यूं बिगड़े हालात मेंअबकी बरसात में
गाँव न आना बेटातू आके जज्बात में.
खेत खलिहान गएपुरखों के मकान गए.
जिन्दा लोगों के साथयुगों के श्मशान गए.
राजा भी रंक हो गएपंछी बिन पंख हो गए.
विधाता ने लंगड़ी दीधावक अपंग हो गए.
हम तो कुछ भी नहींसब ईश्वर के हाथ में.
यूं बिगड़े हालात में अबकी बरसात में
गाँव न आना बेटा तू आके जज्बात में.
भूले नहीं वो तारीखें हर ओर से थी चीखें
मांग रहे थे ईश्वर सेलोग जिन्दगी की भीखें.
हम बच गए जैसे तैसेमत पूछना मगर कैसे.
दुआ करते हैं कोई न देखे मौत का तांडव ऐसे.
आसमान चेता गया रहो अपनी औकात में
यूं बिगड़े हालात में अबकी बरसात में
गाँव न आना बेटा तू आके जज्बात में…………………..
यहाँ जिन्दगी गौण हैमौत जरा भी न मौन है.
सब खुसुर पुसुर कर रहेबोलो जिम्मेदार कौन है.
देख लिया होगा मंजरतूने बैठे घर के अन्दर.
हम न रह सके चैन सेऐसा मचा था बवंडर.
पर अब आदत हो गई रेडरते थे बहुत शुरुआत में.
यूं बिगड़े हालात में अबकी बरसात में
गाँव न आना बेटा तू आके जज्बात में
बुरे पल निकल जायेंगे नए रंग में ढल जायेंगे.
तुम उम्मीद रखनावक्त के संग हालात बदल जायेंगे.
दूर रहे नजदीक रहे बेटा तू सदा ठीक रहे.
दुःख हमारे हिस्से आयेंतू खुशियों में शरीक रहे.
चिट्ठी भेज रहे हैं तुझको लाखों दुआओं के साथ में.
यूं बिगड़े हालात में अबकी बरसात में
गाँव न आना बेटा तू आके जज्बात में .
जयवर्धन काण्डपाल ‘जय’