जापान पहुंच गये चीन समझ गये ना……. !
देहरादून के शशिभूषण मैठाणी नेबहुत पहले ही कह रखा था कि इस बार आप फरवरी के आखिरी हफते की तारीखें खाली रखना आपको यहां आना है। हमारी चयन समिति ने इस बार पत्रकारिता और लेखन में यूथ आइकन अवार्ड के लिये आपको चुना है। हर राज्य से एक प्रतिनिधी होता है एमपी से आपको ही बुलाया है इसलिये आना जरूरी है। देहरादून मेरा पसंदीदा शहर है जहां पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान मैंने लंबा वक्त गुजारा था। सोच रखा था कि सब कुछ ठीक रहा तो जरूर जाउंगा देहरादून। आने जाने का टिकट भी करवा रखा था भोपाल से देहरादून का। मगर जैसा सोचो वैसा होता कब है। टेलीविजन पत्रकारिता सरीखे रोज की मारा मारी वाले प्रोफेशन में दूर की तारीखों का कार्यक्रम तय करना बहुत ही कठिन होता है। देश प्रदेश में घटनाएं दुर्घटनाएं लगातार होती रहतीं हैं उनके साथ आपका जीना मरना या व्यस्त रहना लगा रहता है। 21 फरवरी को कुछ दिन ही बचे थे इस बीच में यूथ आइकन अवार्ड की आयोजन समिति से कई दफा बातचीत हो चुकी थी वो मुझे बुलाने में जितना उत्साह दिखाते थे मेरा मन उतना ही डूबता जाता था। लगता था कि ऐसा कुछ ना हो जाये जो मैं उनके उत्साह पर पानी फेरने वाला साबित हो जाउं। आखिर वही हुआ जिसकी आशंका थी। देहरादून जाने से दो दिन पहले दफतर से फोन आया कि पीएम मोदी एमपी के बाद छत्तीसगढ का दौरा करेंगें और वहंा राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ में किसान सम्मेलन को संबोधित करेंगें। आपको जाना होगा। तैयारी कर लें। प्रधानमंत्री के दौरे की कवरेज को टाला नहीं जा सकता था। जबकि ये भी मालुम था कि वहाँ से हम लाइव प्रसारण नहीं कर पायेंगे। सारा कुछ दूरदर्शन या फिर समाचार एजेंसी एएनआई से ही लेना होगा मगर किसी भी बडे नेता के दौरे कार्यक्रम में जाने अंजाने में होने वाली अनहोनी घटनाओं को कवर करने के लिये चैनल के रिपोर्टर की उपस्थिति जरूरी है सो अपना डोंगरगढ पहुंचना ज्यादा जरूरी है बजाये देहरादून जाकर सम्मान लेने के। मि़त्र शशिभूषण से विनम्रता से माफी मांग ली गयी वो भी पत्रकारिता के दर्द और काम की जिम्मेदारी को समझते हैं सो उन्होंने पहले काम फिर सम्मान की सलाह दी। मगर छत्तीसगढ जाना भी आसान नहीं निकला। दो दिन पहले जिस ट्रेन की टिकट करायी गयी थी वो ट्रेन हरियाणा के जाट आरक्षण आंदोलन के कारण चार से पांच घंटे लेट चल रही थी। देर रात तक वो भोपाल आयी और जब हम डोंगरगढ स्टेशन पर उतरे तो सुबह के साढे दस बज रहा था और पीएम की सभा का वक्त ग्यारह बजे था। हमारे छत्तीसगढ के रिपोर्टर ज्ञानेंद्र तिवारी डोंगरगढ स्टेशन पर ही सुबह आठ बजे से चहलकदमी कर बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। गाडी से उतरते ही हम सभास्थल की ओर चल पडे मगर पूरे रास्ते भर रैली के लिये लाये जा रहे लोगों का रैला था। लग रहा था कि आज तो आना ही बेकार हो गया। पीएम की सभा में सुरक्षा इंतजामों के तहत एक घंटे पहले ही सभास्थल पर आना जाना प्रतिबंधित कर देते हैं। हमें याद है कि पीएम मोदी जब पिछली बार दंतेवाडा आये थे तो मीडिया और दूर दूर से लाये गये श्रोताओं को सुबह आठ बजे तक सभास्थल के अंदर कर बिठा दिया गया था। छत्तीसगढ में नक्सलियों के आतंक के चलते सुरक्षाबल जरा भी ढील ढाल नहीं बरतते फिर आप होंगे किसी चैनल के पत्रकार। सुरक्षाबलों को जो करना होगा अपनी मर्जी से करेंगे। खैर भागते दौडते हम अपने कैमरामेन होमेंद्र के साथ किसी तरह सभास्थल पर पहुंचे तब जाकर पता चला कि पीएम का कार्यक्रम आधे घंटे देरी से चल रहा है इसलिये आप पहले आ गये वरना पीएम के आने के बाद आप आ नहीं पाते और दूर से ही भाषण सुनते और कुढते। इधर पीएम मोदी भाषण दे रहे थे मगर मेरा मन डेढ हजार किलोमीटर दूर देहरादून की ओर उड चला था। छत्तीसगढ से हजार किलोमीटर दूर उत्तराखंड में मेरा नाम पुकारा जा रहा होगा। तालियां बज रहीं होंगी मगर हम नहीं है। जिंदगी में सम्मान के मौके कम आते हैं और जब आते है तब हम वहां नहीं रहते किसी ओर जगह सम्मान लगातार होते रहें ऐसे कामो में व्यस्त रहते थे। लिखने बैठा हूं तो सम्मान और छत्तीसगढ से जुडा एक ओर किस्सा याद आ रहा है। मुंबई प्रेस क्लब के रेड इंक अवार्ड के लिये मुझे 25 मई 2013 को मुंबई बुलाया गया था। मुरैना की अवैध रेत उत्खनन की मेरी स्टोरी बेस्ट टीवी स्टोरी के अवार्ड के लिये चुना गया था। मुंबई के नरीमन आडिटोरियम में कार्यक्रम चल रहा था। पत्रकारिता के सारे बडे महारथी मौजूद थे। स्टार इंडिया के सीईओ और मेरे पुराने बास उदय शंकर, टाइम्स नाउ के अरनव गोस्वामी, द हिंदू के एन राम और भी ढेरो नाम। रात करीब ग्यारह बजे भरपेट भोजन और सम्मान से लदे फदे इतराते हुये हम अपने दोस्त एनडीटीवी के अभिषेक शर्मा के साथ बाहर निकले ही थे कि दो तीन एसएमएस मोबाइल पर धडाधड गिरे। अंदर आडिटोरियम में नेटवर्क नहीं था इसलिये फोन शांत था मगर बाहर आते ही अब फोन भी अपने होने का अहसास कराने लगा। मोबाइल की रिंग लगातार बजने लगी। दफतर से फोन था भई कहाँ गायब हो जाते हो इतनी बडी खबर है और आपका पता नहीं हैं। तडके सुबह की आपकी टिकट करायी गयी है सीधे रायपुर निकलिये कल वहां पीएम और सोनिया गांधी पहुंच रहीं हैं। मगर हुआ क्या है। अरे आपको नहीं मालुम। नक्सलियों ने बस्तर की झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर घात लगाकर हमला किया है जिसमें तीस से ज्यादा कोंग्रेसी नेता मारे गये हैं। इस हमले में कुछ को छोड छत्तीसगढ के सारे बडे कांगे्रसी नेता खेत रहे। उफ इतनी बडी खबर सुन अपने तो होश फाख्ता हो गये। सम्मान की सारी खुशी काफूर हो गयी। अभिपेक के घर पहुंच कर रात भर टीवी देखा और सुबह की फलाइट से बजाये भोपाल लौटने के रायपुर पहुंच गये। सुबह का दस बजे का अपना पहला लाइव चैट रायपुर के उस हास्पिटल के बाहर से था जहंा घायल कांग्रसियों को देखने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह पहुंचे थे। उधर भोपाल में हमारे मित्र रेड इंक अवार्ड के बाद की पार्टी का इंतजार कर रहे थे और अपन छत्तीसगढ में लगातार चार दिन तक डेरा डालकर रिपोर्टिंग कर रहे थे। अब इसे आप क्या कहेंगे मुझे तो किशोर कुमार की फिल्म चलती का नाम गाडी फिल्म का गाना याद आ जाता है जाते थे जापान पहुँच गये चीन समझ गये ना।
ब्रजेश राजपूत